नजरिया : बच्चे किसकी जिम्मेदारी हैं?

Last Updated 13 Aug 2017 04:58:02 AM IST

गोरखपुर का बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल 30 बच्चों के लिए श्मशान बन गया.


नजरिया : बच्चे किसकी जिम्मेदारी हैं?

अस्पताल प्रशासन और व्यवस्थापक यमराज बन गए. अस्पताल में मौजूद डॉक्टर, नर्स और दूसरे स्टाफ को शर्म से डूबने के लिए चुल्लू भर पानी भी नहीं मिल रहा जिनकी वजह से एक के बाद एक कई बच्चे असमय ही दुनिया छोड़ गए. इसी कड़ी में सीएम योगी आदित्यनाथ का नाम भी आता है, जो 9 अगस्त को वहां की व्यवस्था की निगरानी करके लौटे थे. ऑक्सीजन की सप्लाई खत्म थी, वैकल्पिक व्यवस्था भी फेल हो गई और 10 अगस्त की रात से ही मौत का तांडव शुरू हो गया. 11 अगस्त की सुबह होते-होते मृतक बच्चों की संख्या 30 हो चुकी थी.
योगी सरकार की उद्दंडता तो देखिए ट्वीट जारी कर सफाई दी जा रही है कि मीडिया की खबर गलत है. किसी बच्चे की मौत ऑक्सीजन की कमी की वजह से नहीं हुई है. मौत के कारणों की जांच कराने की भी बात कही गई है. एक ही सांस में कारण को नकार भी रहे हैं, और मीडिया को गलत भी बता रहे हैं, और उसी सांस में कारणों की जांच की भी बात की जा रही है. सही मायने में कहा जाए तो यह योगी सरकार की संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है. बकाया मिल गया, आगे मिल भी जाएगा, पर जिंदगी नहीं मिलेगी दोबारा.

खुद मेडिकल कॉलेज की रिपोर्ट कहती है कि 10 अगस्त की शाम 7.30 बजे लिक्विड ऑक्सीजन सप्लाई में प्रेशर कम हुआ, तो रिजर्व में रखे 52 सिलिंडर लगाए गए. बावजूद इसके ऑक्सीजन कम पड़ गई और 30 जिंदगियां असमय ही काल के गाल में समा गई. मीडिया में यह रिपोर्ट भी सामने आ चुकी है कि ऑक्सीजन सप्लाई कंपनी पुष्पा सेल्स ने बकाया पेमेंट नहीं मिलने की वजह से ऑक्सीजन की सप्लाई रोकने की धमकी दे रखी थी.
बकाया पेमेंट के लिए बच्चों की जान लेने की हद तक जाने वाले पुष्पा सेल्स ने 6 महीने से पेमेंट बकाया होने की बात कहते हुए अस्पताल प्रशासन को इस घटना के लिए जिम्मेदार ठहराया है. उसके मुताबिक शुक्रवार को कुछ पेमेंट मिला है, कुछ शनिवार को भी मिलेगा. बकाया में से कुछ भुगतान होने के बाद ऑक्सीजन की गाड़ी चल पड़ी जिसे दर्दनाक घटना के गवाह बन चुके गोरखपुर में शुक्रवार की रात पहुंचना था. कहने का अर्थ यह है कि ऑक्सीजन की कमी की पुष्टि अस्पताल की मेडिकल रिपोर्ट कर रही है, और मौत के तांडव के बाद ही ऑक्सीजन पहुंचेगा, यह बात खुद सप्लायर कह रहा है. इसके बावजूद योगी आदित्यनाथ की सरकार ने लगातार ट्वीट कर ऑक्सीजन की कमी से हुई मौत को सिरे से नकारा और मीडिया रिपोर्ट को गलत ठहराया.
योगी सरकार के रु ख का असर मीडिया पर पड़ने भी लगा है. कोई इसे दो दिन में 30 बच्चों की मौत बता रहा है, तो कोई 36 घंटे में. कोई यह साबित करने में लगा है कि पिछले एक हफ्ते में 60 बच्चे अस्पताल में मरे हैं यानी एक दिन संख्या थोड़ी बढ़ भी गई, तो उसकी वजह कुछ और हो सकती है. ऑक्सीजन की कमी वाली बात पक्की नहीं है. काश! योगी आदित्यनाथ का यह खौफ मीडिया से ज्यादा अस्पताल के प्रशासन पर होता. काश! यह खौफ उस सप्लायर पर होता जिसने चंद लाख रु पये के लिए घृणित दबाव का खेल खेला.
ताज्जुब की बात यह है कि गोरखपुर के डीएम को भी गुरुवार की रात में ऑक्सीजन में कमी आने की बात पता थी, और उन्हें भी अस्पताल प्रशासन ने वैकल्पिक व्यवस्था होने की बात कहकर धीरज बंधाया था. लेकिन हालात की गंभीरता का अंदाजा लगाने में सभी फेल हो गए. कौन है इन बच्चों की मौत का जिम्मेदार? क्या डीएम जिम्मेदारी लेंगे, जिन्होंने अस्पताल प्रशासन पर भरोसा किया? क्या अस्पताल प्रशासन जिम्मेदारी लेगा जिसने सप्लायर की धमकी को नजरअंदाज किया? क्या सप्लायर जिम्मेदारी लेगा जिसने यह जानते हुए भी कि मरीजों की जान जा सकती है, ऑक्सीजन की सप्लाई रोक दी? क्या मुख्यमंत्री अपने अस्पताल के दौरे का औचित्य बताएंगे कि उनके जाने के एक दिन बाद ही अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी की वजह से 30 बच्चों की मौत हो गई?
क्या सीएम योगी आदित्यनाथ अपने गोरखपुर दौरे का औचित्य बताएंगे, जिनके आने पर शहीद के घर में कालीनें बिछा दी जाती हैं, एसी लगा दिए जाते हैं, सोफे सेट कर दिए जाते हैं, और दौरा खत्म होते ही सब कुछ हटा लिया जाता है. ऐसे सीएम को अस्पताल पहुंच कर भी मरीजों का दर्द पता नहीं चला, तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए. खास बात यह भी है कि घटना से दो दिन पहले सीएम के इस दौरे में उनके साथ स्वास्थ्य मंत्री भी थे. कम से कम उन्हें तो अपने मुख्यमंत्री के बचाव में ही सही, आगे आकर घटना की जिम्मेदारी लेनी चाहिए थी? लेकिन नहीं, कुर्सी छोड़ने के लिए थोड़े ही मिलती है. भले ही नन्हीं जिंदगियां धरती छोड़कर चली जाएं.
आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि 1977 में एन्सेफलाइटिस का पहला केस सामने आया था, और तब से लेकर अब तक गोरखपुर और आसपास के इलाकों में इस बीमारी से एक लाख से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी हैं. जापानी एन्सेफलाइटिस का इलाज तो मिल चुका है, लेकिन दूसरी तरह की एन्सेफलाइटिस से बच्चों का मरना जारी है. संभव है कि इस बीमारी का टीका न बना हो, लेकिन क्या इस बीमारी को दूर भगाने का संकल्प लेते हुए इलाके में सफाई करने और मच्छर भगाने का अभियान भी नहीं चलाया जा सकता? अगर सीएम के गृह क्षेत्र में देश भर में जोर-शोर से चलाया गया स्वच्छता अभियान कमजोर है, और एन्सेफलाइटिस का जोर है, तो ऐसे स्वच्छता अभियान का क्या फायदा? गोरखपुर में अक्षम्य लापरवाही हुई है.
इस घटना की जिम्मेदारी जब तक तय नहीं की जाती या फिर आगे बढ़कर जब तक कोई जिम्मेदारी नहीं लेता है, तब तक विपक्ष की शून्य राजनीति के बीच मीडिया को ही कमान संभाले रखना चाहिए. यूपी सरकार ने जो ऑक्सीजन की कमी नहीं होने के ट्वीट्स जारी किए हैं, उसके लिए भी सरकार को माफ नहीं किया जा सकता. केंद्र में मोदी सरकार से सबक लेगी योगी सरकार? योगी सरकार को कम से कम केंद्र में अपनी ही मोदी सरकार से सीख लेनी चाहिए जिसका लोक स्वास्थ्य के मामले में रिकॉर्ड शानदार रहा है. छोटे बच्चों का टीकाकरण हो, या जच्चा-बच्चा की देखरेख, प्रसूता का ख्याल रखने की बात हो या दवाई की उपलब्धता-मोदी सरकार गांव-गांव में लोक कल्याणकारी अभियान चलाती दिखी है. मगर ताजा घटना से प्रतीत होता है कि यूपी की जोगी सरकार ने तो मानो जनता की उम्मीदें तोड़ने की कसम ही खा रखी है. चाहे वह स्वास्थ्य हो या कानून-व्यवस्था का मामला-किसी भी क्षेत्र में जनता की उम्मीद पूरी कर पाने में अब तक यह सरकार सफल होती नहीं दिख रही है.

उपेन्द्र राय
‘तहलका’ के सीईओ व एडिटर इन चीफ


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