आतंकवाद के खतरे से निपटने के लिए सही हो नीयत
आतंकवाद के खतरे से निपटने के लिए दक्षिण एशियाई देशों के दरम्यान क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता पर विशेषज्ञों ने जोर दिया।
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नेपाल अंतरराष्ट्रीय सहयोग एवं सहभागिता संस्थान की तरफ से आयोजित ‘दक्षिण एशिया में आतंकवाद : क्षेत्रीय शांति व सुरक्षा के लिए चुनौतियां’ विषयक संगोष्ठी में यह कहा गया। सीमापार आतंकवादी गतिविधियां रोकने, धनशोधन पर अंकुश लगाने के साथ ही दक्षिण एशिया के आतंकवादी कृत्यों की निंदा की गई। लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकवादी संगठनों के नेपाल को पारगमन के तौर पर प्रयोग करने पर भी चिंता व्यक्त की गई।
आतंकवाद केवल एशियाई देशों की विकराल समस्या नहीं है। यह वैश्विक संकट है। ताकतवर देशों से ऐसी नीतियां लागू करने को कहा जा रहा है, जिनके बल पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवादी संगठनों से निपटा जा सके। आतंकवादियों के हमले दिनोंदिन घातक होते जा रहे हैं। वे न केवल तकनीकी और अत्याधुनिक प्रशिक्षण देते हैं, बल्कि संगठित रूप से नौजवानों को बरगला कर संगठन में शामिल करते हैं।
वैश्विक स्तर पर किए गए अध्ययन मानते हैं कि बीते छह सालों में आतंकवादी घटनाओं में 32% इजाफा हुआ है। अकेले 2021 के दौरान दुनिया भर में पांच हजार से ज्यादा आतंकी घटनाएं दर्ज की गई जिनमें हजारों मासूम जानें तो जाती ही हैं, दहशत की माहौल भी बढ़ता है। ढेरों परिवार उजड़ जाते हैं। 2018-21 के दरम्यान अकेले भारत में आठ हजार के करीब जान गई। दक्षिण एशियाई देश यूं भी आर्थिक तौर पर समृद्ध नहीं हैं।
यहां सीमापार उग्रवाद को रोकना बड़ी चुनौती है। खासकर भारत के लिए पाकिस्तान जैसे मुल्क में चल रहे आतंकी संगठनों से बड़ा खतरा है, जो बड़ी संख्या में आतंकियों को घुसपैठ कराने का जाल मजबूत करता रहता है। भूलना नहीं चाहिए कि आतंकियों को कानूनी भय नहीं दिखाया जा सकता। उसके लिए बगैर किसी राजनीतिक हस्तक्षेप के सेना व स्थानीय पुलिस को काम करने की आजादी दी जानी जरूरी है। धनशोधन को लेकर भी पर्याप्त सतर्कता जरूरी है।
जब तक आतंकियों को मिलने वाली आर्थिक मदद की कड़ी नहीं तोड़ी जाती, उनके हौंसले परास्त करने में दिक्कत आती रहेगी। आतंकवादियों के प्रत्यर्पण को लेकर भी दुनिया भर की सरकार को आपसी सहमति व लचीलेपन का रुख इख्तियार करना होगा।
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