सेना प्रमुख : गलत क्या कहा!

Last Updated 22 Feb 2017 07:09:33 AM IST

थल सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत के बयान पर जिस ढंग की राजनीति हो रही है उसके लिए दुर्भाग्यपूर्ण शब्द छोटा पड़ जाएगा.


सेना प्रमुख : गलत क्या कहा!

वास्तव में उनका बयान ऐसा है जिसका कश्मीर में शांति की चाहत रखने वाले, वहां से आतंकवाद का खात्मा की बात करने वाले हर व्यक्ति को समर्थन करना चाहिए था पर हो विपरीत रहा है. माहौल बनाया जा रहा है मानो सेना प्रमुख ने कश्मीर के हर व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई की चेतावनी दी हो. 

आखिर, जनरल रावत ने ऐसा क्या कह दिया कि कुछ संगठनों, पार्टयिों और नेताओं को नागवार गुजरा है. उन्होंने यही कहा था कि जिन लोगों ने हथियार उठाए हैं, और आईएसआईएस और पाकिस्तान का झंडा लहरा कर आतंकी कृत्य करना चाहते हैं, तो हम उनको राष्ट्र-विरोधी मानेंगे. उनके खिलाफ कार्रवाई करेंगे. यह भी कहा था कि आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई में सेना के रास्ते में लोग बाधा न डालें, पत्थरबाजी न करें. नहीं तो उनके खिलाफ कार्रवाई के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा. इसमें गलत क्या है? कश्मीर में जो स्थिति है उसमें कोई सेना प्रमुख इसके अलावा क्या बयान दे सकता है?

हुर्रियत नेताओं की बात समझ में आती है. पाकिस्तान के इशारे पर चलने वाले इन भारत विरोधियों से दुष्प्रचार के अलावा हम कोई उम्मीद कर भी नहीं सकते. यासिन मलिक पत्थरबाजी को अहिंसक आंदोलन कहते हैं, तो उनसे आप क्या अपेक्षा कर सकते हैं. मीरवायज उमर फारुख कहते हैं कि सेना प्रमुख का बयान कश्मीरवासियों में दहशत पैदा करने वाला है, तो कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए. किंतु वैसी ही भाषा अगर सत्तारूढ़ पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस या कांग्रेस जैसी पार्टयिां बोलने लगें तो पीड़ा और चिंता होना स्वाभाविक है. हालांकि पीडीपी भूल रही है कि उसके प्रदेश पुलिस प्रमुख ने भी सेना प्रमुख के बयान के एक दिन बात इसी तरह की चेतावनी दी. जिसके हाथों में सुरक्षा की जिम्मेवारी है , जिससे हम आतंकवाद रोकने की अपेक्षा रखते हैं..उसकी भूमिका और क्या हो सकती है. जो लोग इसे कश्मीरी अवाम को धमकी मान रहे हैं, उनसे पूछा जाना चाहिए कि क्या वे वह दृश्य नहीं देख रहे जब सुरक्षा बल आतंकवादियों के छिपे होने की सूचना पर कार्रवाई करने जाते हैं, तो कुछ लोग भीड़ लेकर उनकी ढाल बनकर खड़े हो जाते हैं? आतंकवादी को बचाने वालों या समर्थन करने वालों के साथ क्या व्यवहार होना चाहिए?

थल सेना प्रमुख का बयान ऐसी ही एक घटना की पृष्ठभूमि में आया है. बांदीपुरा इलाके में सुरक्षा बल आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने गए. लोगों ने उनको बचाने के लिए हंगामा कर दिया. परिणाम हुआ कि तीन जवान शहीद हो गए. जो लोग बयान पर बावेला मचा रहे हैं क्या उनके लिए जवानों की जान की कोई कीमत नहीं? क्या अलगाववादियों द्वारा भड़काए गए लोगों की ऐसी हरकतों के सामने सुरक्षा बल ऐसे ही जान गंवाते रहें और आतंकवादी बचकर निकल भागते रहें?

विडंबना देखिए कि हमारे नेतागण जवानों के हताहत होने पर दुख प्रकट करते हैं, कहते हैं कि उनकी बदौलत ही हम सुरक्षित हैं, चैन की नींद सोते हैं, किंतु सेना प्रमुख उपद्रवियों और अलगाववादियों को चेताते हैं तो इन्हें यह अवाम के विरुद्ध लगता है. यह दोहरा आचरण है जिससे अलगाववादियों और पाकिस्तान के पक्ष का समर्थन होता है. इस बात से तो कोई इनकार नहीं कर रहा कि कश्मीर का हर व्यक्ति न आतंकवादी है, न अलगाववादी. सेना प्रमुख ने भी हर व्यक्ति को आतंकवादी नहीं कहा है. उन्होंने उनकी बात की है जो सुरक्षा कार्रवाई में बाधा डालते हैं, सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकते हैं, या आईएसआईएस या पाकिस्तान के झंडे लहराते हैं. इनके लिए देशद्रोही के अलावा और कोई शब्द प्रयोग नहीं किया जा सकता.

इसलिए जनरल रावत ने बिल्कुल सही बयान दिया है. सुरक्षा बलों के सामने स्थिति विकट हो जाती है, जब भाड़े के लोगों के भड़काने पर लोगों का समूह कार्रवाई के सामने आ जाता है, या पत्थर मारने लगता है. ये उन पर गोली चलाने से बचते हैं, और अपनी जान गंवा देते हैं. ऐसी स्थिति को कायम नहीं रहने दिया जा सकता. यह पाकिस्तान समर्थकों की रणनीति हो गई है. इसकी काट यही है कि इनके खिलाफ भी निर्ममता से कार्रवाई की जाए. यदि ये अपने खिलाफ सुरक्षा बलों की कार्रवाई से बचना चाहते हैं, तो एक ही रास्ता है कि आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई के समय घर में बैठें. पत्थरबाजी से भी बाज आएं. अभी तक सुरक्षा बलों ने संयम बरता है. पत्थरबाजों पर गोली नहीं चलाई गई है. पैलेट गन चले हैं, या बाद में पावा शेल्स और गुलेल से भी उनका सामना किया जा रहा है. सुरक्षा बलों के ये सारे प्रयास यदि पत्थरबाजों को रोकने में सफल नहीं हैं, तो फिर बल प्रयोग के अलावा कोई चारा नहीं.

दुर्भाग्य है कि कुछ लोग स्थिति की गंभीरता को समझे बगैर बयान दे रहे हैं. आईएसआईएस का झंडा लहराना उसे कश्मीर में आमंत्रित करना है. आईएसआईएस पाकिस्तान पहुंच चुका है. अभी उसने सूफी संत लाल शहबाज कलंदर की दरगाह पर ऐसा भीषण आतंकवादी हमला किया जिसमें करीब 100 लोग मारे गए और 200 से ज्यादा घायल हुए. अफगानिस्तान में वह पहुंच चुका है. बांग्लादेश में हमला कर चुका है. भारत अभी तक उससे अछूता है. क्या हमें आईएस का झंडा लहराने वालों को यूं ही छोड़कर उस दिन का इंतजार करना चाहिए जब वे अपना संगठन कश्मीर में खड़ा कर हमला करने लगें? या समय पूर्व उसे कुचल दिया जाए? 

अच्छा हुआ कि रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने जनरल रावत के बयान का समर्थन करते हुए कहा है कि सेना हर कश्मीरी को आतंकवादी नहीं मानती लेकिन कोई सेना के खिलाफ कुछ करे तो स्थानीय अधिकारी को कार्रवाई की स्वतंत्रता होती है. उनके कथन से सरकार की नीति भी स्पष्ट हो गई है. इसके बाद सुरक्षा बलों को कार्रवाई में कोई समस्या नहीं आनी चाहिए. जो भारत विरोधी हैं, जो आतंकवाद के समर्थक हैं, जो पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाते हुए झंडा लहराते हुए लोगों को भड़काते हुए हिंसा करते या कराते हैं, उनके साथ एक कायर देश ही मुरव्वत का व्यवहार कर सकता है.

अवधेश कुमार
लेखक


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