मुद्दा : अराजकता का होम आशा किरण
अश्क्त एवं मंदबुद्धि लोगों के लिए दिल्ली सरकार द्वारा संचालित आशा किरण होम में बीते दो माह के दौरान हुई 11 मौतें बताती हैं कि सत्ता किसी की भी हो, ऐसे संस्थानों में रहने वाले लोग उसके लिए इंसान नहीं हैं.
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11 लोगों की मौत का खुलासा हाल ही में भाजपा की ओर से आरटीआई के हवाले से हुआ था. यह खुलासा होने के बाद दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने अपनी टीम के साथ आशा किरण होम का दौरा किया. उन्होंने देखा कि वहां एक महिला निर्वस्त्र घूम रही है,जबकि सीसीटीवी की निगरानी के लिए पुरुष स्टाफ है. शौचालय गंदगी से भरे हैं. बिस्तर भी गंदे हैं.
आशा किरण होम में हुई इन 11 मौतों व महिलाओं की सुरक्षा और सामने आई कई खामियों ने एक बार फिर से पुराने सवालों को सामने खड़ा कर दिया है. नौकरशाही व सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है. बेसहारा अशक्त व मंदबुद्धि लोगों के लिए सरकार से अतिरिक्त संवेदना की अपेक्षा रहती है और एक कल्याणकारी राज्य का यह अहम दायित्व भी है, पर ऐसा दिखाई नहीं देता. गौरतलब है कि आशा किरण में लोगों की मौत का मामला नया नहीं है. वर्ष 2015 में एक-के-बाद एक 15 मौतें होने के बाद यह होम सुर्खियों में रहा. 2014 में भी 51 मौतें हुई थी. 2009-10 में 46 व 2005-06 में 59 लोगों की मौतें हुई. नौ साल में 308 लोग मरे. अफसोस कि हालात नहीं सुधरे. आशा किरण होम में 950 अशक्त व मंदबुद्धि बच्चे, महिलाएं व पुरुष रहते हैं, जबकि जगह 510 की है. कैग की वर्ष 2015 की रिपोर्ट में-जगह, मेडिकल सुविधाओं और स्टॉफ की कमी आदि महत्त्वपूर्ण तथ्यों को उजागर किया गया था.
अब हालात कैसे हैं, यह 11 लोगों की मौत बताती है. स्वाति मालीवाल का निरीक्षण भी वहां के अंदर के हालात को जनता के सामने रखता है. महिला आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, होम में मानसिक रूप से विक्षिप्त महिलाओं के मानवाधिकारों का हनन किया जा रहा है. होम के कॉरिडोर में लगे सीसीटीवी फुटेज में महिलाओं के स्नानघर की तस्वीरें भी कैद होती हैं. नहाने से पहले महिलाओं को कतार में लगना पड़ता है. कॉरिडोर में लगा कैमरा हर तीन मिनट में स्नानघर की ओर भी घूमता है. सीसीटीवी फुटेज की निगरानी पुरुष करते हैं. महिला आश्रम में पुरुषों के आने पर भी कोई मनाही नहीं है. बाथरूम भी बहुत गंदे थे. आशा किरण होम के एक कमरे में क्षमता से तीन गुना अधिक लोगों को रखा गया था. ठंड से बचने के उपाय भी कम थे. चार से पांच लोगों पर एक कंबल दिया गया था.
गंदे बर्तनों में लोगों को खाना दिया दिया जा रहा था. बुजुर्ग महिलाओं की दिक्कतों के बावजूद वहील चेयर मुहैया नहीं कराई गई. कार्रवाई के लिए दिल्ली महिला आयोग ने दिल्ली सरकार के समाज कल्याण विभाग के सचिव को नोटिस जारी कर पूछा है कि क्या उन्हें ऐसे हालात की जानकारी थी और इसे दूर करने के लिए क्या कदम उठाए गए? अरविंद केजरीवाल ने भी इस मामले में मुख्य सचिव से 13 फरवरी तक घटना के कारण और जांच की रिपोर्ट देने को कहा है. सवाल यह है कि जांच रिपोर्ट में जो भी सामने आएगा, उन खामियों को दूर करने के लिए क्या दिल्ली सरकार गंभीर होगी? क्योंकि यह पहली मर्तबा नहीं है कि होम में सुधार के लिए जांच कमेटी का गठन किया गया हो. इससे पूर्व भी सुधार के लिए सिफारिशें सरकार को भेजी गई. मगर उन पर अमल कितना हुआ, यह वहां के हालात बताते हैं.
1998 में आशा किरण में एक ही दिन में पांच मौतें हुई थी. तब जुवेनाइल वेल्फेयर बोर्ड ने स्वत: संज्ञान लिया था और बोर्ड के तत्कालीन चैयरमेन बी.एस. गहलोत की यह टिप्पणी आज भी याद आती है-‘यह एक विशेष मामला है, जहां याची नजर नहीं आ रहा, इसलिए कोई प्रतिवादी भी नहीं है. और बोर्ड के सामने केवल मंदबुद्धि बच्चों के बिंब हैं, जो हमारी ओर घूर रहे हैं. जैसे कि वे हमें कुछ कहना चाहते हों. लेकिन उनका दिमाग उनका साथ नहीं दे रहा. इसलिए ऐसे मामलों का जल्दी से निपटारा करना व उन्हें इंसाफ दिलाना हमारे लिए लाजिमी हो गया है.’ बेशक 11 मौत पर भाजपा, कांग्रेस व आप के बीच राजनीति हो रही है और आप सरकार नौकरशाही को निशाना बनाकर खुद को पाक साफ बताने की फिराक में है. सरकार के लिए यह वक्त बेसहारा मानसिक विक्षप्त लोगों से छीनी हुई उनकी मानवीय गरिमा लौटाने का है और अपना धर्म निभाने का भी.
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