पारदर्शितापूर्ण समाधान

Last Updated 16 Sep 2025 02:51:12 PM IST

एआई यानी आर्टीफिशल इंटेलिजेंस (कृत्रिम मेधा) का इस्तेमाल जिस तेजी से प्रचलित होता जा रहा है। वह कई तरह के संकट भी उपजा रहा है।


पारदर्शितापूर्ण समाधान

इसलिए संसद की समिति ने सरकार से एआई के मार्फत गढ़ी गई फर्जी खबरों को फैलाने वालों की पहचान करने और उन पर मुकदमा दायर करने के लिए ठोस कानूनी व तकनीकी समाधान विकसित करने को कहा है। 

संचार व सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी स्थाई समिति ने मसौदा रिपोर्ट में सूचना-प्रसारण मंत्रालय, इलेक्ट्रॉनिक्स व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय व अन्य संबंधित मंत्रालयों के बीच सहयोग का आग्रह भी किया है।

हालांकि समिति के सुझाव सरकार के लिए मान्य नहीं हैं मगर संसदीय समितियां संसद का प्रतिनिधित्व करती हैं और सरकार इस पर बार-बार विचार करती रही है इसलिए ठोस कानूनी व तकनीकी समाधान विकसित किया जा सकता है।

रिपोर्ट के अनुसार फर्जी खबरों का पता लगाने के लिए दो सॅाफ्टवेयर प्रयोग हो रहे हैं। डीप लर्निग फ्रेमवर्क व डीप फेक वीडियो, जिनके द्वारा फर्जी भाषण व फाइल का पता लगाने का प्रयास किया जाता है।

कृत्रिम बुद्धिमता के प्रचलित होते ही घोटालेबाजों, उपद्रवियों व नफरत फैलाने वाले नकारात्मक लोगों द्वारा फर्जी खबरों या तस्वीरों का प्रयोग किया जा रहा है। गूगल समेत सभी तकनीकी कंपनियां कृत्रिम बुद्धिमता के उपयोग को सच बनाकर प्रचारित करने में पीछे नहीं रहना चाहती।

बेशक फर्जी खबरों या वीडियो के मार्फत केवल राजनीतिक दलों को ही नुकसान नहीं पहुंचाया जा रहा बल्कि जानी-मानी शख्सियतों या भीषण दुर्घटनाओं, प्राकृतिक आपदाओं व युद्धादि की खबरों को भी बढ़ा-चढ़ाकर या वीभत्स तरीके से प्रचारित किया जाता है।

फर्जी खबरों/वीडियो को समाज के लिए खतरे के तौर पर देखा जाता है।

इनसे न सिर्फ नागरिकों में भय फैल सकता है बल्कि दंगे-फसाद या उन्माद भी बढ़ने की आशंका है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स विभिन्न चरणों की जांच का आासन भले ही देते हैं मगर ओछी मानसिकता वाले फर्जी बातें, खबरें या तस्वीरों को वायरल करने से बाज नहीं आते।

हालांकि सरकार को सिर्फ अपने स्वार्थानुसार मुकदमे या कानून की बजाए एआई के किसी भी तरह के फर्जी/गलत या बदनियति से फैलाई खबरों/चित्रों पर रोकने या कानूनी कार्रवाई की कोशिशें करनी होगीं।



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