बतंगड़ बेतुक : तो हिंदू-पाकिस्तान डरा रहा है तुम्हें

Last Updated 06 Oct 2019 12:23:03 AM IST

प्यारे भइया जुलकरनैन (माफ करना नाम लिखत में कोई गलती हो गयी हो तो, हमने अंग्रेजी में जो पढ़ा था उसको हिंदी में यहां टीप दिया है) संयुक्त राष्ट्र में तुम बोले तो खूब बोले, अपने इमरान खान नियाजी का खूब बचाव किया, अपना खूब रोना रोया, भारत को खूब कोसा, खूब डराया-धमकाया और भारत के बारे में जो खुद भारत को नहीं पता था वह दुनिया को खूब बताया।


बतंगड़ बेतुक : तो हिंदू-पाकिस्तान डरा रहा है तुम्हें

तुम को सुनकर, माफ करना अखबारों में पढ़कर, हमारा भी दिल भर आया। पहले तो मन हुआ कि तुम्हारी दुश्चिंताओं पर थोड़ा सा चिंतित हुआ जाये। मगर हम रो नहीं पाये और अनायास कई ठहाके निकल आये।
भारत के सांप्रदायिक चेहरे पर तुम्हारी चिंता अद्भुत थी। तुमने कहा कि भारतीय प्रतिनिधि का वक्तव्य आरएसएस द्वारा प्रेरित उस नफरतकारी विचारधारा का परिचायक था, जो इस समय भारत की सांप्रदायिक राजनीति का निर्णयकारी चेहरा बन गयी है। वाह भइया वाह, भारत में तो यह सांप्रदायिक चेहरा आजादी के 70 साल बाद निर्णयकारी हुआ है, तुमने तो जन्म ही सांप्रदायिक राजनीति की कोख से लिया था। तुम्हारे मुल्क का निर्माण तुम्हारी घनघोर सांप्रदायिकता पर हुआ था जिसमें सिर्फ तुम्हारे मुस्लिम संप्रदाय का वर्चस्व ही तुम्हारी जीवन ऊर्जा था, जिसमें किसी दूसरे संप्रदाय के लिए कोई गुंजाइश ही नहीं थी। भइया जुलकरनैन, बताओगे कि विभाजन के दौर में हुआ हिंसा का तांडव तुम्हारे किस सांप्रदायिक सद्भाव का परिचायक था?

जब तुमने अपने भाषण में भारत की धर्मनिरपेक्षता के स्खलन का जिक्र किया तो हम वाकई हैरानी में पड़ गये। तुमने कहा कि भारत में वे लोग अपना आत्म महिमा-मंडन कर रहे हैं जिनका एकमात्र कार्य भारत की तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के आडंबर को पूरी तरह खत्म करना रहा है। चलो, भारत में धर्मनिरपेक्षता की बदहाली पर तो हम भारतवासी भी परेशान हो रहे हैं पर तुम्हारे जैसी नंगी धार्मिक नफरत का पोषण करने वाले व्यक्ति के मुंह से धर्मनिरेपक्षता का जिक्र होना ऐसा लगता है जैसे कोई गिद्ध कबूतरों को सद्भाव का पाठ पढ़ा रहा हो। जहां तुम्हारी बहुलता हो वहां तुम घनघोर सांप्रदायिक हो जाओ, विभाजन पैदा करो और अपना पाकिस्तान बनवाओ और जहां बहुलता न हो, जहां तुम्हारा वश न चले वहां तुम चाहते हो कि धर्मनिरपेक्षता तुम्हारा व्यावसायिक माल हो जाये और तुम्हारी सुरक्षा की ढाल हो जाये। कहीं तुम्हें यह तो नहीं लग रहा कि यह ढाल टूट रही है।
तुम्हारा गांधी का जिक्र भी अभूतपूर्व था। तुमने कहा कि भारत गांधी के रास्ते से हट गया है। क्या कहने भइया जुलकरनैन! जब गांधी हिंदू-मुस्लिम एकता की अलख जगा रहा था, सांप्रदायिक सद्भाव के सूत्र सुझा रहा था, धर्म के आधार पर विद्वेष, घृणा और विभाजन के विरुद्ध तुम्हें समझा रहा था तब तुमने क्या किया? गांधी ने जो भी सद्भाव की संभावनाएं पैदा की थीं तुमने उनमें पलीता लगा दिया। गांधी ऐसा हिंदू था जो तुम्हारी घनघोर सांप्रदायिकता के बावजूद तुम्हारे पक्ष में खड़ा था। जिस गांधी ने तुम्हारी वजह से जान दी उस गांधी को तुमने धकिया कर अपनी सांप्रदायिक सोच के घेरे से बाहर फेंक दिया था। आज तुम्हें लगता है कि भारत गांधी के रास्ते से हट रहा है। तुम ठीक ही कहते हो कि भारत भी अब पाकिस्तान हो रहा है।
और क्या रोना है तुम्हारा कश्मीर का? कश्मीर मुस्लिम बहुल राज्य है इसलिए तुम मानते हो कि तुम्हारा उस पर अधिकार है। तुम डराते हो कि कश्मीर के लोग जब भारत के विरुद्ध खड़े होंगे तो भारत वहां नरसंहार करेगा और उसके बदले में तुम्हें अपने परमाणु हथियार लेकर भारत से भिड़ना पड़ेगा। इससे जो तबाही होगी उसके जिम्मेदार तुम नहीं पूरी दुनिया होगी। गिरेबान में झांककर देखो कि बंटवारे के बाद तुमने पूर्वी पाकिस्तान में क्या किया था? वहां के मुसलमान तुमसे आजादी चाहते थे तो तुमने उनके साथ कैसा सुलूक किया? तुमने तो मुस्लिम पाकिस्तान होते हुए भी दूसरे मुस्लिम पाकिस्तान, अब बांग्लादेश, को दबाने-कुचलने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। और अब तुम इस बात से डर रहे हो कि आज का हिंदू-पाकिस्तान कश्मीर में क्या करेगा?
जब भारत गांधी के प्रभाव में था, सचमुच धर्मनिरपेक्ष था, हिंदू-मुस्लिम एकता और शांति-सद्भाव की बातें कर रहा था तब तुम्हारा सांप्रदायिक मुस्लिम पाकिस्तान उसकी पूंछ में लगातार आग लगा रहा था। और अब जब भारत गांधीवाद और धर्मनिरेपक्षता की केंचुल उतारकर हिंदू-पाकिस्तान बन रहा है तो तुम्हारे पेट में मरोड़ उठ रही है। याद रखो भइया जुलकरनैन, यह हिंदू-पाकिस्तान तुमने बनाया है। तुम्हारे ही सतत् प्रयासों से बना है यह। यह हिंदू-पाकिस्तान न तुम्हारी परमाणु धमकी को सुनेगा न उससे डरेगा। तुम विनाश का न्योता दोगे तो वह भी विनाश को ही चुनेगा। शायद यही बात तुम्हें डरा रही है। है न भइया जुलकरनैन! हमारा क्या है हमारे जैसे शांति-सद्भावी लोग तो बंटवारे के वक्त भी तमाशबीन थे, अब भी तमाशबीन हैं और आगे भी तमाशबीन रहेंगे।

विभांशु दिव्याल


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