ट्रंप को नोबेल की लालसा
पाकिस्तान ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नाम की सिफारिश नोबेल शांति पुरस्कार-2026 के लिए की है। हालांकि ट्रंप ने कहा है कि वह कुछ भी कर लें उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिलेगा।
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ट्रंप पिछले दिनों भारत-पाकिस्तान संघर्ष के बाद के बाद कई दफा दावा कर चुके हैं कि उन्होंने ही दोनों पड़ोसी देशों के बीच संघर्ष रुकवाया था। हालांकि भारत सरकार ने उनके इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया।
पिछले दिनों ट्रंप ने पाकिस्तान के कथित फील्ड मार्शल आसिम मुनीर को दावत पर बुलाया था और उसके तीन दिन बाद ही शनिवार को पाकिस्तान सरकार ने कहा कि भारत के साथ संघर्ष में ट्रंप का हस्तक्षेप एक वास्तविक शांतिदूत के रूप में उनकी भूमिका और बातचीत के माध्यम से संघर्ष समाधान के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का प्रमाण है। ट्रंप ने हाल के समय में कई जगहों पर संघर्षरत देशों के बीच संघर्ष समाप्त करने में पहल की बातें कही हैं।
रूस-यूक्रेन के बीच काफी समय से चले आ रहे युद्ध को रुकवाने की भी कोशिश की। यूक्रेन के राष्ट्रपति को बुला कर झिड़का भी, लेकिन युद्ध अभी तक थमा नहीं है। ट्रंप ने कहा कि वह कांगो और रवांडा के बीच संघर्ष को रोकने लिए अद्भुत संधि करा रहे हैं।
ट्रंप नोबेल शांति पुरस्कार की लालसा को अरसे से अपने दिल में पाले हुए हैं, लेकिन वैश्विक घटनाक्रम के मद्देनजर उनकी लालसा पूरी होती दिखलाई नहीं पड़ रही। बीते चौबीस घंटे का घटनाक्रम तो एकदम से उनकी इच्छा पर कड़ा आघात करने वाला रहा।
अमेरिका ने युद्धरत ईरान और इजरायल के बीच तनाव को कम करने की बात तो कही, मगर रविवार तड़के इजरायल की तरफ से ईरान पर बम डाल कर ईरान के तीन सामरिक ठिकाने नष्ट कर दिए। इस हरकत को युद्ध रुकवाने का कार्य तो नहीं ही कहा जा सकता।
शांति तो वार्ता की टेबल पर होती है, लेकिन हमलावर होकर एक पक्ष का साथ देते हुए दूसरे पक्ष को शस्रविहीन कर देना शांति स्थापना करार नहीं दिया जा सकता। वैसे भी पाकिस्तान ने भले ही शांति के नोबेल के लिए ट्रंप को नामित करने की बात कही है, लेकिन उसके अपने देश में ही इसका तीव्र विरोध शुरू हो गया है।
संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की राजूदत रह चुकीं मलीहा लोधी ने एक्स पर लिखा है कि ट्रंप को नोबेल नामित करने संबंधी सरकार का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है।
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