अर्थव्यवस्था : ट्रंप की टैरिफ रणनीति

Last Updated 29 Jul 2025 02:29:27 PM IST

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की टैरिफ रणनीति ने वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता का वातावरण पैदा कर दिया है। आयात-निर्यात पर लगने वाली ड्यूटी के ऊपर अमेरिका के साथ समझौता करना अधिकांश देशों के लिए टेढ़ी खीर बन गया है।


अर्थव्यवस्था : ट्रंप की टैरिफ रणनीति

ट्रंप के लिए अमेरिका पहले बाकी सब बाद में। अपने दूसरे कार्यकाल में राष्ट्रपति पद की शपथ लेते हुए उन्होंने जो बातें कही थी उन पर तेजी से अमल कर रहे हैं।

उन्होंने कहा था कि व्यापार, टैक्स, इमीग्रेशन और विदेशी मामलों में जो नीतियां अपनाई जाएंगी उसमें अमेरिका के लोगों के हित को प्राथमिकता दी जाएगी। अपने देशवासियों का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा था कि अमेरिका में बनी चीजे खरीदें और अमेरकिंस को नौकरी दें, अमेरिका को फिर से पहले की तरह, शक्तिशाली, संपन्न और गौरवशाली राष्ट्र बनाएं। अमेरिका का व्यापार घाटा दिनों दिन बढ़ता जा रहा है इस स्थिति से निपटने के लिए उन्होंने टैरिफ नीति में व्यापक परिवर्तन की घोषणा कर दी। अधिकांश देशों के साथ घाटे में व्यापार को रोकने के लिए आयात पर भारी टैरिफ लगाने की घोषणा की जिसने अधिकांश राष्ट्रों को समझौते के टेबल पर बैठने को मजबूत कर दिया, इसमें छोटे और बड़े सभी राष्ट्र शामिल हैं। आर्थिक दृष्टि से पिछड़े और छोटे राष्ट्रों ने उनकी बात आसानी से मान ली, किंतु विकसित और कई विकासशील देशों ने इसका का विरोध किया।

कुछ राष्ट्रों के साथ समझौता हो चुका है किंतु अभी बड़ी संख्या में ऐसे राष्ट्र हैं जो उनके द्वारा प्रस्तावित टैरिफ मानने को तैयार नहीं हैं। अमेरिका में रह रहे प्रवासी नागरिक जो अपने आमदनी का कुछ हिस्सा अपने देश में अपने परिवार के लोगों को भेज रहे थे; उस पर पहली बार टैक्स लगाया गया। अमेरिकी इमीग्रेशन नीति में व्यापक परिवर्तन किया गया। अमेरिकी कंपनियों द्वारा विदेशियों की नियुक्ति पर अंकुश लगाए जा रहे हैं। कंपनियों से कहां जा रहा है कि वह दूसरे देशों में अपने प्लांट न लगाकर अमेरिका में ही उत्पादन करें। शुरू में उन्होंने जो टैरिफ रेट प्रस्तावित किए उनमें कंबोडिया, लॉओस, म्यांमार, बांग्लादेश, सर्बिया, थाईलैंड, बोस्निया, इंडोनेशिया और साउथ अफ्रीका को 30% से 40% एवं ट्यूनीशिया, कजाकिस्तान, साउथ कोरिया, जापान और मलेशिया को 25% से 29% के ब्रैकेट में शामिल किया। न्यूनतम टैरिफ पहले 10% रखा था बाद में इसे बढ़ाकर 15% कर दिया। टेढ़ी उंगली से घी निकालने की नीति अपनाई, पहले जो तारीख तय किया उससे कुछ देश उनके आगे झुक गए, फिर उन्होंने 1 अगस्त की तारीख दी है जिसके बाद भारी टैरिफ लगाने की धमकी दी है। अप्रैल 2025 में अमेरिकी प्रशासन ने वादा किया था 90 दिन में 90 देशों के साथ समझौता कर लेंगे, लेकिन अब तक मात्र पांच देशों के साथ अमेरिका का टैरिफ समझौता हो सका जिसमें ब्रिटेन, जापान, इंडोनेशिया और फिलीपींस शामिल हैं।

यूरोपीय यूनियन के 27 देशों के साथ अभी तक समझौता नहीं हो पाया, ट्रंप के ही शब्दों में उन देशों के साथ समझौते के 50-50 परसेंट चांस है। ब्रिक्स देशों पर ट्रंप ने 10% अतिरिक्त टैरिफ की घोषणा की क्योंकि उनके अनुसार ये देश अमेरिकी हितों के खिलाफ काम कर रहे हैं। अमेरिकी डॉलर को ट्रंप दुनिया के मुद्राओं का बादशाह मानते हैं और इसको चुनौती देने वाले सभी देशों के ऊपर अतिरिक्त टैरिफ की धमकी दे रहे रहे हैं। ब्राजील के ऊपर तो उन्होंने 50% टैरिफ लगाने तक की धमकी दे दी है जिसका वहां के राष्ट्रपति ने विरोध किया है। बदले में अमेरिकी वस्तुओं पर भी 50% टैरिफ लगाने की बात की। बाहर से आयात होने वाली वस्तुओं पर अमेरिका द्वारा भारी टैरिफ लगाने या प्रतिबंधित करने से बहुत से राष्ट्रों को भारी नुकसान की आशंका है जो उनके मुख्य उत्पाद हैं और जिनका अमेरिका में बड़ी मात्रा में अब तक आयात होता रहा है, जैसे टेक्सटाइल्स, गारमेंट्स, लेदर प्रोडक्ट्स, जेम्स एवं ज्वेलरी, फार्मा प्रोडक्ट्स, ऑटो पार्ट्स और व्हीकल्स आदि। जिन चीजों की अमेरिका में उनकी जरूरत से अधिक पैदावार है जैसे कृषि  और डेयरी पदार्थ उनके लिए ट्रंप चाहते हैं कि दुनिया के और देश अपना बाजार अमेरिका के लिए पूरी तरह से खोल दें, भारत पर भी जिसके लिए दबाव डाल रहे हैं।

भारत के 33 अरब डॉलर के रत्न और आभूषण निर्यात में अमेरिका का हिस्सा 30% है। अमेरिका के जेनेरिक दवा आयत के 47% हिस्से की आपूर्ति भारत करता है।  अमेरिका से भारत मुख्य रूप से खिनज ईधन, पेट्रोलियम उत्पाद, मोती, कीमती पत्थर, परमाणु रिएक्टर मशीनरी और विद्युत मशीनरी के अलावा चिकित्सा उपकरण, धातुएं सिक्के, वस्त्र और लोहे, इस्पात और अल्युमिनियम की वस्तुएं भी आयात करता है 2030 तक दोनों देशों के बीच में 500 बिलियन डॉलर के व्यापार का लक्ष्य रखा गया है, 2024 में दोनों देशों के बीच 129 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ हुआ था, अमेरिका का व्यापार घाटा भारत के साथ 48 बिलियन डॉलर था। ऊर्जा सुरक्षा दोनों देशों के आर्थिक संबंधों का एक प्रमुख स्तंभ है। भारतीय अर्थव्यवस्था में अमेरिकी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। 2023 में भारत में अमेरिकी निवेश का मूल्य लगभग 50 बिलियन डॉलर था। अमेरिका पर भारत का 216 बिलियन डॉलर का कर्ज है जो अमेरिकी ट्रेजरी बांड में भारत के निवेश के रूप में है। टैरिफ को लेकर दोनों देशों में वार्ता के कई दौर हो चुके हैं किंतु अभी तक समझौता नहीं हो पाया है।

अमेरिका ने जिन देशों को 1 अगस्त तक समझौता करने का अल्टीमेटम दिया है उसमें भारत नहीं है। अभी तक दोनों ओर से सकारात्मक संकेत आ रहे हैं। कृषि और डेयरी पदाथरे के लिए विशेष रूप से अमेरिका भारत का बाजार अपने लिए टैरिफ मुक्त चाहता है जिसके लिए भारत तैयार नहीं है क्योंकि इन पर करोड़ों लोगों का जीवन-यापन निर्भर है। भारत को अमेरिका सबसे अधिक टैरिफ लगाने वाले देशों में गिनता है, भारत से निर्यात होने वाली कई वस्तुओं पर उसने टैरिफ कम करने की मांग रखी है। डिजिटल ट्रेड, सेवाओं, टेक्सटाइल्स, फार्मास्यूटिकल्स और कयी औद्योगिक पदाथरे के भारत से निर्यात पर टैरिफ में कमी के संकेत भारत की ओर से दिए जा चुके हैं। पहली अगस्त तक पूरे समझौते की संभावना कम है किंतु अंतरिम समझौता हो सकता है।
(लेख में विचार निजी हैं)

प्रो. लल्लन प्रसाद


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