अच्छे दिन : फौज में लेडीज स्पेशल

Last Updated 30 Apr 2019 05:47:07 AM IST

पहला मौका है जब भारतीय सेना ने देश सेवा का सपना देख रही युवतियों-महिलाओं के लिए महिला सैन्य पुलिस में सैनिकों के रूप में भर्ती का विज्ञापन निकाला है।


अच्छे दिन : फौज में लेडीज स्पेशल

अभी तक शॉर्ट सर्विस कमीशन के जरिए सेना की मेडिकल, सिग्नल, एजुकेशन और इंजीनियरिंग कोर में भर्ती की जाने वाली महिलाओं को सीधे मोर्चे पर लड़ाकू भूमिका में भेजने से परहेज था। पूछा जाता था कि क्या महिलाएं दुश्मन से मोर्चा लेने के लिए सरहद पर जाने और सीमा पर वापस आते ताबूतों को देखने के लिए तैयार हैं (संदर्भ-पिछले वर्ष सेना प्रमुख बिपिन रावत का बयान)। महिलाओं की दृढ़ता पर सवाल उठाती आशंकाओं का ही प्रतिफल है कि थल सेना में महिलाओं की हिस्सेदारी सिर्फ  3.80 फीसद, वायु सेना में 13.09 फीसद और नौसेना  में 6 फीसद है।
करीब 14 लाख सशस्त्र बलों के 65 हजार अफसरों के कैडर में देखें तो थल सेना में 1500, वायु सेना में 1600 और नौसेना में मात्र 500 महिलाएं हैं। बेशक, सेना में महिलाओं को अब से दो की बजाय दस शाखाओं में परमानेंट कमीशन देने पर तो सहमति है, लेकिन उन्हें कमांड भूमिकाओं में अब भी नहीं लाया जाएगा। तात्पर्य यह कि महिलाओं को किसी यूनिट के नेतृत्व का मौका नहीं मिलेगा। कमांडिंग अफसर बनने की बजाय परमानेंट कमीशन मिलने के बावजूद कर्नल के पद तक ही पहुंच सकेंगी। विचार होना चाहिए कि महिलाओं को सरहद पर जाकर दुश्मन से सीधे मोर्चा लेने से दूर रखने और कमांडिंग भूमिकाएं नहीं देने का असर हुआ है कि महिलाओं को घर में अक्सर मदरे के हाथों पिटना पड़ता है। वे इस अत्याचार को खून का घूंट पीकर चुप रह जाती हैं। यह स्थिति तब है, जब एक महिला निर्मला सीतारमण देश की रक्षा मंत्री हैं।

रास्ता अब जाकर थोड़ा खुला है। महिलाएं अभी सेना में हैं पर लड़ाकू भूमिका में नहीं। वैसे हर साल सशस्त्र सुरक्षा बलों की तीनों शाखाओं में करीब 3300 महिलाओं की भर्ती होती है, लेकिन वे सीधे दुश्मन से नहीं भिड़ती हैं। महिलाओं को लड़ाकू भूमिका नहीं देने को लेकर कुछ बाधाओं की बात कही जाती रही है। जैसे कहा जाता है कि अगर जंग हुई और लड़ाकू सैनिक महिलाएं दुश्मन के कब्जे में ले ली गई तो युद्धकैदी के रूप में उनके बदले दुश्मन ज्यादा मोलभाव करने की हैसियत में आ जाते हैं। इसके अलावा, जितनी कठोर डय़ूटी सैनिकों को निभानी पड़ती हैं, हो सकता है कि महिलाएं उनमें कमजोर साबित हों। लड़ाकू जवान के रूप में एक सैनिक की भूमिका छावनी क्षेत्र और सैन्य प्रतिष्ठानों में पुलिसिंग की होती है। सैनिकों को नियम-कायदों को तोड़ने से रोकना, सैन्य मूवमेंट, युद्ध बंदियों को संभालना और जरूरत पड़ने पर सिविल पुलिस की मदद का काम भी सेना के जवानों को करना होता है। हालांकि इससे इतर भूमिकाएं महिलाओं को हमारे देश में दी जा चुकी हैं।  जैसे वर्ष 2016 में इंडियन एयरफोर्स ने तीन महिलाओं को फाइटर पायलट के रूप में शामिल किया था। बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (बीएसएफ) में भी महिला अफसरों की नियुक्ति की पहलकदमी की जा चुकी है।
अभी भी महिलाओं को सीआरपीएफ और सीआईएसएफ में अफसर की वर्दी पहनने का मौका मिलता है, लेकिन वहां यह लेडीज स्पेशल मोर्चे पर दुश्मन फौज का सीधा मुकाबला नहीं करती क्योंकि दोनों सुरक्षा बलों की जिम्मेदारी आंतरिक सुरक्षा की होती है। जहां तक लड़ाकू सैनिक के रोल की बात है, तो फिलहाल जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन, डेनमार्क, फिनलैंड, फ्रांस, नॉर्वे, स्वीडन और इस्रयल में महिलाएं इस भूमिका में सफलतापूर्वक काम कर रही हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ समय से अदालतें लगातार विभिन्न पेशों में महिलाओं को आगे लाने संबंधी फैसले देती रही हैं। इतना ही नहीं, हमारी सरकार भी इस बारे में आग्रह करती रही है कि अब मौका आ गया है, जब उन सारे सेक्टरों में महिलाओं की उपस्थिति तो दर्ज हो, जिन्हें हमारे देश में महिलाओं के लिए वर्जित माना जाता रहा है यानी महिलाएं अब सिर्फ  टीचर बन कर न रह जाएं।
वे आईटी में जाएं, बैंकों में जाएं, इंजीनियर-साइंटिस्ट बनें, स्पेस में जाएं और सबसे कठिन माने जाने वाले पेशे यानी फौज में भी अपनी मौजूदगी इस तरह दर्ज कराएं कि वहां वे दुश्मन के सामने मौजूद हों और अपनी फौजी टुकड़ी में जोश भरकर शत्रु पर हमला बोलने आदेश दें।  हमें इस बात का शुक्र मनाना चाहिए कि इसका एक शुरु आती मौका अब देश की महिलाओं के सामने है, और जिसका फौरी जवाब देने की तारीख आठ जून, 2019 है। दुआ और उम्मीद करें कि आगे चलकर महिलाएं फौज में कमांडर की भूमिका में भी आएंगी।

मनीषा सिंह


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