मुद्दा : महिलाएं भी रहें सजग
हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने दुष्कर्म से जुड़े मामलों पर एक कहा कि एक पढ़ी-लिखी लड़की, जो अपनी इच्छा से शादी से पहले लड़के से संबंध बनाती है, उसे अपने फैसले की जिम्मेदारी लेनी चाहिए.
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कोर्ट के मुताबिक महज शादी करने के वादे को हर दुष्कर्म केस में प्रलोभन के तौर पर नहीं देखा जा सकता.
गौरतलब है कि एक लड़की ने प्रेम संबंध टूटने के बाद युवक पर दुष्कर्म का मामला दर्ज करवाया था. जिस पर गौर करते हुए कोर्ट ने कहा कि हर बलात्कार के मामले में लड़की को शादी का झांसा देकर शीरीरिक संबंध बनाने की बात को ही लालच के तौर पर नहीं देखा जा सकता. अगर धोखा देकर लड़की की सहमति हासिल की गई हो तो धोखे या लालच की बात समझ में आती है. इस तरह के मामलों में शादी का वादा प्रलोभन नहीं माना जा सकता जहां लड़का और लड़की दोनों की मर्जी से संबंध बने हों. कोर्ट ने ध्यान दिलाया कि संबंध खत्म होने के बाद बलात्कार के आरोप लगाने का चलन आजकल काफी बढ़ रहा है. अदालत ने अपने पुराने आदेश का भी हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि जब लड़की वयस्क और पढ़ी-लिखी हो, तो उसे शादी से पहले बनाए जाने वाले यौन संबंधों का अंजाम पता होना चाहिए और इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए. आज के समय में न्यायालय का यह निर्णय महिलाओं को व्यावहारिक और जागरूक सोच अपनाने का संदेश देने वाला है.
जिस देश में महिलाओं के होने वाले र्दुव्यवहार के आंकड़े पहले से चिंताजनक हैं, वहां ऐसे निर्णय इस बात की ओर इशारा करते हैं कि महिलाएं स्वयं भी ऐसे संबंधों के जाल को समझें और सतर्क रहें. हालांकि, अब हमारे में समाज में उदारवादी दृष्टिकोण बढ़ रहा है पर ऐसे संबंधों के परिणाम और उनसे जुड़े शारीरिक-मानसिक शोषण से बचने के लिए युवतियों को स्वयं एक सजग व्यक्तित्व बनना ही होगा. इन हालातों में झांसा देने की दलील काम नहीं कर पाती क्योंकि शिक्षित और सजग महिला ऐसे प्रलोभन में आकर यों रिश्ते बना सकती है, यह कानून ही नहीं समाज और परिवार भी नहीं मानेगा. हमारे यहां अधिकतर कानूनी प्रावधान महिलाओं की सहायता के लिए ही बने हैं. लेकिन अब वे महिलाएं जो हर तरह से सशक्त और शिक्षित हैं, वे इन प्रावधानों का इस्तेमाल पाने ही निर्णय के नकारात्मक परिणाम से बचने के लिए नहीं कर सकतीं. दरअसल, बीते कुछ बरसों में ऐसे झूठे आरोप भी सामने आने लगे हैं, जब महिलाओं ने रजामंदी से बनाए संबंधों को भी शोषण का नाम दिया है. हालांकि, ऐसे झूठे मामले असल में पीड़ा भोगने वाली महिलाओं के मामलों को भी शंका के दायरे में लाते हैं. पर यह एक कटु सच है कि वास्तविक पीड़िताओं के दुखद मामलों के बीच कुछ केस ऐसे भी सामने आए हैं, जो आगे चलकर निराधार आरोप ही साबित हुए. यही इन मामलों का सबसे अधिक चिंतनीय पहलू है. हाल ही में जयपुर में उत्तर प्रदेश की युवती के साथ गैंगरेप की वह कहानी ही मनगढ़ंत निकली, जिसने पूरे शहर को हिला कर रख दिया. युवती ने स्वयं यह स्वीकार किया कि जिस पर दुष्कर्म का आरोप लगाया गया उसके साथ वह स्वेच्छा से गई थी, जहां उसके दोस्त के साथ अन्य तीन युवकों ने भी दुष्कर्म किया था.
इस मामले में युवती का पैसों के लेन-देन को लेकर विवाद हो गया था और इससे नाराज होकर ही उसने पुलिस में गैंगरेप की झूठी रिपोर्ट दर्ज कराई थी. दिल्ली महिला आयोग के आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल 2013 से जुलाई 2014 के बीच दायर किए बलात्कार के मामलों में 53.2 प्रतिशत मामले झूठे पाए गए. यही वजह है कि ऐसे मामलों में पहले भी कई निर्णय आए हैं, जिनमें कहा जा चुका है कि बिना शादी के महिलाएं शारीरिक संबंध से इनकार कर सकती हैं. अगर वे ऐसा नहीं करती हैं तो इसे सहमति के तौर पर लेना चाहिए. दरअसल, ऐसे संबंध व्यक्तिगत चुनाव और जुड़ाव का परिणाम होते हैं, जिनमें कई बार आगे चलकर उलझनें आती हैं तो कभी कोई शोषण का शिकार होता है. यही कारण है कि सामाजिक और पारिवारिक बिखराव के ऐसे मामले अब कानून के लिए भी पेचीदा साबित हो रहे हैं. दरअसल, खुलेपन और लिव-इन रिश्ते इस दौर में कानून और समाज दोनों के लिए विचारणीय हो जाते हैं. शिक्षित और सशक्त होने के मायने यही हैं कि वे अपनी सुरक्षा के लिए भी जागरूक रहें. ऐसे धोखे या झांसे में ना आएं, जो उन्हें शोषण का शिकार बनाने का जाल हो. पढ़ी-लिखी आत्मनिर्भर महिलाओं को अपने विचार और व्यवहार में इतनी समझ और जवाबदेही तो रखनी ही होगी.
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