भारत-यूएई : आर्थिक-सामरिक बढ़त

Last Updated 27 Jan 2017 06:56:30 AM IST

अबूधाबी के शहजादे और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की सशस्त्र सेनाओं के डिप्टी सुप्रीम कमांडर शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान के मुख्य अतिथित्व में राजपथ पर गणतंत्र दिवस के अवसर पर संयुक्त अरब अमीरात के सैनिकों समेत भारतीय सैनिकों की परेड सलामी के साथ ही दोनों देशों के परस्पर संबंधों में नया आयाम जुड़ गया.


भारत-यूएई : आर्थिक-सामरिक बढ़त

भारत के कूटनीतिक इतिहास में भी पहली दफा हुआ जब गणतंत्र दिवस समारोह में ऐसे नेता को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया जो किसी देश या सरकार का प्रमुख नहीं है. इससे न केवल भारत के भविष्योन्मुखी नजरिए बल्कि संयुक्त अरब अमीरात ही नहीं, समूचे खाड़ी क्षेत्र में बेहद लोकप्रिय नेता के लिए पलक-पांवड़े बिछाने में भारत की पहलकदमी का भी पता चलता है.

भारत के महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय समारोह में अरब अमीरात के सैनिकों की भागीदारी भी उनके लिए दुर्लभ सम्मान था. इससे पूर्व  फ्रांस ही था जिसके सैनिकों ने भारत के इस राष्ट्रीय पर्व में भारतीय सैनिकों के साथ शिरकत की थी. इस सबसे दोनों देशों के बीच परस्पर  विश्वास और समझ की प्रगाढ़ता, जिनमें भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अगस्त, 2015 में इस खाड़ी देश के दौरे के दौरान नये सिरे से जान फूंकी थी, का पता चलता है. भारतीय प्रधानमंत्री के दौरे, जो किसी भारतीय प्रधानमंत्री का 34 वर्ष बाद पहला दौरा था, के छह माह पश्चात ही शहजादे अल नाहयान बीते वर्ष फरवरी माह में भारत की यात्रा पर आए थे. तब के बाद से दोनों नेताओं के बीच व्यक्तिगत तालमेल और प्रगाढ़ता और घने हुए हैं. इसके लिए अनेक कारण गिनाए जा सकते हैं, लेकिन सबसे बड़ा यही है कि संयुक्त अरब अमीरात के शहजादे आधुनिक सोच वाले हैं. उनकी विकासोन्मुख छवि है. इसके साथ ही आतंकवाद को लेकर भी वह संजीदा हैं.

सितम्बर, 2016 में जब पाकिस्तान के जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादियों ने भारतीय सेना के जम्मू-कश्मीर में उरी स्थित बेस शिविर पर हमला करके 19 सैनिकों की हत्या कर दी थी, तो खाड़ी देशों में संयुक्त अरब अमीरात पहला देश था, जिसने इस बर्बर आतंकी हमले की घोर निंदा की थी. न केवल निंदा बल्कि भारत की ओर से ‘हर उस संभावित कार्रवाई का भी समर्थन भी किया था, जो भारत आतंकवाद का सामना करने और उसके खात्मे के लिए करना चाहता था.’ गौरतलब है कि 2015 तक इस खाड़ी देश में पाकिस्तान का खासा प्रभाव था, और इस्लामाबाद के लिए प्रमुख विदेशी वित्तीय केंद्र था. लेकिन इस आतंकी घटना की निंदा किए जाने से संयुक्त अरब अमीरात में पाकिस्तान के घटते प्रभाव का संकेत मिला. पाकिस्तान का पाला-पोसा और मुंबई सीरियल विस्फोटों का मुख्य अभियुक्त दाउद इब्राहिम बेखटके दुबई में निवेश करता था.

लेकिन भारत का संयुक्त अरब अमीरात के साथ संबंधों को प्रगाढ़ करने का प्रमुख कारण यह रहा कि हालिया वर्षो में नई दिल्ली की संरचनात्मक क्षेत्र में मांग के वित्त-पोषण में संयुक्त अरब अमीरात की सक्षम भूमिका को शिद्दत से महसूस किया जाने लगा है. तेल एवं गैस के विशाल स्रोत होने के साथ ही संयुक्त अरब अमीरात 800 बिलियन डॉलर का एक सार्वभौमिक कोष भी स्थापित कर रहा है. संयुक्त अरब अमीरात के शहजादे के दौरे के दौरान हालांकि 75 बिलियन डॉलर के भारत-यूएई इंफ्रास्ट्रक्चर बांड की बाबत बातचीत सिरे नहीं चढ़ सकी, लेकिन तथ्य यही है कि अबू धाबी भारत की विकास यात्रा का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनने को तत्पर है. भारत में खाड़ी देशों ने अभी तक जो कुल 80 प्रतिशत निवेश किया है, उसमें से बड़ा हिस्सा यूएई का ही है. मार्च, 2016 तक यूएई भारत में कुल 8 बिलियन डॉलर का निवेश कर चुका था.

इसमें से 4.03 बिलियन डॉलर का निवेश प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के रूप में था, जबकि बाकी पोर्टफोलिया की शक्ल में है. कारोबार के मोच्रे पर भी यूएई भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार देश है. भारत का सबसे बड़ा कारोबारी भागीदार चीन है. दूसरे स्थान पर अमेरिका है. 2015-16 में भारत-यूएई के मध्य लगभग 50 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ था. वर्ष 2030 तक दुतरफा व्यापार 160 बिलियन डॉलर के स्तर पर पहुंच जाने की उम्मीद है. गौरतलब है कि 1971 में यह मात्र 180 मिलियन डॉलर ही था. दरअसल, दोनों देशों के प्रगाढ़ होते संबंधों का आधार 2.6 मिलियन भारतीय प्रवासी हैं, जो यूएई में रहते हैं. वे लाखों डॉलर अपनी मातृभूमि भेजते हैं.

उल्लेखनीय है कि संयुक्त अरब अमीरात उन देशों में शुमार है, जो हिंद महासागर के विशालता के गिर्द आबाद हैं. ऐसे समय जब चीन हिंद महासागर में जहाजों और मालवाहकों के लिए एक बड़ा खतरा बनकर उभरा है, भारत-संयुक्त अरब अमीरात के बीच बढ़ते संबंध और सामरिक भागीदारी से दोनों देशों को इस क्षेत्र में अपनी सुरक्षा को चाक-चौबंद किए रखने में मदद मिलेगी. दोनों देशों के बीच अभी जो 14 समझौते हुए हैं, उनसे रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में उनके प्रयासों की झलक मिलती है. ऊर्जा क्षेत्र में हुए समझौता दोनों पक्षों के लिए अति महत्त्व का है. इससे यूएई में खनित कच्चे तेल के भारत में भंडारण के लिए ढांचागत आधार विकसित करने में मदद मिलेगी. पाकिस्तान के नेताओं को जरा रुक कर सोचना और विचार करना चाहिए कि वे खाड़ी देशों में समान धर्म और विचारधारा के होते हुए भी वे वहां से क्या नहीं प्राप्त नहीं कर सके जो भारत ने सहज प्राप्त कर लिया है. आर्थिक और सामरिक, दोनों ही दृष्टि से उसे बढ़त मिली है. कहना न होगा कि यह सब भारत की सकारात्मक सोच और विकासोन्मुख दृष्टिकोण के चलते ही संभव हो सका है. यकीनन यह पाकिस्तान के लिए मंथन का समय है.

शंकर कुमार
लेखक


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