आईटी : नई चुनौतियों से साबका

Last Updated 17 Feb 2017 07:19:01 AM IST

यकीनन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत की सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कंपनियों के होश उड़ा दिए हैं.


आईटी : नई चुनौतियों से साबका

स्थिति यह है कि आईटी उद्योग की निकाय नैसकॉम ने एक अप्रत्याशित कदम के तहत अगले वित्त वर्ष 2017-18 के लिए बढ़त का अनुमान लगाने का निर्णय टाल दिया है. 25 साल के इतिहास में पहला मौका है, जब आईटी उद्योग अमेरिका में नियामकीय बदलाव और आर्थिक परिदृश्य के चलते भारी अनिश्चितता का सामना कर रहा है.

नैसकॉम ने कहा कि मौजूदा वित्त वर्ष के लिए बढ़त 8.6 फीसद रहने की संभावना है. हालांकि, पहले यह 10-12 फीसद रहने की बात की गई थी. ट्रंप करीब दो दशकों में पहली बार आईटी सेवा कंपनियों के लिए सख्त वीजा कानून के लिए संशोधन का विधेयक लाए हैं. अगर यह विधेयक अमेरिकी संसद में पारित हो जाएगा तो न केवल भारतीय आईटी कंपनियों पर वरन  आईबीएम, एक्सेंचर और माइक्रोसॉफ्ट जैसी अमेरिकी कंपनियों पर भी इस विधेयक की भारी मार पड़ सकती है. प्रतिभा की कमी पाटने के लिए ये कंपनियां भारतीय इंजीनियरों को अमेरिका भेजती रही हैं. गौरतलब है कि अमेरिकी कंपनियों को भारत जैसे देशों से कम वेतन में इंजीनियर अमेरिका भेजने के बजाय अमेरिकी लोगों को ही काम पर रखने के लिए प्रोत्साहित करने के मद्देनजर अमेरिका में एच1बी कर्मचारियों को चुकाए जाने वाले न्यूनतम पारिश्रमिक को 60,000 डॉलर से बढ़ाकर 130,000 डॉलर सालाना किए जाने के लिए हाल में विधेयक तैयार किया गया है. अमेरिका जितने एच1बी वीजा जारी करता है, उनमें 69 फीसद भारतीयों के लिए जारी होते हैं. यह संख्या बढ़ती जा रही है, लेकिन उनमें देश से बाहर रहने वाले भारतीय भी शामिल हैं.

इस विधेयक को देखते हुए भारतीय आईटी उद्योग के शेयरों में भारी गिरावट दर्ज की गई है. देश की शीर्ष कंपनियों टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस), इन्फोसिस, विप्रो, टेक महिंद्रा और कागिजेंट जैसी नामी आईटी कंपनियों के शेयर निचले स्तर पर आ गए हैं. चूंकि, देश  के लिए करीब 108 अरब डॉलर  की सालाना विदेशी मुद्रा कमाने वाले आईटी सेवा उद्योग की दो-तिहाई से अधिक आमदनी अमेरिका और यूरोप जैसे बाजारों को निर्यात से होती है. अतएव, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के वीजा संबंधी कठोर निर्णय से आऊटसोर्सिग के क्षेत्र में परचम फहराते हुए आगे बढ़ने वाले भारत के समक्ष चिंताएं बढ़ गई है. इतना ही नहीं आईटी उद्योग के समक्ष कुछ ओर चुनौतियां भी खड़ी हो गई हैं. यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के बाहर निकलने (ब्रेक्सिट) के कारण यूरोप और ब्रिटेन में कारोबार घटने के कारण भारत के आईटी उद्योग के क्लाइंट्स की बेरुखी दिखाई दे रही है. अमेरिका के बैंकिंग एवं वित्तीय सेवा उद्योग से जुड़े ग्राहकों ने भी विवेकाधीन खर्च रोक दिए हैं. एक और चिंता नई तकनीक के कारण आईटी कंपनियों में नौकरियों में भारी कमी आने से संबंधित है. नई तकनीक जैसे ऑटोमेशन, रोबोटिक्स और कृत्रिम इंटेलीजेंस व्यवस्था बढ़ने के कारण भारत की आईटी कंपनियों में निचले और मझौले स्तर पर नौकरियों की भारी कमी हो गई है. 

चीन सहित दुनिया के  कुछ प्रतिद्वंद्वी आईटी क्षेत्र सोने के  अंडे देने वाली भारत की आईटी मुर्गी कोहथियाना चाहते हैं. दक्षिण कोरिया, जापान, जर्मनी, आयरलैंड, कनाडा, अमेरिका, चीन, मैक्सिको, दक्षिण अफ्रीका आदि देश भारत को चुनौती देने के लिए सुनियोजित रूप से प्रयत्नशील हैं. भारतीय आईटी सेवा उद्योग को अमेरिकी नियामक की तरफ से होने वाले परिवर्तन से जुड़ी मौजूदा अनिश्चितता का सामना करने की तैयारी करनी होगी. चूंकि, वीजा संबंधी विधेयक सिर्फ प्रस्तावित है और ऐसे विधेयकों के क्रियान्वयन में लंबा समय लगता है. अतएव, भारतीय आईटी कंपनियों को भविष्य में ऐसे किसी बदलाव के लिए अपने बिजनेस मॉडल को समायोजित करने के लिए कुछ समय मिल जाएगा. यह भी दिखाई दे रहा है कि अमेरिका में बदले हुए आईटी परिवेश को देखकर पिछले तीन महीनों में कई बड़ी आईटी कंपनियां अमेरिका में अपनी स्थानीय नियुक्तियों में तेजी ला चुकी हैं. इसके अलावा अब यदि आईटी कंपनियां आय वृद्धि वाले अधिग्रहणों के लिए अपने मजबूत नकद बैलेंस का इस्तेमाल प्रभावी ढंग से करने का कदम उठाती हैं तो उन्हें भविष्य में अधिक मजबूती मिल सकती है.

हमें सूचना प्रौद्योगिकी की स्तरीय शिक्षा देने के लिए समुचित निवेश करना होगा. निश्चित रूप से अच्छी अंग्रेजी, बेहतर उच्चारण, संवाद दक्षता, व्यापक कम्प्यूटर ज्ञान और उच्च शैक्षणिक गुणवत्ता जैसी प्रमुख विशेषताओं से सुसज्जित होकर देश और दुनिया में भारतीय प्रतिभाएं अपना दबदबा बनाए रख सकेंगी और भारतीय अर्थव्यवस्था की ताकत बनी रहेगी. हमें सॉफ्टवेयर निर्यात के लिए अमेरिकी बाजार पर निर्भरता कम करके अन्य देशों में भी कदम बढ़ाना होंगे. यूरोप के अलावा एशिया प्रशांत क्षेत्र में भारतीय कंपनियों के लिए व्यापक संभावनाएं हैं. जहां देश की आईटी कंपनियों को आऊटसोर्सिग के रास्ते में आने वाली बाधाओं को हटाने और नई तकनीकों के उपयोग की ओर कदम बढ़ाने होंगे, वहीं अमेरिका से उभरी आईटी चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार को सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की कंपनियों से विस्तृत आंकड़े उपलब्ध करने होंगे ताकि अमेरिका की नई सरकार के साथ वीजा के मुद्दे पर प्रभावी ढंग से बात की जा सके.

इस परिप्रेक्ष्य में आईटी क्षेत्र के औद्योगिक संगठन नैसकॉम को आंकड़े एकत्रित करने होंगे और आकलन भी करना होगा कि अमेरिका में वीजा नीतियों के प्रस्तावित बदलाव से क्या प्रभाव पड़ सकता है. वि मंच पर भी हमें यह बात उठानी होगी कि अमेरिका सहित दुनिया के कई विकसित देश संरक्षणवादी नीतियों को प्रोत्साहित करने हुए दिखाई दे रहे हैं. जो कि वैश्विक व्यापार के नियमों के विपरीत है.

जयंतीलाल भंडारी
लेखक


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment