बदलाव : निकाह की नई शर्त

Last Updated 23 Feb 2017 04:29:38 AM IST

मौलवियों-मुफ्तियों की सोच समय के साथ बदल रही है. यह आधुनिक सोच कट्टरपंथी समझ पर भारी पड़ने लगी है.


बदलाव : निकाह की नई शर्त

मौजूदा चुनावी समर ने गधों की इज्जत बढ़ा दी है. चारों तरफ गधे-घोड़ों का मुद्दा छाया हुआ है. इसी मुद्दे के बीच मदनी का शौचालय नहीं तो निकाह नहीं पढ़ने का फैसला सभी मुद्दों पर भारी पड़ रहा है. पूर्व राज्य सभा सांसद मौलाना महमूद ए मदनी अपने बयान को लेकर फिर से चर्चाओं में हैं. लेकिन इस बार अच्छे काम को लेकर.

मदनी ने प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान का समर्थन करते हुए निर्णय लिया है कि जिस घर में शौचालय नहीं होगा उस घर में निकाह नहीं पढ़ेंगे. जमीयत-उलमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने पूरे देश के काजियों से कहा है कि जिस घर में शौचालय न हो वहां मौलवी और मुफ्ती निकाह पढ़ने न जाएं. अगर इस फैसले को पूरे हिंदुस्तान के मुसलमान मानते हैं,  तो स्वच्छता के क्षेत्र में नया बल मिलेगा. मौलाना मदनी ने तीन राज्यों में शौचालय की शर्त को मुसलमानों की शादी के लिए अनिवार्य कर दिया गया है. जल्द ही अन्य सभी राज्यों में इसे लागू किया जाएगा. अभी तीन राज्यों हिमाचल प्रदेश, पंजाब और हरियाणा के मौलवियों तथा मुफ्तियों ने फैसला किया है कि वे ऐसे मुस्लिम लड़कों का निकाह नहीं कराएंगे जिनके घरों में शौचालय नहीं हैं. निश्चित रूप यह फैसला स्वागतयोग्य और देशहित में है.

पिछले दिनों असम सरकार की ओर से खानापाड़ा में स्वच्छता पर आयोजित एक कार्यक्रम में मदनी साहब ने शिरकत की थी. उसी दौरान अपने भाषण में उन्होंने कह दिया कि मुसलमान भी विकास की मुख्यधारा से जुड़कर चलना चाहते हैं. उन्होंने प्रधानमंत्री की कई योजनाओं की सराहना की. स्वच्छता अभियान की खास तौर पर सराहा. कहा कि वक्त आ गया है कि देशभर में सभी धर्मो के धार्मिक नेताओं को इस दिशा में सक्रिय हो जाना चाहिए. स्वच्छता पर जोर देते हुए उन्होंने लोगों से कहा कि वे  शौचालयों का इस्तेमाल करें. न सिर्फ असम को बल्कि समूचे देश को स्वच्छ बनाएं. उनके कथन के बाद चारों ओर तालियों की गड़गड़ाहट गूंजने लगी. वहां मौजूद लोग देर तक ताली बजाकर उनके फैसले का स्वागत करते रहे.

दरअसल, पूर्व में मदनी अपने तुगलकी फरमानों के चलते काफी चर्चा में रहे हैं. अचानक उनकी सोच बदल गई. यह बड़ी बात है. गलत फरमानों के चलते मुसलमान भी उनको नकारने लगे थे, यही वजह है कि उस गहराई को पाटने के लिए अपने लोगों में वह फिर से जगह बनाना चाह रहे हैं. मदनी के अलावा दूसरे धर्म के लोगों के भीतर भी स्वच्छता को लेकर जागरूकता बढ़ रही है, लोग उसका उदाहरण भी पेश कर रहे हैं. पिछले दिनों ऐसी कई घटनाएं सामने आई, जब एक वृद्ध महिला ने टायलट बनाने के लिए अपनी बकरी बेच दी तो एक लड़की ने बिना टायलट वाले घर में शादी करने से इनकार कर दिया. नागपुर में एक महिला ने शौचालय बनवाने के लिए अपना मंगलसूत्र बेच दिया. गांव-कस्बों की नवविवाहिताओं ने भी मिसाल पेश की. शौचालय न होने पर ससुराल जाने से इनकार किया.

इसी क्रम में मौलवियों और मुफ्तियों का ऐसे लड़कों के लिए यह फैसला आया है. यकीनन यह स्वच्छता अभियान की गति को मजबूत करेगा. मुसलमानों की सोच भी बदलेगा. अक्सर देखा जाता है कि ग्रामीण इलाकों में लोग आज भी खुले में नित्यक्रिया को प्राथमिकता देते हैं. लेकिन स्वच्छता अभियान शुरू होने के बाद से अभी तक करोड़ों शौचालयों को निर्माण होना, दर्शाता है कि भारत बदलाव की अंगड़ाई ले रहा है. मोदी की महत्त्वाकांक्षी शौचालय योजना का समर्थन पूरा मुल्क कर रहा है.

स्वच्छता अभियान के विज्ञापन में अभिनेत्री विद्या बालन भी महिलाओं से आह्वान करती हैं कि-पहले शौचालय फिर विवाह. सरकार की इस अपील को पता नहीं कितने लोगों ने माना. पर मौलाना मदनी ने इस पर समझदारी वाला फैसला लिया. मदनी इस फैसले से पहले सत्ता के प्राथमिक मुद्दे को छोड़ कर अन्य मुद्दे, जो दफने हुए थे या राख स्वरूप थे, उठाने और उन पर अनर्गल बहस करने के लिए जाते थे. इसके इतर उनकी सोच काबिलेतारीफ कही जाएगी. देश में इस समय चुनावी माहौल है, कई राज्यों में चुनावी प्रक्रिया जारी है, घोड़े-गधों के मुद्दे के बीच स्वच्छता की वकालत करता, यह फैसला बेजा मुद्दों को कमजोर कर रहा है.

रमेश ठाकुर
लेखक


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