केरल : कब्जे की खूनी लड़ाई
उत्तर भारत में जिस तरह से उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है, उसी तरह से केरल को ‘गॉड्स ओन कंट्री’ यानी ‘भगवान का देश’ कहा जाता है.
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इसके पीछे इस प्रदेश की खूबसूरती ही है. इस प्रदेश के बारे में एक मिथक यह भी है कि इसकी उत्पत्ति भगवान परशुराम के हिंसा के प्रतीक फरसे को समुद्र में फेंकने से निकली जमीन से हुई थी. नक्शे में आप देखें तो इसका आकार फरसे की ही तरह है. अभी तक हम इस राज्य को इसकी उपलब्धियों के लिए जानते रहे हैं. देश में शत-प्रतिशत साक्षरता प्राप्त करने वाला यह पहला राज्य रहा है. पोलियो उन्मूलन अभियान में भी इस राज्य ने सबसे पहले सफलता हासिल की. देश में सबसे पहले गैर कांग्रेसी सरकार (वामपंथी सरकार) बनाने का श्रेय भी इसी राज्य को है. लेकिन फिलहाल यह राज्य अपने यहां हो रही हिंसा के कारण चर्चा में है. लगता है परशुराम ने जो अपना फरसा यहां फेंका था, उसका असर आज तक यहां कायम है.
अभी हाल ही में तिरुवनंतपुरम में आरएसएस और माकपा के कार्यकर्ताओं के बीच झड़प हुई थी, जिसमें आरएसएस कार्यकर्ता राजेश की मौत हो गई. इस घटना पर केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई और कहा कि लोकतंत्र में इस तरह की हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है. केंद्रीय रक्षा और वित्त मंत्री अरु ण जेटली भी केरल पहुंचे और राजेश के परिवारवालों से मुलाकात की. उन्होंने राजेश की हत्या के लिए सीपीएम को जिम्मेदार ठहराया. लेकिन सीपीएम ने आरोपों को खारिज कर दिया.
राज्य में हिंसा की यह कोई पहली घटना नहीं है. केरल में संघ और सीपीएम के बीच राजनीतिक हिंसा की शुरु आत 1960 में ही हो गई थी. तब भारतीय जनसंघ का कार्यकर्ता रामकृष्णन माकपा के वर्चस्व वाले स्थानीय बीड़ी मजदूरों के साथ हुए संघर्ष में मारा गया था. इसके बाद वहां का कुख्यात थालासेरी दंगा हुआ, जिसमें एक मस्जिद को बचाने की कोशिश में माकपा कार्यकर्ता यूके उन्नीकृष्णन मारा गया. आरोप है कि यह दंगा संघ ने कराया था. तब से अब तक दोनों पक्षों के दो सौ से भी ज्यादा कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं. दोनों पक्ष की ओर से मारे गए कार्यकर्ताओं की संख्या के बारे में सही-सही जानकारी तो नहीं है, पर दोनों ही पक्ष अपने को पीड़ित बताते हैं और दावा करते हैं कि उनके ज्यादा लोग मारे गए हैं. दरअसल, इस राजनीतिक हिंसा ने गैंगवार जैसा रूप धारण कर लिया है. एक पक्ष की ओर से जैसे ही हमला किया जाता है, दूसरा पक्ष उसका बदला लेने के लिए तैयारी करने लगता है. कभी-कभी तो तुरत-फुरत ही बदले की कार्रवाई को अंजाम दे दिया जाता है. केरल सीपीएम का मजबूत गढ़ है. देश की पहली गैर कांग्रेसी सरकार (वामपंथी सरकार) 1957 में केरल में ही बनी थी. इस राज्य के कन्नूर जिले में तो इसका और भी ज्यादा मजबूत आधार है. दरअसल, हिंसा की वजह भी यही है. वहां सीपीएम किसी दूसरी पार्टी को घुसने नहीं देना चाहती.
जानकारों का कहना है कि सीपीएम का वर्चस्व ऐसा है कि कई गांवों को ‘पार्टी विलेज’ कहा जाता है. सीपीएम का असर इस तरह है कि गांववालों को अपने घर की शादी में कांग्रेस या बीजेपी-संघ समर्थक दोस्त तक को बुलाने की आजादी नहीं है. ऐसे में जो कोई भी इस इलाके में घुसने की कोशिश करता है, हिंसा शुरू हो जाती है. एक आंकड़े के अनुसार 1983 से सितम्बर 2009 के बीच 91 लोग मारे गए. जिनमें संघ-बीजेपी के 31 समर्थक शामिल हैं. इनमें सीपीएम के भी 33 समर्थक हैं. 14 मामलों में कांग्रेस के कार्यकर्ता भी मारे गए. ज्यादातर में आरोप सीपीएम पर लगा, लेकिन बीजेपी और कांग्रेस के कार्यकर्ता भी एक-दूसरे की हत्या के आरोप में शामिल हैं. इंडियन मुस्लिम लीग और सीपीएम कार्यकर्ताओं ने भी एक दूसरे को मारा है. पर इसका सबसे ज्यादा फायदा संघ और भाजपा को हो रहा है. संघ ने हाल के वर्षो में ताड़ी निकालने वाले एल्लवास समुदाय में खासा असर बनाया है. पहले इस तबके पर सीपीएम का असर हुआ करता था, लेकिन संघ ने उनके आध्यात्मिक संगठन श्री नारायण धर्म पलीपालाना को अपनी तरफ कर लिया है. कुछ और दलित और पिछड़ी जातियों को भी संघ अपनी तरफ लाने की कोशिश कर रहा है.
यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने से पहले केरल में सीपीएम और संघ-बीजेपी के बीच करीब एक दशक से हिंसा थम-सी गई थी. पिछले साल केरल में सीपीएम की सरकार आने के बाद तो यह टकराव और ज्यादा बढ़ गया. बीजेपी को लगता है कि कांग्रेस पूरे देश में अपनी हैसियत खोती जा रही है. वैचारिक तौर पर माकपा का आधार भी कमजोर पड़ रहा है. ऐसे में अगर वह आक्रामक रवैया अपनाएगी तो वह कांग्रेस की जमीन को केरल में हासिल कर सकती है. अपनी इसी सोच के तहत बीजेपी और संघ केरल की हिंसा को राष्ट्रीय बहस के केंद्र में लाने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं, जबकि सचाई यह है कि वे खुद भी सीपीएम के लोगों पर हमले और हत्याएं कर रहे हैं. दिल्ली यूनिर्वसटिी कैंपस में संघ परिवार के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने कन्नूर में मारे गए आरएसएस-बीजेपी कार्यकर्ताओं की विचलित कर देने वाली तस्वीरें होर्डिंग्स के तौर पर लगाई. एक संघ प्रचारक को केरल में दक्षिणपंथी हिंदुत्ववादी कार्यकर्ताओं की हत्याओं का बदला लेने वाले को इनाम के तौर पर बड़ी राशि देने की घोषणा करते सुना गया.
इसके साथ ही अरुण जेटली, राजनाथ सिंह और संघ के प्रमुख पदाधिकारी दत्तात्रेय होसबोले को भी आगे किया गया है. बहुत पहले दिलीप कुमार की एक फिल्म आई थी-संघषर्. यह फिल्म बनारस के दो घरानों की पुश्तैनी दुश्मनी पर आधारित थी. उस फिल्म में दिलीप कुमार ने सदाशयता दिखाकर पुश्तैनी दुश्मनी को खत्म किया था. केरल में राजनैतिक हिंसा रोकने के लिए वैसी ही सदाशयता दोनों पक्षों को दिखानी होगी. अगर दोनों पक्षों की नीयत ठीक होगी और दिल साफ होगा तो वहां की हिंसा को रोका जा सकता है, हमेशा के वास्ते.
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