कदाकिन : रुह में रूस नहीं भारत धड़कता था
भारत के सच्चे दोस्त ही नहीं बल्कि दिल और दिमाग से पूरी तरह भारत में ही रच-बस चुके रूसी राजदूत अलेक्सान्दर कदाकिन (67) अब नहीं रहे.
![]() कदाकिन : रुह में रूस नहीं भारत धड़कता था |
भारत जब अपना 68वां गणतंत्र मनाने में मशगूल था, 67 वर्षीय कदाकिन ने दिल्ली के अस्पताल में सुबह-सुबह अंतिम सांस ली. कदाकिन ने अपने डिप्लोमेट करियर की शुरुआत 1971 में भारत से ही की थी और एक वक्त ऐसा भी आया जब उन्होंने गर्व से कहा था कि भारत उनकी कर्म भूमि, ज्ञान भूमि और तप भूमि है. उन्होंने भारत में 26 साल तक रूसी दूतावास में विभिन्न पदों पर काम किया, जो कि एक रिकार्ड है.
कदाकिन को छोड़कर दूसरे किसी भी देश के इन्वॉय ने किसी एक विदेशी मिशन (दूतावास) में इतने लंबे समय तक काम नहीं किया है. रूसी राजदूत कदाकिन से मेरी मुलाकात 17 अक्टूबर 2014 को दिल्ली स्थित प्रेस क्लब आफ इंडिया (पीसीआई) में हुई थी. रूसी दूतावास और पीसीआई के संयुक्त सौजन्य से भारत-रूस पत्रकारों के एक मेलजोल कार्यक्रम के दौरान उन्होंने अपनी गरिमामय उपस्थिति दर्ज कराई थी. उनकी सहजता और हिन्दी भाषा पर उनका नियंत्रण हमें अभिभूत कर गया. मुझे उनके हिन्दी ज्ञान के बारे में नहीं पता था.
अनौपचारिक बातचीत में जब मैंने उनसे अंग्रेजी में सवाल किया तो, उन्होंने हिन्दी में मुझसे पूछा कि क्या आपको हिन्दी नहीं आती ! हिन्दी तो बहुत ही सुन्दर और सहज भाषा है ? एक रूसी व्यक्ति और राजदूत के मुख से यह सुनकर मैं शर्मसार हो गया. उन्होंने इस बात पर छोभ व्यक्त किया कि बहुत सारे भारतीय शुद्ध हिन्दी नहीं बोल पाते और बोलचाल में हिन्दी और अंग्रेजी का मिश्रण करते हैं.
कदाकिन का असमय चला जाना भारत के लिए कूटनीतिक लिहाज से भी बड़ा झटका है. वे पिछले कुछ सालों से नरम-गरम पड़ते भारत-रूस के संबंधों में एक सेतु का काम कर रहे थे. यह कदाकिन ही थे, जब रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने भारत से कहा था कि भारत और पाकिस्तान दोनों मिल-बैठकर आपसी मतभेद सुलझाएं, तो कदाकिन ने कहा था कि रूस के पास सेटेलाइट से ली गई वह तस्वीरें हैं, जिनमें पाकिस्तान के नियंत्रण वाले कश्मीर में चालीस से अधिक आतंकवादी प्रशिक्षण कैंप होने की पुष्टि हुई है.
कदाकिन आतंकवाद के मुद्दे पर भारत की चिंताओं के साथ खड़े ही नहीं थे, बल्कि मुखरित भी थे. पब्लिक फोरम पर उन्होंने खुलकर भारत के पक्ष में अपने विचार व्यक्त किए थे. वे भारत की स्वतंत्रता और गणतंत्र के प्रति खास लगाव रखते थे. एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि भारत का स्वतंत्रता दिवस मेरे लिए और मेरे सहयोगियों के लिए न्याय की विजय का प्रतीक है. यह दिवस भारतीय नागरिकों की अनेक पीढ़ियों की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतीक है.
भारतीय जनता ने उपनिवेशवादियों द्वारा किए जा रहे उत्पीड़न का दशकों तक डटकर विरोध किया और उसके बाद ही खुद अपने भाग्य का निर्णय करने का अधिकार पाया. आजादी पाने के बाद भारत नवनिर्माण की नई और लंबी कठिन राह पर आगे बढ़ने लगा. इस राह पर आगे बढ़ते हुए आज भारत तेजी से विकास कर रही एक ऐसी अर्थव्यवस्था बन गया है, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी प्रतिष्ठा मिली हुई है. जिसे आज की दुनिया में एक उभरती हुई महाशक्ति माना जा रहा है. उन्होंने कहा था, ‘‘पिछले 68 सालों से भारत और रूस एक-दूसरे के दोस्त हैं. हमें इस बात पर गर्व है कि भारत के साथ हमारे राजनयिक रिश्ते भारत को औपचारिक तौर पर आजादी मिलने से कुछ महीने पहले ही स्थापित हो गए थे.’
बीते वर्षों में भारत मे हुए गहरे आंतरिक राजनीतिक परिवर्तनों और दुनिया में हुए क्रांतिकारी बदलावों के बावजूद रूसी-भारतीय मैत्री प्रगाढ़ होती चली गई. कदाकिन ने कहा था कि उनके निजी जीवन में भी भारत की आजादी (15 अगस्त) का दिन बड़ा महत्त्व रखता है. 1971 में भारत के स्वतंत्रता दिवस की पूर्ववेला में ही मैं पहली बार भारत पहुंचा था. रूस और भारत के बीच मद्धिम पड़ते रणनीतिक सहयोग और सैन्य भागीदारी पर उन्होंने कहा था कि रूस और भारत के संबंध कभी भी कमतर नहीं होंगे. उन्होंने कहा था कि अमेरिका ही नहीं बल्कि दुनिया का कोई भी देश भारत के साथ रूसी संबंधों की बराबरी नहीं कर पाएगा. अब वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें और उनके प्रयासों से भारत-रूस संबंधों में लिखी गई इबारतें हमेशा हमारे जेहन में रहेंगी.
| Tweet![]() |