पूर्वोत्तर : उम्मीद से ज्यादा

Last Updated 31 May 2019 06:41:35 AM IST

पूर्वोत्तर भारत में भाजपा के उभार में यह बात तो महत्त्वपूर्ण रही ही कि 2014 के बाद से भाजपा ने किस प्रकार सफल चुनावी गठजोड़ किए लेकिन नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व ने भी लोक सभा चुनाव में भाजपा को अन्य पार्टियों से आगे निकलने में मदद की।


पूर्वोत्तर : उम्मीद से ज्यादा

लोक सभा चुनाव के संदर्भ में नेडा (नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस) का गठन उसकी प्रभावी रणनीति साबित हुई। नेडा का गठन 2016 में किया गया था। इस मंच का गठन पूर्वोत्तर भारत में वर्चस्व रखने वाले क्षेत्रीय दलों को एक साथ लाने के लिए किया गया था। भाजपा ने क्षेत्रीय दलों के साथ इस प्रकार का तादातम्य बिठा लिया कि उसे चुनावी फायदा उठाने में मदद मिली। उसने भाजपा-विरोधी मतों को एकजुट नहीं होने दिया। हिमंत बिस्वा सरमा को नेडा का संयोजक नियुक्त किया गया। उन्होंने मणिपुर, नगालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा और मेघालय में पार्टी का विभिन्न दलों के साथ गठजोड़ कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। विभिन्न क्षेत्रीय दलों को नेडा के बैनर तले लामबंद करवा दिया।
पूर्वोत्तर भारत में राजग ने लोक सभा की 18 सीटें  जीतीं जबकि भाजपा ने 14 सीटों पर जीत हासिल की। गौरतलब है कि वहां लोक सभा की कुल सीटें 25 हैं। भाजपा का प्रदर्शन अप्रत्याशित रहा  क्योंकि उसने मणिपुर में एक सीट जीतने के साथ अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा में सभी सीटें जीत लीं। असम की 14 लोक सभा सीटों में उसने 9 सीटें जीतीं। मणिपुर और त्रिपुरा में भी पहली बार अपनी खाता खोला। इसके अलावा, असम और अरुणाचल प्रदेश में अपने पिछले प्रदर्शन को बेहतर करने में सफल रही। इसके सहयोगी दलों एनपीएफ, एनडीपीपी, एमएनएफ तथा एनपीपी ने अपने-अपने राज्यों क्रमश: मणिपुर, नगालैंड, मिजोरम और मेघालय में एक-एक सीट जीती।

भाजपा की सबसे महत्त्वपूर्ण विजय अरुणाचल प्रदेश में हुई जहां लोक सभा चुनाव के साथ हुए साठ सदस्यीय विधानसभा चुनाव में उसने 38 सीटें जीत लीं। अरुणाचल प्रदेश में पहली दफा भाजपा की निर्वाचित सरकार होगी। लेकिन भाजपा की सहयोगी पार्टी एसडीएफ को करारा झटका लगा जब वह सिक्किम में एसकेएम के हाथों अपनी एक लोक सभा सीट गंवा बैठी। सिक्किम में भी लोक सभा चुनाव के साथ ही  विधानसभा के चुनाव हुए। एसकेएम विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। भाजपा अपना खाता तक न खोल सकी जबकि उसकी सहयोगी पार्टी एसडीएफ के राज्य में 25 वर्षो से चले आ रहे शासन का समापन हो गया। सिक्किम को छोड़कर पूर्वोत्तर के बाकी राज्यों में भाजपा या उसकी सहयोगी प्रत्येक पार्टी ने कम से कम एक सीट तो जीती ही। पूर्वोत्तर भारत में आठ राज्य शुमार हैं। असम में कांग्रेस को करारा झटका लगा जहां उसकी एक सीट कम हो गई। पिछली बार उसकी लोक सभा सीटें चार थीं, जो इस बार तीन रह गई। मेघालय में उसने एक सीट जीती। इस प्रकार उसने चार सीटें जीत लीं। नगालैंड, मिजोरम, मणिपुर, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा में कांग्रेस अपना खाता तक न खोल सकी। क्षेत्रीय दलों ने कुल छह सीटें जीतीं जबकि असम के कोकराझार लोक सभा क्षेत्र में  निर्दलीय ने विजय हासिल की। पूर्वोत्तर में छह विभिन्न क्षेत्रीय दलों ने छह सीटें जीतीं। इनमें से चार पर भाजपा के सहयोगी दल विजयी रहे जबकि दो अन्य सीटों पर एआईयूडीएफ और एसकेएम ने क्रमश: असम और सिक्किम में जीत दर्ज कराई।
भाजपा को मिले जनादेश में राष्ट्रवाद का गहरा पुट है, लेकिन पूर्वोत्तर के विभिन्न राज्यों में मात्र इसी से काम नहीं चला। क्षेत्रीय संदभरे को अनदेखा नहीं किया जा सकता और इस दृष्टि से इस जनादेश को समझा जाना महत्त्वपूर्ण है। विपक्षी दलों के विपरीत भाजपा ने यहां के विभिन्न राज्यों में विभिन्न मुद्दों को उठाया। नगालैंड और अरुणाचल में उसकी रणनीति खासी भिन्न थी। लेकिन दोनों ही राज्यों में राजग जीता। बेशक, भाजपा और राजग को नेतृत्व के नाम पर बढ़त मिली। उनका चुनाव अभियान प्रमुख रूप से प्रधानमंत्री के नेतृत्व पर केंद्रित रहा। केंद्र में मजबूत और निर्णायक नेतृत्व के मुद्दे ने पारंपरिक रूप से केंद्र में आसीन सरकार पर निर्भर रहने वाले इस क्षेत्र में रंग जमा दिया। राजग का अभियान तीन प्रमुख मुददों पर केंद्रित रहा। ये मुद्दे थे-मोदी का नेतृत्व, केंद्र में भाजपा-नीत सरकार की विकासोन्मुख गतिविधियां और 2014 के बाद से पूर्वोत्तर के इस क्षेत्र के विभिन्न राज्यों में भाजपा-नीत सरकारों का प्रदर्शन। इन सभी राज्यों में भाजपा ‘फिर एक बार मोदी सरकार’ के नारे में क्षेत्रीयता के पुट के साथ मैदान में उतरी। विपक्षी पार्टियों ने अपना अभियान नागरिकता संशोधन बिल तथा मोदी के नेतृत्व के विरोध पर केंद्रित रखा।
एआईयूडीएफ की केवल तीन सीटों-बरपेटा, धुबरी और करीमगंज-से चुनाव लड़ने की घोषणा कांग्रेस के पक्ष में जाती दिखी क्योंकि उसे कालियाबोर, नौगांव और सिल्चर में मुस्लिम मतों के अपने पक्ष में एकजुट होने की उम्मीद बंधी। गौरतलब है कि इन छहों लोक सभा क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या खासी है। लगा कि इन दोनों पार्टियों के बीच कोई समझ बन चुका था। हालांकि कांग्रेस ने छहों लोक सभा क्षेत्रों से अपने प्रत्याशी उतारे। नतीजतन, करीमगंज में मुस्लिम मतदाता कांग्रेस और एआईयूडीएफ के बीच बंट गए और भाजपा को यह सीट निकालने में आसानी हो गई। सर्वाधिक रोचक मुकाबला सिल्चर में रहा जहां भाजपा प्रत्याशी ने कांग्रेस की सुष्मिता देव को बंगालीभाषी हिंदू समुदाय के मतदाताओं का मत मिल जाने से पराजित कर दिया। अलबत्ता, कालियाबोर और नौगांव में एआईयूडीएफ के प्रत्याशी न होने का फायदा कांग्रेस को मिल गया। उसने दोनों सीटें निकाल लीं। एआईयूडीएफ के तीन सीटों पर प्रत्याशी नहीं उतारने से हिंदू और मुस्लिम मतदाताओं का ध्रुवीकरण हो गया। इससे गुवाहाटी, मंगालदाई, तेजपुर और खास तौर पर सिल्चर में भाजपा को फायदा हुआ। चाय आदिवासियों और अनुसूचित जातियों के मतदाता भाजपा के साथ बने रहने से उसे लखीमपुर, डिब्रूगढ़, जोरहाट और तेजपुर की सीटें निकालने में मदद मिली।
कांग्रेस की विफलता यह रही कि वह प्रमुख क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन सिरे नहीं चढ़ा सकी और क्षेत्र में बने महागठबंधन का सामना नहीं कर पाई। भाजपा नेडा के माध्यम से क्षेत्रीय दलों को साथ लेकर उनके साथ सीटों का बंटवारा भी इस तरीके से करने में सफल रही कि  उसने कांग्रेस को हाशिये पर धकेल दिया। नेतृत्व के मुद्दे और सोच-समझ कर किए गठबंधन से भाजपा ने पूर्वोत्तर में अप्रत्याशित सफलता हासिल की। यह सफलता यकीनन कह सकते हैं कि उसकी उम्मीद से कहीं ज्यादा है। यह भी कह सकते हैं कि पूर्वोत्तर में भाजपा ने अपनी जोरदार दस्तक दे दी है।

विकास त्रिपाठी/ध्रुबा प्रतिम सरमा


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment