वैश्विकी : देउबा किसके दोस्त रहेंगे

Last Updated 13 Aug 2017 04:54:58 AM IST

डोकलाम के मुद्दे पर भारत और चीन की तनातनी के बीच नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा अपनी पहली विदेश यात्रा पर नई दिल्ली आ रहे हैं.


वैश्विकी : देउबा किसके दोस्त रहेंगे

देउबा भारत के साथ अपने करीबी रिश्ते के लिए जाने जाते हैं. लिहाजा यह वाजिब सवाल बनता है कि डोकलाम के मुद्दे पर उनका रुख क्या है? यह सवाल भीतर तक उनको भी मथ रहा होगा. सैद्धांतिक तौर पर नेपाल की भारत और चीन के साथ ‘समान दूरी’ बनाकर चलने की पारम्परिक नीति रही है. लेकिन द्विपक्षीय संबंधों में व्यावहारिक स्तर पर हमेशा ऐसा नहीं रहा है. 2014 में नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने और 2015 में नेपाल में नया संविधान लागू हुआ. इसके बाद से भारत और नेपाल के रिश्तों में खटास पैदा हुई. इसमें मधेशी आंदोलन की बड़ी भूमिका रही. करीब पांच महीनों तक जारी नाकेबंदी के कारण नेपाल में पेट्रोलियम पदाथरे से लेकर रोजमर्रा की वस्तुओं की कमी पड़ने लगी थी. वहां का राजनीतिक नेतृत्व ने इस आंदोलन के पीछे भारत का हाथ होने का आरोप लगाया था.
साम्राज्यवादी-विस्तारवादी चीन के लिए नेपाल में घुसैपठ करके वहां की आम जनता का हमदर्दी हासिल करने का इससे उपयुक्त अवसर नहीं था. तब के नेपाली प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने पेट्ऱोलियम पदाथरे की आपूर्ति के लिए चीन से समझौता करने में देर नहीं की. नेपाल को ईधन आपूर्ति करने में भारत के एकाधिकार तोड़ने के लिए चीन का यह कदम पर्याप्त था. अपने पड़ोसी देशों को अनुदान दे कर उन्हें अपने पक्ष में करना चीन की विदेश नीति का एक महत्त्वपूर्ण औजार है और चीन का यह ट्रंप कार्ड नेपाल में सफल भी रहा. नेपाल की भू-राजनीतिक स्थिति के महत्त्व को समझते हुए शुरू से ही चीन की वहां दिलचस्पी रही है. भारतीय राजनयिकों की अदूरदर्शिता और रणनीतिक कमजोरियों के कारण चीन की ओर नेपाल का झुकाव होता चला गया. इसकी मिसाल चीन द्वारा आयोजित ‘वन बेल्ट वन रोड’ (ओबीआर) की बैठक में भी देखने को मिली, जब नेपाल का उच्च प्रतिनिधिमंडल उसमें शामिल हुआ. यह नेपाल की ओर से भारत के सुरक्षा हितों की अनदेखी थी. भारत चीन की ओबीआर परियोजना का कड़ा विरोध कर रहा है और इसे भारत के क्षेत्रीय संप्रभुता का उल्लंघन मान रहा है.

हाल के दिनों में नेपाल चीन के इतना करीब आ गया है कि पहली बार दोनों की संयुक्त सेनाओं ने युद्ध अभ्यास किया. हालांकि यह दीगर बात है कि इसे बहुत महत्त्व नहीं मिल पाया. डोकलाम में जारी तनाव को देखते हुए भारत भी फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है. पिछले दिनों भारत ने भूटान-नेपाल की सीमा पर सशस्त्र सीमा बल के तहत अपने इंटेलिजेंस विंग की तैनाती की है.
देउबा ने ऐसे समय में सत्ता संभाली है, जब मधेशी आंदोलन के कारण राजनीतिक उथल-पुथल है और इन्हीं परिस्थितियों में उनके कंधों पर नये संविधान के तहत राष्ट्रीय चुनाव कराने की जिम्मेदारी है. बाहरी मोच्रे पर डोकलाम ऐसा मुद्दा है, जिन पर नेपाली प्रधानमंत्री देउबा का रुख भारत और चीन के संबंधों को प्रभावित करेगा. अलबत्ता, उनके लिए डोकलाम का सबक यही है कि नेपाल जैसे भू-बंद और छोटे देश को तटस्थ रहते हुए अपने घर की हिफाजत करनी चाहिए.

डॉ. दिलीप चौबे
लेखक


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