अग्निकांड : मानवीय संतुलन जरूरी

Last Updated 10 Dec 2019 06:47:49 AM IST

राजधानी दिल्ली के अग्निकांड से पूरा देश स्तब्ध है। अग्निशमन एवं आपदा प्रबंधन की उच्चतम व्यवस्था के रहते हुए यदि लोगों की जिन्दगी बचाना संभव न हो तो समझा जा सकता है कि पूरी स्थिति कैसी रही होगी?


अग्निकांड : मानवीय संतुलन जरूरी

जिन लोगों ने फिल्मिस्तान के अनाज मंडी के उस दुर्भाग्यशाली स्थान को जाकर देखा है वे बता सकते हैं कि वहां काम करने वालों की जिन्दगी हर क्षण जोखिम में थी। जाने-आने का एक ही दरवाजा, वह भी रात को बाहर से बंद हो जाए, खिड़कियां तक को ढक दिया गया हो और अंदर प्लास्टिक, चमड़े आदि की सामग्रियां हो तो आग लगने के बाद क्या स्थिति हो सकती है, इसकी कल्पना करिए। कोई जगह ही नहीं थी, जिससे अंदर फंसे लोग निकल भागते या कूद भी जाते। गलियां इतनी संकरी की दमकल की गाड़ियों का पहुंचना मुश्किल। उस दृश्य की कल्पना से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि अंदर फंसे लोग बचाओ-बचाओ कर रहे हों, स्थानीय लोग उनको बचाना भी चाहते हों पर उनके पास फंसे लोगों को जलते देखने के अलावा कोई चारा ही नहीं था।

ठीक है कि दिल्ली सरकार, दिल्ली प्रदेश भाजपा और अन्य राज्य सरकारें सबने मृतकों के परिजनों के लिए सहायता राशि घोषित की है। यह एक न्यूनतम जिम्मेवारी है जो कि सरकारें पालन कर रही है। प्रश्न है इस तरह की नौबत आई ही क्यों? घटना का अत्यंत ही सरलीकरण किया जा रहा है। एक सामान्य प्रतिक्रिया है कि फैक्टरी अवैध थी, उसके बारे में सरकार को पता नहीं था इसलिए जो कुछ उस पर कानूनी पाबंदी लागू होनी चाहिए नहीं हो पाई। अगर राजधानी दिल्ली का एक मोटा-मोटी सर्वे कर लिया जाए तो लाखों मकानों में ऐसे छोटे-छोटे कामकाज, फैक्टरियां..जो भी कहें व्यवसाय हो रहा है। उनका कोई निबंधन नहीं और जब निबंधन ही नहीं है तो फिर जो कानूनी अर्हताएं हैं उनकी पूर्ति का सवाल कहां से पैदा होता है।
जिस अनाज मंडी में इतनी बड़ी त्रासदी हुई है वहां गली-गली में इस तरह के अनेक कारोबार और फैक्टरियां चल रही हैं।

स्थानीय पुलिस को पता है। वहां के वार्ड के सदस्य, विधायक को जानकारी है। जैसा ऊपर कहा गया यह दिल्ली में किसी एक जगह की बात नहीं है और केवल दिल्ली की ही बात नहीं है। आप पूरे देश का दौरा करिए अलग-अलग शहरों में, कस्बों में इसी तरह छोटी-छोटी फैक्टरियां, उद्योग-धंधे आदि चल रहे हैं। ध्यान रखने की बात यह भी है कि बहुत छोटी पूंजी लगाकर 10-20 मजदूरों को लेकर जो काम शुरू करता है उनमें से ज्यादातर को पता ही नहीं होता कि वह जो कर रहा है गैरकानूनी है। सबको रोजगार चाहिए रोजी-रोटी चाहिए।। जिसके हाथ में जो विधा है उसके अनुसार कोई कारोबार खड़ा करता है। दुर्भाग्यशाली मकान में मजदूरों की दशा देखकर छाती पीटने वाले जरा मजबूर व्यावहारिकता को समझें। एक-एक कमरे में 20-25 लोग रह रहे हैं, सो रहे हैं और वही काम भी कर रहे हैं तो वहां की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। हमको आपको यह अजीब लग रहा है लेकिन जो बाहर से रोजगार के लिए आता है उसके लिए तो आश्रय स्थल है।

एक मजदूर के लिए दिल्ली जैसे शहर में किराए का कमरा लेना और उसका खर्च वहन करना आसान नहीं। कोई किसी से काम मांगने जाता है तो यह नहीं पूछता कि आपकी फैक्टरी, उद्योग या जो कारोबार है वह वैध है या अवैध। वह अपना पेट पाले, अपने परिवार का पालन करें कि वैध और अवैध देखें। फिर वैध और अवैध का जो चक्कर है..अवैध कारखाने, उद्योग, कारोबार चल रहे हैं उनके लिए जिम्मेदार कौन है? उस फैक्टरी का मालिक और मैनेजर गिरफ्तार है। उस पर मुकदमा चलेगा। लेकिन क्या यही पर्याप्त है? सवाल है कि थानेदार को जिम्मेवार क्यों नहीं माना जाए? नगरपालिका परिषद के अधिकारी जिम्मेदार क्यों नहीं हो सकते? जो स्थानीय सरकारी इंजीनियर है, जो खुलेआम घूस लेकर बिना नियम-कानून के 4 से 7 मंजिल मकान बनवाता है, उसको क्यों नहीं गिरफ्तार करना चाहिए? अग्निकांड में अपना सब कुछ गवां देने वाला मालिक अरबपति नहीं है। बहुत छोटी पूंजी से और ज्यादातर अपने ही क्षेत्र के मजदूरों को साथ में लेकर कारोबार कर रहा था। जो कुछ कर रहा था और जिस स्थिति में कर्मचारियों को रख रहा था, वह निस्संदेह गैरकानूनी है। लेकिन हम केवल उसे ही दोषी मान लें और प्रशासन को बरी कर दें तो समस्या का हल नहीं हो सकता।

जाहिर है इसके लिए जितने भी जिम्मेदार अधिकारी हैं उन पर हर हाल में मुकदमा चलाया जाना चाहिए ताकि दूसरे इससे सीख लेकर अपने चरित्र और व्यवहार में बदलाव लाएं। दिल्ली में लंबे समय से सुना जा रहा है कि आवासों में चलने वाली फैक्टरियों को बवाना औद्योगिक क्षेत्र में शिफ्ट किया जाएगा। इतने वर्षो में क्यों नहीं हुआ? सच यह है कि जितने कारोबार चल रहे हैं, उन सबको शिफ्ट करना संभव ही नहीं। वैसे भी कोई व्यक्ति अपने घर के एक या दो कमरे में कोई छोटा कारोबार शुरू करता है और उसके पास कोई रजिस्ट्रेशन नहीं है तो उसका क्या करेंगे? उसका जीवन उससे चलता है। कहने का तात्पर्य यह कि समस्या काफी जटिल है। इसके समाधान के लिए मानवीय एवं कानूनी दोनों पहलुओं के बीच संतुलन स्थापित करना होगा। दिल्ली को ही लें तो कौन से काम कहां-कहां चल रहे हैं उनकी पूरी सूची बनानी पड़ेगी। उस सूची के आधार पर किनको शिफ्ट किया जा सकता है या किनको रहने देना है इसका निर्णय करना पड़ेगा। क्या इसके लिए हमारे नेता और अधिकारी तैयार हैं? 

दिल्ली की सेटेलाइट मैपिंग होनी चाहिए जिससे पता चले कि कहां क्या-क्या कारोबार हो रहा है? हर मोहल्ले का सर्वे होना चाहिए जिससे पूरा विवरण सामने आ सके। उसके बाद केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और संबंधित विभागों के अधिकारी बैठकर योजना बनाएं और उस योजना के अनुसार आगे बढ़ा जाए तो समस्या का कुछ निदान हो सकता है। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि घरेलू उद्योग ही नहीं, ऐसे कई कारोबार या निर्माण कारखाना, जिससे पर्यावरण को बहुत ज्यादा नुकसान नहीं है उनको चलाते रहने की अनुमति दी जा सकती है। केवल गहरी समझ एवं राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। सच कहा जाए तो वर्तमान अग्निकांड की त्रासदी हमसे इस समस्या के संदर्भ में सम्पूर्ण एप्रोच बदलने की मांग कर रही है।

अवधेश कुमार


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