शांति और मुक्ति का मार्ग है ‘काशी’
उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित काशी, जिसे वाराणसी भी कहा जाता है। इसके साथ ही इसे बनारस भी कहते हैं। काशी विश्व की सबसे प्राचीन नगरियों में से एक मानी जाती है।
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यह नगर न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से भी अत्यंत पवित्र मानी जाती है। काशी के हृदय में स्थित है भगवान शिव का प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर, जो श्रद्धालुओं के लिए मोक्ष का द्वार माना जाता है।
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार काशी वह नगरी है जिसे स्वयं भगवान शिव ने बसाया था। यह नगर ‘अविनाशी’ कहा गया है, क्योंकि माना जाता है कि जब समूचा संसार पल्रय में डूब जाता है, तब भी काशी अक्षुण्ण रहती है। यहां स्थित विश्वनाथ मंदिर में स्थापित ज्योतिलिर्ंग बारह ज्योतिलिर्ंगों में प्रमुख है। भक्तों का विश्वास है कि इस मंदिर में केवल दर्शन मात्र से जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं और आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
काशी की पवित्रता का आधार केवल मंदिर नहीं, बल्कि यहां की गंगा नदी भी है। गंगा के तट पर बसे घाट दशामेध, मणिकर्णिका, अस्सी आदि धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। मणिकर्णिका घाट को मोक्षदायिनी कहा गया है, जहां अंतिम संस्कार करने से आत्मा को मुक्ति मिलती है। यही कारण है कि हर दिन हजारों श्रद्धालु गंगा स्नान, पूजा और आरती के लिए काशी आते हैं।
काशी में हर पल भगवान शिव की उपस्थिति महसूस होती है। यहां की संध्या गंगा आरती, मंदिरों की घंटियां और साधु-संतों की तपस्या एक आध्यात्मिक वातावरण का निर्माण करती हैं। काशी न केवल भक्ति की भूमि है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, दर्शन और ज्ञान का भी केंद्र रही है। यहां से अनेक संत, कवि और दार्शनिक उत्पन्न हुए जिन्होंने भारतीय सभ्यता को नई दिशा दी। वास्तव में, काशी विश्वनाथ का दर्शन केवल एक धार्मिक अनुभव नहीं, बल्कि आत्मिक जागरण का माध्यम है।
यह हमें यह स्मरण कराता है कि जीवन अस्थायी है, पर आत्मा अमर है। काशी की महिमा में डूबकर हर भक्त यह अनुभव करता है कि सच्ची शांति और मुक्ति केवल भक्ति और आत्मसमर्पण में निहित है। काशी सचमुच वह भूमि है जहां ईर स्वयं वास करते हैं ‘काश्यां हि काशते काशी’।
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