अर्थव्यवस्था : दूर करें सुस्ती

Last Updated 12 Sep 2017 01:51:07 AM IST

इन दिनों देश और दुनिया के आर्थिक संगठनों के द्वारा भारत की अर्थव्यवस्था को सुस्ती के दौर से बचाने के लिए गंभीर आर्थिक सुधार की जरूरत से संबंधित विश्लेषण प्रकाशित किए जा रहे हैं.


अर्थव्यवस्था : दूर करें सुस्ती

केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) के जारी आंकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2017-18 की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) में विकास दर घटकर 5.7 फीसद रह गई, जो पिछली तिमाही के 6.1 फीसद से भी कम है. यह तीन साल के सबसे निचले स्तर पर है.

पिछले दिनों दुनिया के देशों के आर्थिक परिदृश्य का मूल्यांकन करने वाले अमेरिका के वैश्विक संगठन डन एंड ब्रैडस्ट्रीट (डीएंडबी) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में नोटबंदी के नौ माह और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के दो माह बाद भी उपभोग और निवेश मांग कमजोर बनी हुई है. इसके अलावा रिपोर्ट में बैंकों के बढ़ते डूबे कर्ज और कंपनियों के कमजोर बही-खातों और किसानों की ऋण माफी को भी इस समस्या की वजह बताया गया है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि चूंकि मॉनसून की बारिश का वितरण छितराया हुआ है, जिससे ग्रामीण मांग प्रभावित हो सकती है. वहीं वस्तु एवं सेवा कर व्यवस्था की वजह से भी अड़चनें आ सकती हैं, जिससे कंपनियों की बिक्री प्रभावित हो सकती है. इसी तरह से इन दिनों भारत के आर्थिक परिदृश्य से संबंधित राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अध्ययन रिपोर्ट में यह कहा जा रहा है कि पिछले एक वर्ष के दौरान भारत में विकास दर, उत्पादन, निवेश, निर्यात और रोजगार के क्षेत्र में धीमापन भारत के लिए एक नई चुनौती बन गया है और इस पर ध्यान नहीं दिए जाने पर देश मंदी के नजदीक है.

विश्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष 2017-18 के लिए भारत की विकास दर 7.6 फीसद से घटाकर 7.2 फीसद कर दी है. विश्व बैंक ने नोटबंदी के असर और निवेश माहौल सुधरने में अधिक समय लगने का हवाला देते हुए जीडीपी का अनुमान घटाया है. हाल ही में जहां सेंटर फॉर मॉनिटरिंग द इंडियन इकोनामी और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के द्वारा प्रस्तुत किए आंकड़ों में विकास और निवेश में कमजोरी की बात कही गई है, वहीं केंद्र सरकार के द्वारा पिछले माह 11 अगस्त को पहली बार संसद में प्रस्तुत की गई अर्ध वाषिर्क आर्थिक समीक्षा में देश की अर्थव्यवस्था की हालत चिंताजनक बताई है.

कहा गया है कि फरवरी 2017 में बजट से पहले जारी समीक्षा में 6.75-7.5 प्रतिशत ग्रोथ रेट की जो उम्मीद जताई गई थी वित्तीय वर्ष 2017-18 में उसे पाना बहुत मुश्किल दिखाई दे रहा है. रुपये में मजबूती, किसान कर्ज माफी, नोटबंदी और जीएसटी की दिक्कतों को इसकी वजह बताया गया है. न केवल औद्योगिक और कारोबार में गिरावट वरन कर्ज, निवेश, कंपनियों की क्षमता का इस्तेमाल-इन सबके आंकड़े बताते हैं कि वास्तविक आर्थिक गतिविधियां धीमी हुई हैं. न केवल संसद में प्रस्तुत अर्ध वाषिर्क समीक्षा में नोटबंदी व जीएसटी के कारण विकास दर धीमी होने की बात कही गई है, वरन इन दिनों भारत के आर्थिक एवं वित्तीय परिदृश्य से संबंधित प्रकाशित हो रही प्रमुख रिपोटरे में भी यह कहा जा रहा है कि भारत के समक्ष आर्थिक चाल सुधारने और विकास दर बढ़ाने की अहम चुनौती है.

निश्चित रूप से पिछले एक वर्ष में रोजगार, निर्यात और उद्योग-कारोबार में निजी निवेश की भारी कमी ने अर्थव्यवस्था को अधिक प्रभावित किया है. हाल ही में ‘र्वल्ड इकोनॉमिक फोरम’ के द्वारा प्रकाशित ‘ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट 2017’ में कहा गया है कि रोजगार पैदा करने की सीमित क्षमता का परिदृश्य भारत के लिए गंभीर चुनौती है. यद्यपि सरकार कौशल विकास से रोजगार बढ़ाने के लिए लगातार प्रयासरत दिखी. लेकिन देश में रोजगार नहीं बढ़ने के कई कारण रहे हैं.

सर्विस सेक्टर के तहत कई क्षेत्रों में नौकरियों की बढ़ोतरी का अनुपात समान नहीं रहा. कई सेवाओं और आईटी सेक्टर में टेक्नोलॉजी, ऑटोमेशन के कारण रोजगार घटे हैं. विनिर्माण और कृषि जैसे अधिक रोजगार देने वाले सेक्टर धीमी विकास गति के कारण पर्याप्त रोजगार अवसर निर्मित नहीं कर पाए. जहां पिछले वर्ष विश्व में संरक्षणवाद की बढ़ती लहर ने भारत की नौकरियों को प्रभावित किया. वहीं स्टार्टअप इंडिया, डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं को रोजगार बढ़ाने में आशातीत सफलता नहीं मिली. निसंदेह निर्यात क्षेत्र में भी पिछले वर्ष देश के कदम तेजी से आगे नहीं बढ़ पाए हैं. वैश्विक निर्यात मांग कम होने से वर्ष 2016-17 में निर्यात का मूल्य 274 अरब डॉलर रहा. निर्यात के ये आंकड़े संतोषजनक नहीं हैं. निर्यात क्षेत्र की चुनौती इसलिए और बढ़ेगी क्योंकि विश्व व्यापार संगठन के नियमों के मुताबिक वर्ष 2018 तक भारत को निर्यात को सब्सिडी देना बंद करना होगा.

स्पष्ट है कि जहां एक ओर सरकार द्वारा संसद में प्रस्तुत अर्ध वाषिर्क समीक्षा के साथ-साथ भारत के आर्थिक परिदृश्य से संबंधित अगस्त 2017 में प्रकाशित विभिन्न अध्ययन रिपोटरे के अनुसार अब वर्ष 2017-18 में भी नोटबंदी व जीएसटी के कारण 6.75 से 7.5 फीसद विकास दर का लक्ष्य पाना कठिन है. ऐसे में आर्थिक स्थायित्व और विकास दर बढ़ाने के लिए  सरकार के द्वारा पिछले तीन वर्षो में जो विभिन्न ऐतिहासिक नीतिगत फैसले लिए गए हैं, उन्हें शीघ्रतापूर्वक कार्यान्वित  किया जाना होगा. साथ ही संसद में पारित कराए गए अभूतपूर्व आर्थिक सुधारों को कारगर तरीके से लागू किया जाना होगा. बैंक ऋण की धीमी वृद्धि दर और एनपीए की समस्या से निपटा जाना होगा.

 अब विकास के लक्ष्यों के लिए ‘नेशनल इंस्टीट्यूट फार ट्रांसफॉर्मिग इंडिया’ यानी नीति आयोग के द्वारा पिछले माह 29 अगस्त को प्रस्तुत किए गए सुधारवादी एजेंडा पर ध्यान दिया जाना होगा. इस एजेंडे में विनिर्माण, छोटे व मझौले उद्योग, निर्यात और रोजगार को बढ़ावा देने के लिए सरकार की नीतियों की अहम भूमिका की बात कही गई है. सरकार द्वारा मौद्रिक नीति, विनिमय दर नीति, राजकोषीय नीति, निर्यात नीति और रोजगार वृद्धि के लिए उपयुक्त नई राह भी बनाना होगी. ऐसा होने पर ही देश की अर्थव्यवस्था पूरी क्षमता से काम कर पाएगी और देा के करोड़ों लोगों को विकास के लाभ मिल पाएंगे.

जयंतीलाल भंडारी
लेखक


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