सरोकार : आखिर, बौद्ध ही क्यों बने डॉ. अम्बेडकर!

Last Updated 02 Jun 2019 06:21:36 AM IST

डॉ. अम्बेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 अपने 6 लाख अनुयायियों के साथ बौद्ध धम्म ग्रहण किया। यह प्रश्न अक्सर अधिकांश लोगों की जिज्ञासा का विषय होता है कि आखिर अम्बेडकर ने बौद्ध धम्म ही क्यों अपनाया।


सरोकार : आखिर, बौद्ध ही क्यों बने डॉ. अम्बेडकर!

इसके बारे में कई तरह के भ्रम हैं। इस संदर्भ में अक्सर यह प्रश्न भी पूछा जाता है कि आखिर उन्होंने हिंदू धर्म छोड़कर और ईसाई धर्म या इस्लाम क्यों नहीं अपनाया? इन प्रश्न का मुकम्मिल जवाब अम्बेडकर के लेख ‘बुद्ध और उनके धर्म का भविष्य’ में मिलता है। इस लेख में उन्होंने दो टूक शब्दों में बताया है कि क्यों बौद्ध धम्म श्रेष्ठ धर्म है और क्यों यह  संपूर्ण मनुष्य जाति के लिए कल्याणकारी है। मूल रूप में यह लेख अंग्रेजी में ‘बुद्धा एंड दी फ्यूचर ऑफ हिज रिलिजन’ नाम से यह कलकत्ता की महाबोधि सोसाइटी की मासिक पत्रिका में 1950 में प्रकाशित हुआ था। इस लेख में उन्होंने विश्व में सर्वाधिक प्रचलित चार धर्मो बौद्ध धम्म, हिंदू धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम धर्म की तुलना की है। वे इन चारों धर्मो को अपनी विभिन्न कसौटियों पर कसते हैं। अम्बेडकर ईश्वर और ईश्वरी किताब विहीन धर्म की खोज कर रहे थे। उन्हें ऐसा धर्म ही पसंद था, जिसमें अंतिम सत्य जैसी कोई बात न हो। एक ऐसा धर्म जिसमें जरूरत के अनुसार निरंतर सुधार और संसोधन किया जा सके।

‘बुद्ध एंड फ्यूचर ऑफ हिज रिलिजन’ शीषर्क से लिखे अपने लेख में अम्बेडकर का कहना है कि धर्म को आधुनिक विज्ञान और तर्क की कसौटी पर खरा उतरना चाहिए। वे लिखते हैं कि ‘धर्म को यदि वास्तव में कार्य करना है तो उसे बुद्धि या तर्क पर आधारित होना चाहिए, जिसका दूसरा नाम विज्ञान ही है।’ फिर वे धर्म को स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे की कसौटी पर कसते हुए लिखते हैं कि ‘किसी धर्म के लिए इतना पर्याप्त नहीं है कि उसमें नैतिकता हो। उस नैतिकता को जीवन के मूलभूत सिद्धान्तों- स्वतन्त्रता, समानता तथा भ्रातृत्व को मानना चाहिए।’ इसका निहितार्थ यह है कि उन्हें कोई भी ऐसा धर्म स्वीकार नहीं था, जो तर्क एवं आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर खरा न उतरता हो और जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के सिद्धांतों पर आधारित न हो। बौद्ध धम्म को उपर्युक्त मानदंड़ों कसते हैं तो पाते हैं कि बौद्ध धर्म ऐसा धर्म है, जो तर्क एवं आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरता है, जो स्वतंत्रता, समता और भाईचारे पर आधारित है।

इन तुलनाओं के बाद अम्बेडकर बुद्ध की उन अन्य विशेषताओं को रेखांकित करते हैं, जिनके चलते उन्हें बौद्ध धम्म अन्य धर्मो से श्रेष्ठ लगा। वे लिखते हैं कि ‘यह तमाम बातें शायद बहुत आश्चर्यजनक प्रतीत हों। यह इसलिए कि जिन लोगों ने बुद्ध के सम्बन्ध में लिखा है, उनमें से एक बड़ी संख्या ने यह सिद्ध करने पर जोर लगाया कि बुद्ध ने केवल एक ही बात की शिक्षा दी, और वह है अहिंसा।’ वे लिखते हैं कि ऐसा मानना बहुत बड़ी गलती थी। वे आगे लिखते हैं कि ‘यह सच है कि बुद्ध ने अहिंसा की शिक्षा दी। मैं इसके महत्व को कम नहीं करना चाहता, क्योंकि यह एक ऐसा महान सिद्धान्त है कि यदि  संसार इस पर आचरण नहीं करता तो उसे बचाया नहीं जा सकेगा। मैं जिस बात पर बल देना चाहता हूं, वह यह है कि बुद्ध ने अहिंसा के अतिरिक्त और बहुत-सी बातों की शिक्षा दी। उन्होंने समानता की शिक्षा दी। न केवल पुरूष और पुरूष के बीच समानता, बल्कि पुरु ष और स्त्री के बीच समानता की भी।’ समानता को अम्बेडकर बौद्ध धर्म का सबसे मूलभूत सिद्धांत मानते थे।

सिद्धार्थ


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