रुपये की विनिमय दर में गिरावट के बीच वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि हमारी इस पर नजर है, लेकिन हमें यह भी देखना होगा घरेलू मुद्रा में गिरावट केवल अमेरिकी डॉलर के संदर्भ में है। यह केवल रुपये का मामला नहीं है और दूसरे देशों की मुद्राएं भी प्रभावित हैं।

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सीतारमण ने यह भी कहा कि अमेरिकी शुल्क से निर्यातकों पर पड़े प्रभाव से निपटने में मदद के लिए संबंधित मंत्रालय और विभाग इस पर काम कर रहे हैं।
अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में शुक्रवार को रुपया गिरावट से उबरते हुए तीन पैसे की तेजी के साथ 88.09 प्रति डॉलर पर बंद हुआ। इससे एक दिन पहले अमेरिकी डॉलर के मुकाबले यह 88.12 के भाव पर बंद हुआ था। रुपया दो सितंबर को अबतक के सबसे निचले स्तर 88.15 पर बंद हुआ था।
रुपये की विनिमय दर में गिरावट के बारे में सीतारमण ने पीटीआई-भाषा के साथ बातचीत में कहा, ‘‘हम इस पर नजर रख रहे हैं। घरेलू मुद्रा में गिरावट केवल डॉलर के संदर्भ में है। यह केवल रुपये का मामला नहीं है और दूसरे देशों की मुद्राएं भी प्रभावित हैं।’’
निर्यातकों पर अमेरिकी शुल्क के असर और उनके लिए सहायता उपायों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘‘सरकार में इस पर काम जारी है। संबंधित मंत्रालय और विभाग इस पर काम कर रहे हैं। जो निर्यातक 50 प्रतिशत शुल्क से प्रभावित हुए हैं, उनकी सहायता के लिए के लिए काम जारी है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘50 प्रतिशत शुल्क 27 अगस्त से प्रभाव में आया है। अभी उद्योग ने भी नहीं बताया है कि शुल्क का कितना प्रभाव होगा...। प्रत्येक संबंधित मंत्रालय और विभाग उनसे पूछ रहे हैं कि क्या प्रभाव होगा। उसके आधार पर हम गौर करेंगे।’’
उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने रूस से कच्चा तेल खरीदने को लेकर भारत पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क लगाया है। इससे कुल मिलाकर शुल्क बढ़कर 50 प्रतिशत हो गया है। इससे झींगा, रत्न एवं आभूषण, कपड़ा समेत अन्य क्षेत्रों पर प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका है।
चीन के साथ बढ़ते संबंधों के बारे में सीतारमण ने कहा, ‘‘चीनी बाजार तक पहुंच के लिए भारत लगातार प्रयास कर रहा है, बातचीत हो रही है। हम पहले से इस पर काम कर रहे हैं। इसे आगे बढ़ाने की जरूरत है। यह पूरी तरह से व्यापार वार्ता है। इसका प्रेस नोट तीन से कोई लेना-देना नहीं है।’’
प्रेस नोट तीन के तहत भारत ने अप्रैल, 2020 में अपनी एफडीआई नीति में संशोधन किया और चीन सहित भूमि सीमा साझा करने वाले देशों से निवेश के लिए सरकारी मंजूरी अनिवार्य कर दिया, ताकि भारतीय कंपनियों के जबरिया अधिग्रहण से बचा जा सके।
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