‘निसार’ : वैश्विक चेतना का उपग्रह
श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 30 जुलाई की शाम जीएसएलवी-एफ16 रॉकेट के माध्यम से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी (नासा) द्वारा संयुक्त रूप से विकसित ‘निसार’ (नासा-इसरो सिंथेटिक अपरचर रडार) उपग्रह को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया।
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यह उपग्रह न केवल एक तकनीकी चमत्कार है, बल्कि विज्ञान, शोध, वैश्विक सहयोग और मानवीय प्रतिबद्धता का युगांतकारी प्रतीक भी है।
‘निसार’ को सूर्य-समकालिक ध्रुवीय कक्षा में 747 किमी. की ऊंचाई पर स्थापित किया गया है, जहां से यह अगले तीन से पांच वर्षो तक निरंतर पृथ्वी की निगरानी करेगा और प्रत्येक 12 दिन में पूरी पृथ्वी का स्कैन करेगा तथा एक बार में 240 किमी. क्षेत्र को कवर करने की अद्वितीय क्षमता रखता है। इस उपग्रह को धरती की गहराइयों और उसकी सतह पर होने वाले बदलावों की सटीक, विस्तृत और सतत निगरानी करने के लिए डिजाइन किया गया है। ‘निसार’ इसरो और नासा के दस वर्षो के संयुक्त परिश्रम का परिणाम है।
‘निसार’ उपग्रह की दो प्रमुख विशेषताएं (एल-बैंड और एस-बैंड की दोहरी रडार प्रणाली तथा स्वीपएसएआर तकनीक) इसे अत्याधुनिक उपग्रहों की श्रेणी में खड़ा करती हैं। इस उपग्रह के एल-बैंड रडार को नासा ने विकसित किया है, जो 1.25 गीगाहर्ट्ज फ्रीक्वेंसी और 24 सेमी तरंगर्दैध्य पर काम करता है। यह रडार बर्फ, घने जंगलों और धरती की गहराई में होने वाले परिवर्तनों को मापने में सक्षम है। वहीं इसरो द्वारा विकसित एस-बैंड रडार 3.2 गीगाहर्ट्ज की फ्रीक्वेंसी और 9.3 सेमी तरंगर्दैध्य पर कार्य करता है, जो सतह पर होने वाली सूक्ष्मतम हलचल को भी दर्ज कर सकता है। इस प्रकार ‘निसार’ का यह दोहरा रडार सिस्टम भूगर्भीय घटनाओं, प्राकृतिक आपदाओं, वनस्पति परिवर्तनों, कृषि गतिविधियों और मानवजनित प्रभावों की निगरानी के लिए बेहद उपयोगी सिद्ध होगा।
यह उपग्रह दिन-रात, किसी भी मौसम में, बादलों, अंधकार या घने जंगलों की परवाह किए बिना सतत डेटा एकत्रित करता रहेगा। इसका रिजॉल्यूशन 5 से 10 मीटर के बीच होगा जिससे बड़े क्षेत्र में बहुत सूक्ष्म परिवर्तन भी पकड़ में आएंगे। इसरो के अध्यक्ष वी. नारायणन के अनुसार, ‘निसार’ से मिलने वाला डेटा न केवल भारत और अमेरिका, बल्कि पूरी दुनिया के लिए अमूल्य होगा। उपग्रह प्रति दिन लगभग 80 टेराबाइट डेटा जनरेट करेगा जिसे पूरी तरह ओपन-सोर्स के रूप में मुफ्त में साझा किया जाएगा। इसका लाभ वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, नीति-निर्माताओं, किसानों और आपदा प्रबंधन एजेंसियों को समान रूप से मिलेगा। ‘निसार’ से संबंधित डेटा कृषि के लिए भी उपयोगी होगा।
यह उपग्रह फसलों की वृद्धि, मिट्टी की नमी, मौसमी प्रभाव, रोग और कीट आक्रमण, और संभावित नुकसान का पूर्वानुमान लगाने में सहायक सिद्ध होगा। इसके माध्यम से सरकारें कृषि बीमा योजनाओं को अधिक वैज्ञानिक, पारदर्शी और प्रभावी ढंग से लागू कर सकेंगी। पर्यावरणीय क्षेत्र में ‘निसार’ जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की सटीक जानकारी प्रदान करेगा। यह समुद्र स्तर में वृद्धि, बर्फ पिघलने, तटीय कटाव, वनस्पति आवरण में परिवर्तन और भूजल स्तर की निगरानी करेगा। इससे पारिस्थितिक तंत्र की स्थिरता, जैव-विविधता संरक्षण, वनों की स्थिति और मानवजनित प्रभावों का अध्ययन किया जा सकेगा। आपदा प्रबंधन की दृष्टि से भी यह उपग्रह क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है। इसके जरिए भूकंप, भूस्खलन, ज्वालामुखी विस्फोट, सुनामी जैसी आपदाओं के प्रारंभिक संकेतों को पहचाना जा सकेगा जिससे समय रहते चेतावनी देकर जान-माल की हानि को कम किया जा सकेगा।
भारत और अमेरिका की साझेदारी ने दिखा दिया है कि जब दो राष्ट्र साझा उद्देश्य, पारदर्शिता और वैज्ञानिक उत्कंठा के साथ एकजुट होते हैं, तब विश्व को अभूतपूर्व उपलब्धियां मिलती हैं। ‘निसार’ के माध्यम से भारत और अमेरिका पूरे ग्रह को एक साथ देखना, समझना और संरक्षित करना सीख रहे हैं। यह मिशन मानवता के भविष्य की रक्षा, पर्यावरण संतुलन के पुनर्निर्माण और पृथ्वी की बदलती धड़कनों को जानने की दिशा में उठाया गया निर्णायक कदम है। यह उपग्रह वैज्ञानिक शोध एवं नवाचार को नई दिशा देने के साथ-साथ नई पीढ़ी को पृथ्वी और पर्यावरण के प्रति अधिक सजग बनाने में भी मदद करेगा। ‘निसार’ के माध्यम से विश्व को ऐसा शक्तिशाली उपकरण प्राप्त हुआ है, जो धरती की सतह, उसकी परतों, संसाधनों और संकटों को जानने की हमारी क्षमता को व्यापक और सटीक बनाएगा। यह केवल तकनीकी उपलब्धि नहीं, बल्कि मानवीय चेतना का विस्तार है, ऐसा वैज्ञानिक यंत्र, जो हमारी पृथ्वी की नब्ज को सुन सकेगा और समय रहते बदलावों के प्रति हमें सचेत करेगा। इसीलिए ‘निसार’ को ‘वैश्विक चेतना का उपग्रह’ कहा जाना उपयुक्त होगा।
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