बालासोर में खुद को आग लगाने वाली छात्रा की मानसिक दशा पर चिंतन

Last Updated 14 Jul 2025 02:39:50 PM IST

बालासोर खुदकशी कांड, बालासोर के स्वायत्त कॉलेज की छात्रा ने यौन उत्पीड़न से क्षुब्ध हो कर खुद को लगाई आग, ओड़िशा कॉलेज आग खुदकशी ओडिशा में बालासोर के स्वायत्त कॉलेज की छात्रा ने यौन उत्पीड़न से क्षुब्ध हो कर परिसर में ही खुद को आग लगा ली जिसमें वह नब्बे फीसद जल गई।


बालासोर में खुद को आग लगाने वाली छात्रा की मानसिक दशा पर चिंतन

उसे बचाने का प्रयास करने वाला छात्र भी काफी झुलस गया। छात्रा ने सहायक समीर साहू के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज करवाई थी।

घटना के बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया जबकि प्राचार्य व शिक्षा विभाग के प्रमुख को निलंबित कर दिया।

यूनिसेफ की रपट कहती है, भारत में उन्नीस साल से कम उम्र 42% लड़कियों की यौन शोषण होता है।

द लैंसेट जरनल द्वारा 1990 से 2023 के दरम्यान किए गए अध्ययन में पाया गया कि भारत में 30% से अधिक लड़कियां व 13% लड़के 18 साल का होने से पहले यौन हिंसा का शिकार होते हैं।

पीड़ितों को तनाव, भय व मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से ता-उम्र जूझना पड़ता है। स्कूल-कॉलेज, कार्यस्थल से लेकर कुटुंब के भीतर तक हो रही यौन हिंसा के प्रति जागरूकता बढ़ाने की बातें लंबे अरसे से की जा रही हैं।

कॉलेज परिसर में खुद को आग लगाने को मजबूर इस छात्रा की शिकायत के प्रति प्रबंधन व प्राचार्य का रुख बेहद आम है जिससे छात्रों/युवाओं को बचाने व पूरी तरह सुरक्षा प्रदान करने की जरूरत है।

शिक्षण संस्थानों से लेकर कार्यस्थलों तक कार्यरत आतंरिक समितियां बहुधा इसी तरह ढुल-मुल रवैया रखती हैं। मगर राज्यों में बने महिला व मानवाधिकार आयोगों के गैर-जिम्मेदाराना बर्ताव पर सरकारें चुप्पी साधे रखती हैं जबकि ये मामले त्वरित सुलटाए जाने की जरूरत होती है क्योंकि इसका सीधा असर छात्र की शिक्षा व मानसिक स्थिति पर होता है।

उज्ज्वल भविष्य का उसका स्वप्न इससे चौपट हो सकता है। बेशक, आरोपी के लिए भी मामले का निपटान शीघ्र आवश्यक है क्योंकि सिर्फ अन्य विद्यार्थी ही नहीं इससे प्रभावित होते बल्कि दोषी व आरोपी दोनों को ही साक्ष्यों, सहयोगियों, परिचितों व माजी के बर्ताव के आधार पर परख कर मानसिक प्रताड़ना से मुक्त करने का भी त्वरित प्रयास होना चाहिए।

आत्मदाह करने वाली छात्रा की मानसिक दशा व अन्याय बर्दाश्त करने की सीमा को बेहद मानवीय व संवेदनशील तरीके से समझने की आवश्यकता है।

प्रबंधन, लापरवाह व्यवस्था, सरकारों, न्याया प्रक्रिया से लेकर समूचे समाज को इस पर मंथन करना चाहिए।



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