दावोस : मोदी ने प्रभावित किया
स्विट्जरलैंड का दावोस शहर आल्प्स पर्वत और वासर नदी के किनारे बसा है. इस सुंदर शहर की प्रसिद्धि पिछले लंबे समय से आयोजित होने वाले विश्व आर्थिक मंच के कारण है.
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विश्व आर्थिक मंच की स्थापना 1971 में जेनेवा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर क्लॉज एम ाब ने की थी. यह गैर-लाभकारी एनजीओ है, जो व्यापार, राजनीति, शैक्षिक व अन्य क्षेत्रों के वैश्विक नेताओं व अग्रणी लोगों को एक साथ लाकर वैश्विक, क्षेत्रीय और औद्योगिक दिशा तय करना अपना लक्ष्य बताता है.
इस मंच पर सभी देश अपनी नीतियों को ठीक प्रकार से रखकर न केवल निवेश एवं पर्यटन को आमंत्रित करने की कोशिश करते हैं, बल्कि विश्व की चुनौतियों पर अपने विचार तथा रणनीति भी रखते हैं. हर वर्ष के सम्मेलन का एक थीम होता है. इस बार की थीम था-बंटी हुई दुनिया के लिए साझा भविष्य का निर्माण. इस बार के सम्मेलन में 70 देशों के करीब 350 नेताओं समेत 3000 लोग शामिल हुए. विश्व व्यापार संगठन, विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष समेत 38 संगठनों के प्रमुखों ने भी इसमें भाग लिया. 2,000 कंपनियों के सीईओ भी मौजूद रहे. भारत के लिए यह इस मायने में महत्त्वूर्ण था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को उद्घाटन भाषण देना था. प्रश्न स्वाभाविक है कि प्रधानमंत्री मोदी अपने देश की बेहतर तथा विसनीय छवि बनाने में सफल हुए या नहीं?
कहने की आवश्यकता नहीं कि मोदी अपनी अन्य विदेश यात्राओं के अनुरूप पूरी तैयारी के साथ गए थे. उद्घाटन के पहले दुनिया एवं भारत के प्रमुख सीईओ के साथ उन्होंने बैठक की और अपने देश में आर्थिक सुधारों की चर्चा करते हुए कहा कि भारत का मतलब ही है कारोबार. बैठक के बाद जो दृश्य था, उससे साफ लग रहा था कि सीइओ प्रभावित हुए हैं. यह महत्त्वपूर्ण बैठक थी. आखिर, एक बड़ा उद्देश्य पूंजी को आकर्षित करना था. उद्घाटन भाषण तो इतना शानदार था कि वहां उपस्थित सभी प्रतिनिधियों ने उसे ‘स्टैंडिंग ओवेशन’ दिया यानी सम्मान में खड़े होकर तालियां बजाई. वास्तव में अपने देश का बखान करते हुए मोदी ने दुनिया के सामने उपस्थित चुनौतियों तथा उनसे निपटने के रास्ते भी सुझाए. इसलिए उसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था. मोदी ने वायुमंडलीय परिवर्तन, आतंकवाद और संरक्षणवाद दुनिया के सामने तीन सबसे बड़ी चुनौतियां बताई. दरारों से भरे विश्व में साझा भविष्य का निर्माण को रेखांकित करते हुए कहा कि नये-नये बदलावों से नई-नई शक्तियों से आर्थिक क्षमता और राजनीतिक शक्ति का संतुलन बदल रहा है. विश्व के सामने शांति-स्थिरता और सुरक्षा को लेकर नई और गंभीर चुनौतियां हैं. बहुत से बदलाव ऐसी दीवारें खड़ी कर रहे हैं, जिन्होंने पूरी मानवता के लिए शांति और समृद्धि के रास्ते को दुर्गम ही नहीं दु:साध्य बना दिया है. ये दरार, बंटवारा और बाधक विकास के अभाव की हैं, गरीबी की हैं, बेरोजगारी की हैं. यहीं पर उन्होंने भारतीय दर्शन को प्रस्तुत करते हुए कहा कि भारत में अनादिकाल से हम मानवमात्र को जोड़ने में विश्वास करते आए हैं, उसे बांटने में नहीं.
हजारों साल पहले संस्कृत भाषा में लिखे गए ग्रंथों में भारतीय चिंतकों ने कहा-वसुधैवकुटुम्बकम यानी पूरी दुनिया एक परिवार है. यह धारणा निश्चित तौर पर आज दरारों और दूरियों को मिटाने के लिए ज्यादा सार्थक है. इस प्रकार की बातें इसके पहले उस मंच से सुनने को कहां मिलती थीं. जिन तीन चुनौतियों की उन्होंने चर्चा की उन पर भी विस्तार से अपनी बातें रखीं. वायुमंडल परिवर्तन पर कहा कि अतिवादी मौसम का प्रभाव दिन-ब-दिन बढ़ रहा है. हर कोई कहता है कि कार्बन उत्सर्जन कम किया जाना चाहिए. लेकिन ऐसे कितने देश या लोग हैं, जो विकासशील देशों और समाजों को उपयुक्त तकनीक उपलब्ध कराने के लिए आवश्यक संसाधन मुहैया कराने में मदद करना चाहते हैं. यह विकसित और संपन्न देशों की ओर इंगित सख्त टिप्पणी थी, जिसका मतलब है कि इसके बगैर यह संभव नहीं. हालांकि उन्होंने कहा कि भारत ने अपनी ओर से 2020 तक 175 गीगावाट रिन्यूएबल एनर्जी का उत्पादन करने का लक्ष्य रखा है.
2016 में भारत और फ्रांस ने मिलकर इंटरनेशनल सोलर अलायंस के रूप में पहल की जो अब एक वास्तविकता है. इस भाषण में भी मुख्य थीम त्यागपूर्वक भोग के भारतीय दशर्न को प्रस्तुत करना रहा. इसी तरह आतंकवाद पर उन्होंने फिर अच्छे और बुरे आतंकवाद में भेद करने का मुद्दा उठाते हुए इसे खतरनाक बताया. संरक्षणवाद पर उनका निशाना ज्यादा तीखा था. उन्होंने उन देशों को आड़े हाथ लिया जो एक समय भूमंडलीकरण की वकालत करते थे और आज उसके विपरीत व्यापार पर अनेक प्रकार की बाधाएं खड़ी कर रहे हैं. कहा कि हर कोई अंतर्सबंद्ध विश्व की बात करता है, लेकिन भूंडलीकरकण की चमक कम हो रही है. फिर यहां भी भारतीय विचार. हम उनके पूरे भाषण को यहां उद्धृत नहीं कर सकते, पर वे इतने सुगठित, तथ्यों और कटु सच्चाइयों के साथ गहरे भारतीय दर्शन के उदाहरणों से भरे पड़े थे कि सुनने वाले मंत्रमुग्ध थे. इसका असर कितना होगा कहना कठिन है, लेकिन विश्व आर्थिक मंच पर इस तरह का भाषण पहली बार सुना गया. अंत में थीम को समेटते हुए चार मुख्य समाधान दिए, जिनमें एक विश्व की बड़ी ताकतों के बीच सहयोग और संबंध की जरूरत थी.
उन्होंने कहा कि साझा चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए हमें अपने मतभेदों को दरकिनार करके एक व्यापक दृष्टि बनानी होगी. दूसरे, नियमों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का पालन करना. तीसरा, विश्व के प्रमुख राजनीतिक और आर्थिक संस्थानों में सुधार की जरूरत. और चौथा, विश्व की आर्थिक प्रगति में और तेजी लाना. उनका यह कहना निश्चय ही सम्मेलन के अंत तक गूंजता रहा कि विश्व में तमाम तरह की दरारों को देखते हुए आवश्यक है कि हमारे साझा भविष्य के लिए हम कई दिशाओं पर ध्यान दें. शायद इसी का प्रभाव था कि डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि अमेरिका फस्र्ट का मतलब केवल अमेरिका से नहीं है, अमेरिका का सशक्त होना दुनिया के हित में है.
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