फर्जी बाबा : इनसे बचके रहना

Last Updated 12 Sep 2017 01:46:57 AM IST

इसे बहुत पहले हो जाना चाहिए था. लेकिन चलिए, ‘देर आयद दुरुस्त आयद’. पिछले कुछ सालों में स्वयंभू बाबाओं के विवाद में आने के बाद आखिरकार साधुओं की शीर्ष संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद को कार्रवाई के लिए मैदान में उतरना ही पड़ा.


फर्जी बाबा : इनसे बचके रहना

संस्था ने 14 फर्जी बाबाओं की सूची सार्वजनिक कर जनता को इन ढोंगियों से दूर रहने की अपील की है. साथ ही सरकार से इन लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की मांग की है. संस्था का मानना है कि ऐसे जितने भी बाबा हैं, वह न किसी संप्रदाय से आते हैं और न किसी परम्परा के हैं.

लाजिमी है, संत समाज में येन-केन-प्रकारेण में स्थापित हो चुके ढोंगी बाबाओं को लेकर जनता में रोष और आक्रोश है. जनता उनके आचरण से दुखी और हतप्रभ भी है. खासकर आसाराम, रामपाल और राम रहीम के काले कारनामों ने साधु और संत समाज में व्याप्त सड़ांध को उजागर कर दिया है. वैसे, फर्जी बाबाओं की अराजकता और लोगों को छलने के लिए वरिष्ठ संत समाज और अखाड़ा परिषद कम दोषी नहीं है.

अभी ज्यादा वक्त नहीं गुजरा जब राधे मां और नोएडा के शराब कारोबारी सचिन को महामण्डलेर की उपाधि प्रदान की गई. क्या यह उपाधि देने के पहले अखाड़ा परिषद को इस बात का इल्म नहीं था कि इन लोगों के कारनामे किस तरह के हैं या समाज में इनका आचार-विचार कितना परिष्कृत और शुद्ध है? संशय इस बात पर भी है कि क्या सिर्फ यही 14 लोग समाज और साधु समाज दोनों के लिए अनिष्टकारी हैं या कई ऐसे भी छुपे रुस्तम हैं, जो फिलहाल संदेह का लाभ पा गए हैं. कहना कठिन है, मगर इस बात में दो राय नहीं कि संतों की प्रतिष्ठा को हाल के वर्षो में गहरा आघात लगा है. न केवल चरित्र का गिराव साधुओं में गहरे तक हुआ है बल्कि संपत्ति को लेकर केस-मुकदमे, आरोप-प्रत्यारोप और मारपीट बल्कि हत्या करने और कराने के आरोप भी बहुतायत में लगे हैं. अकेले अयोध्या में गद्दी के लिए 600 मुकदमे चल रहे हैं.

तो फिर किस मुंह से संतों और हिन्दू धर्म पर आघात  की बात की जाती है? जहां तक केंद्र सरकार, राज्य सरकार और विपक्षी दलों को सूची सौंपने और उनसे इन फर्जी बाबाओं के खिलाफ कार्रवाई करने की दलील है, पहले खुद को चरित्रवान और सिद्ध बनना ज्यादा महत्त्वपूर्ण है. देश में 13 अखाड़े हैं और इन 13 अखाड़ों ने सर्वसम्मति से इन फर्जी बाबाओं की सूची बनाई और जारी की है. लेकिन कथित तौर पर ऐसे कई बाबा हैं, जो इन अखाड़ों से जुड़े नहीं हैं. उनका क्या? फिर भी अखाड़ा परिषद के निर्णय की सराहना करनी चाहिए. बावजूद इसके अखाड़ा परिषद को ऐसे ढोंगी, फर्जी, चरित्रहीन और लुटेरे बाबाओं की पहचान करने के लिए कई स्तरों पर काम करना होगा.

जिस धर्म में अध्ययन, आचरण के बल पर बाबा बनते हैं, उसी धर्म में बगैर मेहनत, बगैर पुरुषार्थ, बगैर लगन  और बगैर मनोभाव को बदले हुए अंदर-बाहर से परिमार्जित हुए बिना कुछ नहीं मिलता है. है ही नहीं कुछ. हां, ऐसी भी मान्यता है कि ईश्वर प्रदत्त भी कोई चीज होती है. जैसे; स्वामी विवेकानंद में थी, जिनकी कुंडली जाग्रत थी. उन्हें देखकर ही रामकृष्ण परमहंस ने कह दिया, तुम कहां थे नरेन्द्र? मैं तुम्हें ही खोज रहा था. उन्होंने उनमें विलक्षण पक्ष देख लिया था. तो इस तरह के लोग विरले होते हैं.

जो आते हैं पुण्य लेकर और जाग्रत चेतना वाले लोग होते हैं. जिनको लोग अपनी बात कहते हैं. वरना 99 फीसद लोगों को अपनी मेहनत से सबकुछ मिलता है. और ईश्वर की कृपा-अनुकम्पा बाद में आती है. तो हिन्दू समाज को यह समझना होगा कि लोक के लिए कुछ नहीं है. तो क्यों बाबाओं के चंगुल में आप अपनी अंधभक्ति-अंधश्रद्धा से उनको अनाचारी-दुराचारी बना देते हैं? जनता को यह मानना ही होगा कि कठोर परिश्रम में ही हल लिखा है. योग्य व्यक्ति के नजदीक पहुंचने पर ही आपकी समस्या का समाधान है.

कोई गण्डा-ताबीज कुछ नहीं कर सकता है. हां, भक्ति की मान्यता है. लेकिन भक्ति वही अंधभक्ति नहीं है. इसमें भीतर से बदलने की बात है. आप अपने को बदलते नहीं है. और अपनी कमजोरियों के चलते आप बाबाओं को बाबा बनाते हैं. और कोई बाबा फर्जी निकलता है तो उसके लिए सिर्फ-और-सिर्फ आप जिम्मेदार हैं. यह ठीक है, श्रद्धा में बुद्धि नहीं चलती, तर्क नहीं चलता. लेकिन यह भी तो पूछा जाए कि साधु या बाबा सेब या कोई मिठाई कैसे ला सकता है? यह कोई योग नहीं है बल्कि जादू है-हाथ की सफाई है. हां, सिद्ध योगी या बाबा इस तरह के आचरण का दिखावा करते ही नहीं हैं. प्रदर्शन नहीं करते.

राजीव मंडल
लेखक


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