सामयिक : तार-तार होता पंचशील
बौद्ध धर्म का आधार पंचशील, जवाहरलाल नेहरू और चाऊ एन लाई का समझौते वाला पंचशील और तिब्बत से पलायन करने वालों की दास्तान वाला पंचशील तार-तार होकर गुमनाम हो गया है।
![]() सामयिक : तार-तार होता पंचशील |
चीन की दूरगामी परिणाम वाली रणनीति अपने शवाब पर है। इसका कारण यह है कि बीते 66 वर्षो में चीन की कुटिल नीतियों का माकूल जवाब देने का बोझ ढो रहे भारतीय नेतृत्व ने कभी चीन के खिलाफ आंखें तक नहीं तरेरीं। इसके विपरीत भाई-भाई के नारे लगते रहे। भाईगिरी करने वाले भारत में बैठे चीनी दलाल देश की जनता को इंकलाब का लॉलीपॉप देकर गुमराह करते रहे। प्रचार करते रहे कि चीन से टकराने का मतलब पूर्वोत्तर भारत से हाथ धोने जैसा आत्मघाती निर्णय साबित हो सकता है। उधर, इस अपप्रचार का फायदा उठाते हुए साम्राज्यवादी नीति के तहत चीन ने एशियाई देशों के आर्थिक दोहन के साथ सैन्य शक्ति का विस्तार किया।
आइए, अब ‘पंचशील’ के सिद्धांतों और आदशरे पर गौर करें। पहले ‘पंचशील’ का प्रवर्तन बौद्ध धर्म में हुआ। बौद्ध धर्म के अनुयायी भारत-चीन सहित दुनिया के अनेक देशों में हैं। स्वाभाविक रूप से चीन के लोग भी पंचशील का आदर करते रहे हैं। बहुधर्मी चीन में भी बौद्ध धर्म प्रमुख धर्म माना जाता रहा है। वहां कन्फ्यूशियस और ताओ धर्म का वर्चस्व रहा है। कालांतर में बौद्ध धर्म को हिंदू धर्म का निकटवर्तीय मानने के कारण बुद्ध के अनुयायियों को प्रताड़ित किया जाने लगा। तिब्बतियों की पलायन गाथा सिहरन उत्पन्न करने वाली है। चीनी हुक्मरानों को तिब्बतियों की दुर्दशा देख पीड़ा नहीं, बल्कि आनंद की अनुभूति होती है।
हालांकि बौद्ध धर्म का पंचशील सदाचार और समरसता का संदेश देता है। सभ्य समाज के लिए आधार है। यह जोड़ने का आग्रही है और हिंसक वृत्ति से दूर रहने के लिए प्रेरित करता है। स्पष्ट कर दें कि पंचशील के पांच सूत्र हैं। उनमें हिंसा न करना, चोरी न करना, व्यभिचार न करना, झूठ न बोलना और नशा न करने की सलाह का समावेश है। चीनी सरकार और गैर-बौद्ध जनता के आचरण को देखें तो साफ है कि चीन पंचशील को रद्दी की टोकरी में डाल चुका है। इसी तरह बौद्ध धर्म के पंचशील के आभामंडल की छाया में नेहरू और चाऊ एन लाई ने पंचशील समझौता किया था। राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था पर आधारित इस समझौते में यह तय था कि दोनों देश एक दूसरे की प्रादेशिक अखंडता और प्रभुसत्ता का सम्मान करेंगे, एक दूसरे के खिलाफ आक्रामक कार्रवाई नहीं करेंगे। यह कि एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने से विरत रहेंगे, समानता और परस्पर लाभ की नीति का पालन करेंगे और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की नीति में विश्वास करते हुए इस पंचशील का पालन करेंगे।
इस समझौते पर गौर करें तो स्पष्ट हो जाता है कि चीन की और इस ‘आदशर्’ की सदैव अवहेलना होती रही। चीन का चिंतन स्वार्थी नजर आता रहा। उसने मौका पाते ही लाभ उठाया और मौका मिलते ही डंक मारने में पीछे नहीं रहा। सैन्य और आर्थिक शक्ति के जरिए वह भारत को पंगु बनाने की कोशिश में जुट गया है। पर उसे शीघ्र ही अपनी गलती का एहसास हो सकता है और वह समझौते के लिए चादर पसार सकता है। ये लोग धर्माचरण और नैतिकता के सहारे कूटनीतिक कदम नहीं उठा रहे हैं, बल्कि कूटनीतिक चालों के सहारे नैतिकता की पाठशाला चलाने की कोशिश कर रहे हैं। पंचशील समझौता के सुर-ताल थमे भी नहीं थे कि 1962 में चीन ने सैन्य कार्रवाई के तहत भारत पर हमला बोल दिया। मित्रता को तरजीह देकर भारत ने सेना का आधुनिकीकरण नहीं किया था। नतीजे में भारतीय सेना पीछे हटने को मजबूर थी। किसी ने इस कठिन परिस्थिति में मदद नहीं दी। करीब 40 हजार वर्ग मील भारतीय क्षेत्र पर चीनी सेना ने कब्जा कर लिया था। आखिरकार, हताश नेहरू ने मध्य प्रदेश में पीतांबरा पीठ (दतिया, ग्वालियर) की शरण ली। तत्कालीन पीठाधीर ने तांत्रिक सिद्धियों की मदद से हवन किया। परिणाम सुखद रहा। देर रात चीन की ओर से एकतरफा युद्ध विराम की घोषणा हो गई। इस घोषणा के प्रसारित होते ही भारतीय जन मानस ने राहत की सांस ली। हालांकि युद्ध विराम करने के फैसला के कारणों का खुलासा चीनी सरकार ने या उसकी किसी एजेंसी ने आज तक नहीं किया है। उनकी ओर से रहस्य और खामोशी बरकरार है जबकि भारतीय जनमानस इसे पीतांबरा पीठ की कृपा मानता है।
तंत्र साधना शाक्त सम्प्रदाय से जुड़ा हुआ है, उसके बाद शैव सम्प्रदाय से, और कुछ सीमा तक वैष्णव परंपरा से भी। शैव परंपरा में तंत्र ग्रंथों के वक्ता साधारणतया शिवजी होते हैं। तंत्र का शाब्दिक उद्भव इस प्रकार माना जाता है -‘तनोति त्रायति तंत्र’। इससे अभिप्राय है तनना, विस्तार, फैलाव, इस प्रकार इससे त्राण होना तंत्र है। वैसे तो तंत्र ग्रंथों की संख्या हजारों में है, किन्तु मुख्य तंत्र 64 कहे गए हैं। तंत्र का प्रभाव विश्व स्तर पर है। हां, यह देखने में आया है कि तंत्र साधना न करके तांत्रिक बनकर कुछ लोगों ने इस सर्वहितकारी विद्या को बदनाम भी किया है! तंत्र के ग्रंथों में लिखित वर्णन है, यह विद्या सकारात्मक कार्य के लिए ही उपयोग की जानी चाहिए। बहरहाल, पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के विरुद्ध तथा वर्गविहीन समाज और समता की बुनियाद पर तरक्की की मंजिल तय करने का दावा करने वाले चीनी शासक लोकतंत्र के पथ पर कभी नहीं चले। इन लोगों ने केवल लोकतांत्रिक मूल्यों का लबादा ओढ़ रखा है। असल में इनकी मनोवृत्ति तानाशाह की है। विव्यापी कोरोना महामारी ने इनके असली चेहरे को उजागर कर दिया है। इसी पृष्ठभूमि में भारतीय सीमा पर इनकी सैन्य गतिविधियों को देखा जा सकता है। ये लोग भारतीय सीमा पर रहस्यमय तरीके से दो कदम आगे, दस कदम पीछे, पांच कदम आगे और तीन कदम पीछे जाने की नौटंकी कर रहे हैं। भारतीय सेना और सरकार इनकी कूटनीतिक और सैन्य रणनीति से सतर्क रहें। कारण, इनकी धोखाधड़ी और बेशर्मी मशहूर हैं।
| Tweet![]() |