शहादत दिवस : बापू ने ऐसे धोया गोरों को

Last Updated 30 Jan 2018 02:34:47 AM IST

बाल गंगाधर तिलक के निधन के बाद स्वाधीनता आंदोलन को नये सिरे से संजोने की जिम्मेदारी संभाल रहे महात्मा गांधी 10 फरवरी, 1921 को वाराणसी में काशी विद्यापीठ के शिलान्यास के बाद ट्रेन से फैजाबाद पहुंचे तो उनका उद्देश्य अयोध्या जाकर साधुओं को आंदोलन से जोड़ना भी था.


शहादत दिवस : बापू ने ऐसे धोया गोरों को

अपने आराध्य राजा राम की जन्मभूमि और राजधानी की गांधी जी की यह पहली यात्रा थी. 11 फरवरी की सुबह अयोध्या में साधुओं की सभा में उन्होंने कहा, ‘भारतवर्ष में 56 लाख साधु हैं. ये 56 लाख बलिदान के लिए तैयार हो जाएं तो अपने तप तथा प्रार्थना से भारत को स्वतंत्र करा सकते हैं. लेकिन ये अपने साधुत्व के पथ से हट गए हैं. इसी प्रकार मौलवी भी भटक गए हैं. साधुओं और मौलवियों ने केवल हिन्दुओं तथा मुसलमानों को एक दूसरे से लड़ाया है. मैं  दोनों के लिए कह रहा हूं..यदि आप अपने धर्म से वंचित हो जाएं, विधर्मी हो जाएं और अपना धर्म समाप्त कर दें, तब भी ईश्वर का कोई ऐसा आदेश नहीं हो सकता जो आपको ऐसे दो लोगों के बीच शत्रुता उत्पन्न करने की अनुमति दे, जिन्होंने एक दूसरे के साथ कोई गलती नहीं की है.’

वे यहीं नहीं रु के. कहा, ‘मैंने हरिद्वार में साधुओं से कहा था कि गाय की रक्षा करना चाहते हैं तो मुसलमानों के लिए अपनी जान दें. आज फिर अपील करता हूं कि साधु गाय की रक्षा करना चाहते हैं, तो खिलाफत के लिए जान दे दें..वे गाय की रक्षा के लिए मुसलमानों की हत्या करते हैं, तो उन्हें हिन्दू धर्म का परित्याग कर देना चाहिए. हिन्दुओं को इस प्रकार के निर्देश कहीं भी नहीं दिए गए हैं..कलकत्ता के हमारे मारवाड़ी बंधुओं ने मुझसे कसाइयों के हाथों से दो सौ गायों की रक्षा के लिए कहा. मैंने कहा कि मैं एक भी गाय की रक्षा नहीं करूंगा, जब तक कसाइयों को यह न बता दिया जाए कि वे बदले में कौन-सा दूसरा पेशा अख्तियार करें क्योंकि वे जो करते हैं, हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए नहीं करते..बंबई में क्या हुआ? वहां कसाइयों के पास सैकड़ों गायें थीं. कोई भी हिन्दू उनके पास नहीं गया. खिलाफत कमेटी के लोग गए और कहा कि यह ठीक नहीं है. वे गायों को छोड़ दें और बकरियां खरीदें. कसाइयों ने सब गायें समर्पित कर दीं. किसी को भी एक पैसा नहीं देना पड़ा. इसे गाय की रक्षा कहते हैं.’ उन्होंने साफ किया, ‘गाय की रक्षा का तात्पर्य किसी जानवर की रक्षा से नहीं है. ‘इसका तात्पर्य निर्बल एवं असहाय की रक्षा से है, और ऐसा करके ही भगवान से अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना करने का अधिकार मिल सकता है. भगवान से अपनी रक्षा की प्रार्थना करना पाप है, जब तक कि हम कमजोरों की रक्षा नहीं करते.’ अंत में वे बोले, ‘संस्कृत के विद्यार्थी यहां आए हुए हैं. मैं उनसे कहता हूं कि अपने मुसलमान भाइयों के लिए जीवन का बलिदान करें..मैं आशा करता हूं कि यहां के साधुओं के पास जो कुछ है, उसका कुछ अंश वे मुझे दे देंगे..स्वराज्य के लिए यह सहायक होगा.’ उनके इस संबोधन का अंग्रेजी अनुवाद लखनऊ स्थित उत्तर प्रदेश राजकीय अभिलेखागार में संरक्षित है. कहते हैं कि अयोध्या और उसके जुड़वां शहर फैजाबाद लोग शहर के लोग बापू की इस सभा से पहले, उनकी टेऊन के रेलवे स्टेशन पहुंचने से घंटों पूर्व ही वहां से सभा स्थल तक सड़कों पर, और नहीं तो, उनके किनारे स्थित घरों की छतों पर जा खड़े हुए थे. फैजाबाद के ऐतिहासिक घंटाघर पर शहनाई बज रही थी-हमें आजाद कराने को गांधी जी आते हैं. लेकिन ट्रेन आई और स्थानीय कांग्रेसियों के दो नेता-आचार्य नरेन्द्र देव और महाशय केदारनाथ-गांधी जी के ‘कूपे’ में गए तो पाया कि उन्होंने अपने आसपास की खिड़कियां बंद कर ली हैं, और किसी से बात करने तक से मना कर दे रहे हैं. दरअसल, उन दिनों अवध में चल रहा किसान आंदोलन खासा उत्पाती हो चला था, और उसूलों व सिद्धांतों से ज्यादा युद्धघोष की भाषा समझता था. उसके लिए अहिंसा कोई बड़ा मूल्य नहीं रह गई थी. फैजाबाद जिले के किसानों ने तो बेहद हिंसक तेवर अपनाकर परगना बिड़हर के तालुकेदारों और जमींदारों के घरों में आगजनी, लूटपाट तक कर डाली थी. यह स्थिति बापू की बर्दाश्त के बाहर थी.
बाद में आचार्य के अनुनय-विनय पर उन्होंने यह बात मान ली कि वे सभा में चलकर लोगों से अपनी नाराजगी ही जता दें. बापू मोटर पर सवार होकर जुलूस के साथ चले तो देखा-खिलाफत आंदोलन के अनुयायी हाथों में नंगी तलवारें लिए उनके स्वागत में खड़े हैं. उन्होंने वहीं तय कर लिया कि अपने भाषण में  हिंसक किसानों के साथ इन अनुयायियों की भी र्भत्सना करेंगे.

कृष्ण प्रताप सिंह


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