वैश्विकी : इस वर्ष का संदेश

Last Updated 29 Nov 2020 03:04:58 AM IST

वर्ष दो हजार बीस दुनिया में कोरोना वायरस महामारी, अमेरिका में विवादास्पद राष्ट्रपति चुनाव और एशिया की दो महाशक्तियों भारत और चीन के बीच सैन्य संघर्ष और तनाव के लिए प्रमुख घटनाओं के रूप में दर्ज किया जाएगा।


वैश्विकी : इस वर्ष का संदेश

इन तीनों घटनाओं का पटाक्षेप होना अभी बाकी है तथा वर्ष दो हजार इक्कीस में भी इनका असर देखा जाएगा। सबसे पहले अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर जारी अनिश्चितता समाप्त हो सकती है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चुनाव नतीजों को नहीं मानने पर अड़े हुए हैं, लेकिन बीस जनवरी से जो बाइडेन को राष्ट्रपति बनने से रोकने के लिए उनके पास ज्यादा विकल्प नहीं है। कानूनी लड़ाई के जरिए नतीजों को पलटे जाने की संभावना नाम मात्र ही है। अमेरिका के संवैधानिक प्रतिष्ठानों की सामूहिक ताकतों के आगे ट्रंप को अंतत: झुकना पड़ेगा। वे अपने सात करोड़ से ज्यादा समर्थक मतदाताओं की ताकत के जरिए सड़कों पर विरोध का जोखिम नहीं उठा सकते।
अमेरिकी समाज आज विभाजित है, जिसकी अभिव्यक्ति देश के किसी न किसी कोने में गाहे-ब-गाहे होती रहती है। सामाजिक विभाजन का ज्वालामुखी सुप्तावस्था में है तथा कोई भी जिम्मेदार राजनेता या पार्टी ज्वालामुखी में विस्फोट का अतिवादी प्रयास नहीं कर सकती। अमेरिका के विवाद ने एक पुराने मजबूत लोकतंत्र के रूप में अमेरिका की साख को धक्का पहुंचाया है। लोकतांत्रिक देशों में ही नहीं, बल्कि अमेरिका को एक अपराजेय लोकतांत्रिक देश के रूप में देखने वाले विकासशील और अविकसित देश अब अमेरिका की लोकतांत्रिक प्रणाली पर पहले की तरह विश्वास नहीं कर रहे हैं।

वर्ष दो हजार बीस से शुरू हुई कोरोना महामारी पूरे साल तक दुनिया की अग्नि परीक्षा लेने के बाद अब भी जारी है। अगले साल भी इसके प्रभाव दिखाई देंगे। वास्तव में साल के अंत में महामारी से संक्रमण की शिद्दत वैसी ही हो गई जैसी वर्ष के पूर्वार्ध में थी। दुनिया भर में कोरोना वायरस की वैक्सीन विकसित करने का काम युद्धस्तर पर चला, लेकिन अभी स्पष्ट नहीं है कि वैक्सीन लोगों के पास कब तक पहुंचेगी। संतोष की बात यह है कि पिछले एक वर्ष के अनुभव से विभिन्न देशों को एहतियात बरतने तथा सामान्य जन-जीवन बहाल करने के बारे में रास्ता सूझा। भारत समेत दुनिया के अनेक देशों में अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटने लगी है। दुनिया ने काफी हद तक इस महामारी के साथ जीना सीख लिया है।
वर्ष दो हजार बीस में चीन एक खलनायक देश के रूप में उभरा। कोरोना वायरस की उत्पत्ति और दुनिया भर में उसके प्रसार के लिए चीन को दोषी माना गया। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने तो कोरोना वायरस को वुहान वायरस और चीनी प्लेग की संज्ञा दे दी। चीनी सरकार की लगातार सफाई और विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से चीन का बचाव किए जाने के बावजूद अधिकतर लोग महामारी के लिए चीन को दोषी मानते हैं। चीन को अधिक से अधिक संदेह का यह लाभ दिया जा सकता है कि वायरस दुर्घटनावश उसकी प्रयोगशाला से निकल गया। उसने जान बूझकर ऐसा नहीं किया।
पूर्वी लद्दाख में चीन की सैन्य गतिविधियां स्पष्ट रूप से दुनिया के सामने हैं। इसे लेकर चीन कोई सफाई देने की स्थिति में नहीं है। भारत जैसे शांतिप्रिय देश और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा वुहान एवं महाबलिपुरम में चीन के साथ दोस्ती की महत्त्वपूर्ण पहल के बावजूद चीन ने भारत के विरुद्ध आक्रामक रवैया अपनाया। प्रधानमंत्री मोदी को अंतत: दोस्ती की अपनी कूटनीति से अलग होते हुए चीन को विस्तारवादी देश की संज्ञा देनी पड़ी। महीनों तक सैन्य और कूटनीति के स्तर पर विचार-विमर्श करने के बावजूद पूर्वी लद्दाख में हालात सामान्य नहीं हुए हैं। इलाके में बर्फबारी के कारण सैनिक गतिविधियां सीमित हैं। अगले वर्ष मार्च-अप्रैल में बर्फ पिघलने के बाद चीन क्या रवैया अपनाएगा, यह स्पष्ट नहीं है। एक साल बाद वह कदम पीछे हटाता या आगे बढ़ाता है, उस पर भारत-चीन संबंधों की भावी दिशा निर्भर करेगी।
दो हजार बीस कोरोना वर्ष के रूप में जाना जाएगा। कम से कम इस वायरस ने दुनिया को यह संदेश तो अवश्य दिया है कि दुनिया में हर देश और हर व्यक्ति का जीवन एक दूसरे से जुड़ा है। हजारों साल पहले भारत के ऋषि-मुनियों ने वसुधैव कुटुंबकम का यह संदेश दिया था। इस संदेश की प्रासंगिकता आज स्पष्ट है। इसकी अवहेलना से दुनिया में समय-समय पर गंभीर चुनौतियां उभरती रहेंगी।

डॉ. दिलीप चौबे


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