बतंगड़ बेतुक : मातम के बीच गहन-गंभीर चिंतन

Last Updated 02 Jun 2019 06:16:16 AM IST

कुछ दिन पहले तक उनकी उम्मीदों के हिरन जिस आसमान में कुलांचे भर रहे थे अब वह आसमान फट पड़ा है।


बतंगड़ बेतुक : मातम के बीच गहन-गंभीर चिंतन

चुनावी ताल में इतने भावी प्रधानमंत्री फ्री-स्टाइल छपछपाक कर रहे थे कि एक विचित्र-किंतु-सत्य पार्टी के एक आत्माभिभूत नेता ने पांच साल में पांच प्रधानमंत्रियों का अद्भुत-किंतु-असंभव सुझाव दे डाला था, अब वह ताल ही सूख गया है। दिग्विजय को निकले विभिन्न छत्रपों के बड़बोले बयानी घोड़ों की टापों से जो धरती कांप रही थी वह उनके पैरों के नीचे से ही खिसक गयी है। भूकंप आ गया है- कोई यहां गिरा, कोई वहां गिरा, किसी का पता नहीं कि कहां गिरा। भूकंप के झटके अब भी जारी हैं। छत्रपों के छत्र लुढ़क गये हैं, उनके महल कांप रहे हैं, दीवारें दरक रही हैं। कोई इस दरकती दीवार को थामने की कोशिश कर रहा है तो कोई उस दरकती दीवार को, मगर दरकन है कि थमने का नाम ही नहीं ले रही। समझ में ही नहीं आ रहा कि कौन किसको संभाले, अनहोनी हार के कारण कहां खंगाले। हार के कारण इतने सूक्ष्म, इतने रहस्यमय, इतने दृष्टि परे हो गये हैं कि पकड़ में नहीं आ रहे हैं, समझ से परे हुए जा रहे हैं, समझ की चौखट से फिसल-फिसल जा रहे हैं। पता लगाने के लिए खोजी समितियां गठित कर दी गयी हैं। वे क्या खोजेंगी यह उनका काम जाने या फिर राम जाने।

सब गहन आत्मनिरीक्षण की प्रक्रिया में हैं, सब अपने-अपने गिरेबान में झांक रहे हैं, सब अपनी चुनाव निवेशित नीतियों-रणनीतियों को फिर से आंक रहे हैं, मगर कारण हैं कि पकड़ में नहीं आ रहे हैं। उन्होंने रणनीतियां बनायी थीं तो समूची चतुराई झोंककर बनायी थीं, गठबंधन किये थे तो जमीन नाप-जोखकर किये थे, नहीं किये थे तो अपना वजन तोलकर नहीं किये थे। उनके नेताओं-प्रवक्ताओं ने अपना पक्ष रखने के लिए जुबान के सारे रस्से तुड़ा लिये थे, सरकारी पक्ष के परखच्चे उड़ा दिये थे, अपने भाषणों और तकरे से लुभावने महाजाल बुन दिये थे, चौकीदार चोर है जैसे नारे मतदाताओं को रटा दिये थे, सरकार के सारे पाप चतुर मतदाताओं को चटनी बनाकर चटा दिये थे, अपने-अपने समर्थक सरगनाओं को शानदार जीत के सारे सूत्र सिखा दिये थे, उन्हें भारी जीत के मनहर सपने दिखा दिये थे और सारे आंकड़े अपनी दिग्विजय के पक्ष में सुनिश्चित बना दिये थे। ऐसी संभाव्य सुनिश्चित जीत की ऐसी अंसभाव्य सुनिश्चित हार? नहीं, कहीं भारी गड़बड़ है, भारी खोट है, भारी चाल है, जरूर यह कोई दिग्भ्रमी मायाजाल है।
उन्होंने अपने अंतर्मन में फिर झांका-कहीं कोई गड़बड़झाला नहीं, कहीं कुछ काला नहीं, सर्वत्र उजाला ही उजाला। दूध की तरह सफेद, बगुले की तरह धवल, जीत की संभावनाओं से लबालब, अत्यधिक उज्ज्वल, अत्यधिक प्रबल। जातीय विनिमय किया सटीक किया। नये बंधन जोड़े, नयी गांठें बांधी तो मजबूत बांधी। अपने राजनीतिक अनुभवों का निवेश किया तो भारी लाभ की संभावनाओं के साथ किया, अपनी बात कही और कहलवायी तो मजबूती से कही कहलवायी। सत्ता पक्ष की बखिया उधेड़ी तो तबियत से उधड़वायी। उधर से एक नारा आया तो इधर से चार लगवाये, उधर से चार थप्पड़ आये तो इधर से चालीस जड़वाये। इतनी शानदार प्रतिबद्धता, इतनी जानदार लगन और चौकीदार से उसकी चौकीदारी छीन लेने का इतना उत्कट जतन पहले किसी ने कब किया, ऐसा विकट उत्साह कब, कहां दिखाई दिया? पर परिणाम यह आया! इस पर कोई भरोसा करे तो कहां से करे, कैसे करे? तो यह सब जनता ने किया, जनता ने धोखा दिया?
जनता उन्हें कैसे धोखा दे सकती है? कैसे उनकी विजय का चीरहरण कर सकती है? उनके सलाहकार, सिपहसालार, खैरख्वाह वफादार, उनके नीति-निर्माता, चुनाव संचालनकर्ता, कार्यकर्ता-अभिकर्ता सभी जनता की राय समेट-समेटकर ला रहे थे और उसे उनके पक्ष में बता रहे थे। जनता पूरी तरह उनके साथ थी और जनता के साथ की वजह से ही उन्हें भरपूर जीत की आस थी। अब दो ही बातें हो सकती थीं-या तो जनता ने धोखा दिया था या खुद जनता को धोखा दिया गया था। या तो जनता मूर्ख थी या जनता को मूर्ख बनाया गया था। चुनाव आगे भी होने हैं इसलिए न तो जनता को धोखेबाज कहा जा सकता है न उसे मूर्ख बताया जा सकता है। आरोप भले ही सही हो लेकिन धोखेबाजी और मूर्खता का आरोप जनता पर नहीं लगाया जा सकता है। कारणों की जांच-पड़ताल करने वाली समितियां रिपोर्ट जब सौपेंगी तब सौपेंगी, अपने शर्मसार चेहरे की खातिर कारण को टटोलना था, निष्कर्ष को निकालना था। निष्कर्ष यही निकला कि जनता को धोखा दिया गया था, मूर्ख बनाया गया था और इस काम पर ईवीएम को लगाया गया था। ईवीएम के इंजीनियर, प्रबंधक, तकनीकशियन, प्रयोक्ता और नियंता सबको देशव्यापी षडय़ंत्र में शामिल किया गया था। यह षडय़ंत्र, षडय़ंत्र प्रतीत न हो इसलिए मीडिया के परिणामपूर्व परिणाम बताने वालों को प्रायोजित किया गया था ताकि जब उनकी हार घोषित हो तो वह हार ही लगे और इस हार पर किसी का संदेह न जगे। बहरहाल, उनका मातम चल रहा  है और अभी तक पता नहीं लगा कि मातम के गर्भ में क्या पल रहा है।

विभांशु दिव्याल


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