‘कर्मचारी’ से ‘कर्मयोगी’ का सफर

Last Updated 16 Sep 2025 03:04:11 PM IST

देश लोक प्रशासन में सुधार के अभूतपूर्व प्रयास कर रहा है। अब न केवल अधिकारियों के प्रशिक्षण के तरीके बदल रहे हैं, बल्कि उनकी सेवा के मायनों में भी बदलाव आ रहा है।


मिशन कर्मयोगी-लोक सेवा क्षमता निर्माण का राष्ट्रीय कार्यक्रम है और इस बदलाव में इंजन की भूमिका निभा रहा है। इसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दूरदर्शी सोच झलकती है। 25 वर्षो से अधिक समय तक सरकार चलाने और पांच दशकों से अधिक सार्वजनिक जीवन का अनुभव रखने वाले मोदी, व्यवस्थाओं के प्रति एक संचालक जैसी समझ, जड़ आदतों के प्रति एक सुधारक जैसी अधीरता, और ध्रुव तारे की तरह स्पष्ट-नागरिक-प्रथम, विकसित भारत के उद्देश्य को सामने रखते हैं।

मिशन कर्मयोगी की खासियत यह है कि यह केवल दिखावे भर के लिए मानव संसाधन सुधार नहीं है। यह देश की लोक सेवाओं की मूल्य-आधारित परिवर्तनकारी पुनर्रचना है और  इसका मुख्य ध्यान प्रदशर्न पर है। यह कार्यक्रम तीन निर्णायक बदलावों को संहिताबद्ध करता है: पहला बदलाव; सरकारी अधिकारियों की मानिसकता में बदलाव है, यानी स्वयं को कर्मचारी मानने से लेकर कर्मयोगी मानने तक का सफर है। दूसरा बदलाव; कार्यस्थल में बदलाव है, इसमें प्रदशर्न के लिए व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी सौंपने से लेकर प्रणालीगत प्रदशर्न बाधाओं का निदान और उन्हें दूर करने तक का बदलाव शामिल है। तीसरा बदलाव; सार्वजनिक मानव संसाधन प्रबंधन प्रणाली और उससे जुड़ी क्षमता निर्माण प्रणाली को नियम-आधारित से भूमिका-आधारित बनाना है।

यह संरचना स्पष्ट रूप से मोदी के इक्कीसवीं सदी के शासन की मांगों के दूरदर्शी ढांचे से उभर कर सामने आई है। यह जीवंत नेतृत्व का परिणाम है। मुख्यमंत्री और फिर प्रधानमंत्री के रूप में, मोदी ने एक समग्र सरकारी संस्कृति को बढ़ावा दिया-अलग-अलग क्षेत्रों में अलगाव को खत्म किया, मंत्रियों के बीच विभिन्न क्षेत्रों में बहस पर बल दिया, और फाइलों को आगे बढ़ाने की बजाय सिस्टम समाधानों को प्राथमिकता दी। यह भावना महामारी के दौरान दिखाई दी, जब सरकार, उद्योग, नागरिक समाज और नागरिक स्वयंसेवकों के सभी स्तरों पर ‘टीम इंडिया’ एक साझेदारी मॉडल के रूप में आगे बढ़ी। उन्होंने नेतृत्व की आदतों को संरचनाओं में भी ढाला।

जो चिंतन शिविर-आवासीय, पदानुक्रम-समतल विचार-मंथन सत्र-गुजरात में शुरू किए गए थे वे अब केंद्र सरकार की कार्यपुस्तिका का हिस्सा हैं। निरंतर सीखने पर उनका बल व्यक्तिगत है। अपने ज्ञान और कौशल का निरंतर विस्तार करने के अलावा, वे यह भी जांचने के लिए जाने जाते हैं कि क्या प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारी  आईजीओटी डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करते हैं। संस्थागत स्मृति के साथ उनके व्यवहार में बहुत समावेशीता है। पदभार ग्रहण करने के तुरंत बाद, उन्होंने मंत्रियों से दशकों तक एक तरह से व्यवस्था से भली-भांति परिचित अपने सहायकों और अनुभाग अधिकारियों से सीखने का आग्रह किया।

जमीनी स्तर पर, सुधार की रीढ़ उद्देश्यपूर्ण तकनीक है। आईजीओटी-कर्मयोगी प्लेटफॉर्म एक व्यापक, कभी भी और कहीं भी सीखने का ईको सिस्टम है। इसमें 3,000 से ज्यादा स्व-प्रगति पाठ्यक्रम हैं जो सभी के लिए सुलभ हैं और सीखने को लोकतंत्रात्मक बनाते हैं। मिशन कर्मयोगी प्राचीन सभ्यतागत ज्ञान को आधुनिक शासन-कला के साथ जोड़ता है-विकास, गर्व, कर्तव्य और एकता जैसे संकल्पों के साथ-साथ स्वाध्याय, सहकार्यता, राजकर्म और स्वधर्म (नागरिकों पर ध्यान) जैसे व्यक्तिगत गुणों को भी समाहित करता है।

यह कोई पुरानी यादें नहीं हैं; यह उच्च तकनीक युग के लिए एक व्यावहारिक नैतिकता है, जो यह सुनिश्चित करती है कि योग्यता चरित्र में समाहित हो। नागरिक-केंद्रितता-जनभागीदारी-दूसरा स्तंभ है। प्रधानमंत्री मोदी बार-बार इस बात पर जोर देते रहे हैं कि प्रत्येक सार्वजनिक निर्णय के केंद्र में नागरिक होने चाहिए।  यही उनका शासन मंत्र है। व्यवहार में नागरिक सहभागिता दोतरफा समझौता बन जाती है। नीति और क्रियान्वयन में लोगों की भागीदारी होती है और अधिकारी अंतिम छोर पर खड़े अंतिम नागरिक की सेवा के लिए तैयार होते हैं। मिशन कर्मयोगी इस समझौते के लिए मानसिकता और तरीके विकसित करने का राज्य का साधन है।

आत्मनिर्भरता इसकी पूरक है। यह एकाकीपन नहीं है; यह खुलेपन और वैश्विक प्रतिस्पर्धा से प्रेरित क्षमता और आत्मविश्वास है। यही दृष्टिकोण क्षमता निर्माण के प्रयासों और माईगव जैसे प्लेटफॉर्म के व्यापक प्रसार में भी दिखाई देता है, जो नागरिकों को निष्क्रिय प्राप्तकर्ता नहीं, बल्कि सह-निर्माता बनाता है। यह कथा भारत के सभ्यतागत लोकाचार में निहित है-और संस्थानों को कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के युग में फलने-फूलने के लिए तैयार करती है। सीधे शब्दों में कहें तो, मिशन कर्मयोगी एक दूरदर्शी विचार को एक व्यवस्था में बदल देता है।

यह प्रधानमंत्री मोदी के शासन के लंबे दायरे-उनकी सीमाओं को तोड़ने की सहज प्रवृत्ति, तकनीक के साथ उनका सहज व्यवहार, संस्थागत स्मृति के प्रति उनके सम्मान और उनकी नैतिक शब्दावली-को एक दोहराए जाने योग्य संचालन मॉडल में बदल देता है: भूमिका-आधारित मानव संसाधन; निरंतर, डिजिटल शिक्षा; नागरिक भागीदारी; और सभ्यता पर आधारित नैतिकता इसमें समाहित हैं। इस तरह आप किसी देश को भविष्य के लिए तैयार करते हैं। अगर भारत इसी राह पर चलता रहा, तो इसका फायदा सिर्फ तेज गति से आगे बढ़ने वाली काम की फाइलों और व्यवस्थित संगठनात्मक चार्ट में ही नहीं, बल्कि भरोसे में भी दिखेगा। नागरिक एक ऐसी सरकार का अनुभव करेंगे जो सुनती है, सीखती है और काम करती है। यही प्रधानमंत्री मोदी के दांव का मूल है। और यही वजह है कि मिशन कर्मयोगी, हाल के दशकों के किसी भी प्रशासनिक सुधार से ज्यादा, अपने असली रूप में देखा जाना चाहिए। यह लोगों की सेवा करने वाले लोगों में एक पीढ़ीगत निवेश है और इसे एक ऐसे नेता ने तैयार किया है जिसने अपना जीवन लोगों की सेवा में ही लगा दिया है।

(डॉ. बालसुब्रमण्यम, केंद्र सरकार के क्षमता निर्माण आयोग के मानव संसाधन सदस्य हैं। लेख में विचार निजी हैं)

डॉ. आर. बालसुब्रमण्यम


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