सड़क हादसे रोकने की बड़ी चुनौती

Last Updated 20 Feb 2017 05:13:25 AM IST

पिछले कुछ दिनों में जिस तरह देश के विभिन्न हिस्सों में भीषण सड़क हादसे हुए हैं, उससे साफ है कि यातायात कानून में बदलाव के बाद भी सड़क हादसे रोकने की चुनौती कम नहीं हुई है.


सड़क हादसे रोकने की बड़ी चुनौती

एक आंकड़े के मुताबिक देश में सड़क नियम का पालन न होने के कारण पिछले एक दशक में 13 लाख से अधिक लोगों की जान गई है और तकरीबन 50 लाख से अधिक लोग अपंगता के शिकार हुए हैं. यह आंकड़ा दुनिया की कुल सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों का 10 फीसद है. आंकड़ों के मुताबिक 2015 में भारतीय सड़कों पर तकरीबन 1,46,133 लोग हादसे के शिकार हुए, जिनमें 12,589 बच्चे भी थे.

गौर करें तो पिछले चार दशकों में सड़क हादसों में तकरीबन 53 फीसद का इजाफा हुआ है. 1970 की तुलना में यह तकरीबन दस गुना की बढ़ोतरी है. ध्यान दें तो सड़क हादसे के  लिए सिर्फ नियमों का पालन न होना ही एकमात्र जिम्मेदार नहीं है. बल्कि इसके लिए बहुतेरे कारण और भी हैं, जिनमें से एक सड़कों का डिजाइन भी है. सड़क यातायात मंत्रालय के मुताबिक देश में ऐसे 496 ब्लैक स्पॉट हैं जिनकी वजह से भयंकर हादसे होते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन की ग्लोबल स्टेट्स रिपोर्ट ऑन रोड सेफ्टी 2015 के अनुसार सड़क हादसों में मारे जाने वालों की संख्या के आधार पर भारत दुनिया में शीर्ष पर है. यहां हर मिनट सड़क हादसे होते हैं और प्रत्येक चार मिनट में एक व्यक्ति की जान जाती है. 2007 में सर्वाधिक सड़क हादसों वाले देश के रूप में भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है.

लॉ कमीशन की मानें तो सड़क हादसे में होने वाली कम-से -कम 50 फीसद मौतें रोकी जा सकती है, यदि पीड़ितों को हादसे से पहले एक घंटे के नाजुक समय में चिकित्सा सुविधा मिल जाए. 2006 में इंडियन जर्नल ऑफ सर्जरी के एक शोध में बताया गया है कि देश में हादसे के 80 फीसद पीड़ितों को इस घंटे के \'गोल्डेन ऑवर\' में आपात चिकित्सा सुविधा  नहीं मिल पाती है.

शोध में यह भी कहा गया है कि हर घटना पर सरकारी मदद पहुंचने की बात तो दूर वहां मौजूद आम लोग भी पीड़ित को तत्काल अस्पताल पहुंचाने में हिचकिचाते हैं. सड़क हादसों में सिर्फ मौत ही नहीं होती है बल्कि बड़े पैमाने पर आर्थिक नुकसान भी होता है. एक अनुमान के मुताबिक सड़क हादसों में जीडीपी को तकरीबन 3 फीसद सालाना चपत लगती है. संयुक्त राष्ट्र की मानें तो सड़क हादसों में हर वर्ष भारत को 58 अरब डॉलर यानी तकरीबन चार लाख करोड़ रुपये का नुकसान होता है. आर्थिक विशेषज्ञों की मानें तो अगर देश की सड़कें सुरक्षित हो जाएं और एक भी दुर्घटना न हो तो भारत का जीडीपी दहाई के अंक को छू लेगा.



हालांकि वैश्विक परिदृश्य पर नजर दौड़ाएं तो साल 2007 से दुनिया में सड़क हादसे से होने वाली मौतें एक तरह से स्थिर हैं लेकिन भारत में इनमें तेजी से इजाफा हुआ है. दुनिया भर में सड़क हादसों में मारे जाने वाले कुल लोगों में सड़क पर चलने वाले पैदल यात्रियों, साइकिल सवारों, मोटरसाइकिल चालकों की आधी हिस्सेदारी होती है. भारत में सड़क पर होने वाली मौतों में सर्वाधिक जोखिम वाले इस वर्ग की हिस्सेदारी 35 फीसद है. मगर इनकी सुरक्षा के लिए कोई कानून नहीं है.

जबकि वियतनाम जैसे विकासशील देश ने सड़क सुरक्षा को लेकर खास कदम उठाए हैं. नये कानून में पहले यहां केवल 40 फीसद मोटरसाइकिल चालक हेलमेट का इस्तेमाल करते थे लेकिन 2007 में नया हेलमेट कानून लागू होने के बाद 2009 तक हेलमेट इस्तेमाल करने वालों की तादाद 95 फीसद तक हो गई. पिछली सदी के सातवें दशक के मध्य में अमेरिका हाइवे सेफ्टी एक्ट लागू किया.

आस्ट्रेलिया ने राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा रणनीतिक पैनल गठित की है. यह राज्यों, क्षेत्रों, और स्थानीय सरकारों के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए एक फ्रेमवर्क प्रदान करती है. इसी तरह स्वीडन ने 1997 में विजन जीरो लक्ष्य के साथ सड़क ट्रैफिक सुरक्षा बिल को मंजूरी दी और स्वीडिश नेशनल रोड एडमिनिस्ट्रेशन को गठित किया. यह बीमा कंपनियों और ऑटोमेटिव इंडस्ट्री को सहयोग प्रदान करती है.

इसी तरह ब्रिटेन में 1974 में लागू रोड ट्रैफिक एक्ट से स्थानीय एजेंसियों पर शिक्षा इंजीनियरिंग और रोकथाम के उपायों के जरिये सड़क हादसों को कम करने का दारोमदार है. भारत की बात करें तो यहां मोटर व्हीकल एक्ट 1988 से यातायात का नियमन किया जाता है, जो आज कि चुनौतियों से लड़ने में पूर्णत: असमर्थ है. बेहतर होगा कि सरकार सड़क यातायात के लिए सख्त कानून बनाए और राज्य सरकारें उसके क्रियान्वयन में सहयोग दे.
 

 

 

अरविंद जयतिलक


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