स्कूलों को न बनने दें कत्लगाह

Last Updated 11 Sep 2017 04:47:02 AM IST

प्रिय प्रकाश जावड़ेकर व मेनका गांधी अपनी बात रखने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है.


स्कूलों को कत्लगाह ना बनने दें.

टेलीविजन स्क्रीन और अखबारों की सुर्खियों ने आप दोनों का दिल तो दहलाया होगा. आपकी नाक के नीचे ही एनसीआर के नामी स्कूल में सात साल के अबोध की हत्या हो गई. छात्रों ने खून से लथपथ प्रद्युम्न को शौचालय से निकलता देख शोर मचाया. यह किसी पिछड़े या अति कमजोर आयवर्ग जैसे इलाके का मामूली स्कूल भी नहीं था.

रेयान उच्च मध्यमवर्गीय परिवारों की पसंदीदा स्कूल श्रृंखला है, जहां चाक-चौबंद व्यवस्था की उम्मीद की जाती है. वहां घटनास्थल से वह चाकू बरामद किया गया, जिससे प्रद्युम्न का गला रेता गया. स्कूल में चाकू कैसे और क्यों आया होगा? दुष्कर्म का आरोपित स्कूल बस का खलासी अशोक है. कहीं ऐसा तो नहीं कि वह चाकू की नोंक पर इसके पहले भी बच्चों को अपनी हवस का शिकार बनाता रहा हो. इससे पहले भी दिल्ली के ही स्कूल में बिल्कुल इसी तरह की घटना हो चुकी है. कुकर्म के बाद बच्चे को हत्यारे ने पानी के टैंक में फेंक दिया था.

जीडी गोयनका स्कूल, इंदिरापुरम में ही 9 साल के अरमान सहगल की रहस्यमय मौत को लोग भूले नहीं हैं. आप इससे इनकार नहीं कर सकते कि इन दोनों ही मामलों में चूंकि बच्चों की जान नहीं बचाई जा सकी, इसलिए मामले ने तूल पकड़ लिया. शिक्षा मंत्री व महिला व बाल विकास मंत्री होने के नाते, आप दोनों की यह जिम्मेदारी है. जनता सुरक्षा के लिए सरकार का ही मुंह ताकती है. क्योंकि हम निरीह हैं. बेचारे. दया की गुहार लगाते. जब तक सब सामान्य है, तब तक हम चिन्तामुक्त नजर आते हैं.

बच्चों को सुरक्षा के प्रति आपको प्रतिबद्ध होना होगा. आपको नहीं लगता कि ये घटनाएं स्कूलों के भीतर बच्चों के साथ होने वाले यौन शोषण की तरफ संकेत करने के लिए काफी है. स्कूलों की चारदीवारी में हमारा बच्चा कितना सुरक्षित है, इसका जिम्मेदार कौन होगा. छोटे और मासूम बच्चों के साथ मानसिक व शारीरिक प्रताड़ना की तमाम घटनाएं देश भर के स्कूलों में आम हैं. बच्चों के हाथ तोड़ दिये जाते हैं. उन पर थप्पड़ों की बौछार की जाती है. कान पर ऐसा थप्पड़ मारा जाता है कि बच्चा हमेशा के लिए बहरा ही हो जाए. होमवर्क न करके आने के लिए इस कदर प्रताड़ित किया जाता है कि बच्चे घोर निराशा के शिकार हो जाते हैं. ऐसी घटनाएं आम हैं, जब टीचर के डर से घर लौटे बच्चे ने जीवन ही समाप्त कर लिया.



अनुशासन और प्रशिक्षण की आड़ में बच्चों को मानसिक रूप से बीमार करने का अधिकार कैसे दिया जा सकता है! फिर इस बात को आप सिरे से कैसे नकार सकते हैं कि स्कूलों में बच्चों के साथ इस तरह के अमानवीय व्यवहार नहीं हो रहे हैं! आपसे निवेदन है कि स्कूलों को मानसिक व शारीरिक प्रताड़ना का केन्द्र न बनने दें. इसके लिए कृपया उचित कदम उठाएं. यदि रेल के पटरी से उतरने के लिए रेलमंत्री जिम्मेदार हैं, आतंकवादी घटना के लिए गृहमंत्री पर उंगली उठायी जाती है तो बच्चों की इस तरह की हत्या के लिए स्कूल मालिक और प्रबंधन क्यों नहीं जिम्मेदार हो सकते? उपहार मामले में अंसल बंधुओं को मिली सजा इसका पुख्ता सबूत है कि मालिकान किसी भी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं छोड़े जा सकते. पिंटो परिवार को इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी, केवल प्रिंसिपल व सुरक्षा टीम को निकालने से न्याय नहीं हो जाता.

हमारे लिए यह शर्मनाक घटना है. बच्चों के शौचालय में खलासी कैसे और क्यों पहुंचा? जैसा कि हम सब जानते हैं, इन मंहगे स्कूलों में गेट से लेकर भीतर तक काफी चौकसी बरती जाती है. यहां तक की स्कूल ऑवर्स में आपको अपने बच्चे से भी मिलना हो तो काफी मशक्कत करनी पड़ती है. स्कूल के भीतर बच्चे के साथ कैसा बर्ताव हो रहा है, यह कभी आप नहीं देख सकते. खासकर छोटे बच्चे जो स्वाभाविक रूप से वह सब विस्तारपूर्वक नहीं बता सकते, जो उनके साथ अभिभावकों की गैरमौजूदगी में होता है. ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ और ‘बचपन बचाओ’ जैसे नारे क्या सिर्फ पोस्टरों के स्लोगन भर ही बने रह जाएंगे? अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए पाई-पाई जोड़ कर नामी स्कूलों में दाखिला कराने के लिए परिवार कितनी तकलीफें झेलते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है. प्लीज, हमारे बच्चों को बचाएं. हमारे दर्द को पहचाने. आपसे न्याय की उम्मीद में अभिभावकजन

 

 

मनीषा


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