क्या बेरोजगारी सीधे तौर पर आत्महत्या की ओर ले जाती है

Last Updated 15 Jul 2023 12:55:27 PM IST

लंबे समय से बेरोजगारी और आत्महत्या के बीच संबंधों का संकेत ताजा अध्ययन दे रहे हैं। यह प्रयोग पारंपरिक सांख्यकीय तकनीकों के उपयोग द्वारा किया गया।


बेरोजगारी और आत्महत्या

हालांकि बेरोजगारी व खुदकुशी का रिश्ता कारणात्मक है या नहीं, यह स्पष्ट नहीं है जिसमें कहा जा रहा है कि बेरोजगारी सीधे तौर पर आत्महत्या की ओर ले जाती है, यह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता। यह अनुमान आस्ट्रलियाई सांख्यकीय ब्यूरो के श्रम व आत्महत्या दरों से जुड़े आंकड़ों के आधार पर लगाया गया है जिसके अनुसार 2004-17 के दौरान तेरह सालों में बेरोजगारी व अल्प रोजगार के कारण तीन हजार से ज्यादा आस्ट्रेलियाई नागरिकों ने खुदकुशी की।

इस परीक्षण के लिए अभिसरण क्रॉस मैपिंग नामक  तकनीक लागू की गई जो बीते एक दशक में विकसित की गई व अन्य कई अध्ययन भी कर रही है। बेरोजगारी व आत्महत्या के दरम्यान स्पष्ट संबंध सरकारों व संस्थानों की नीतियों को अधिक जिम्मेदारी लेने की चुनौती देता है। यह अध्ययन भले ही एक देश, विशेष समाज के भीतर किया गया है मगर लंबे समय से सारी दुनिया में आत्महत्याओं में तेजी आती जा रही है। विशेषज्ञ इसके लिए तमाम अन्य कारकों दोषी बताते रहे हैं।

अपने देश में प्रति एक लाख व्यक्ति में 12 खुदकुशी करते हैं। आकस्मिक मृत्यु या आत्महत्या करने वालों में 2021 में तेरह हजार से ज्यादा तो छात्र ही थे। आंकड़ा नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो का है। सारी दुनिया में होने वाली आत्महत्याओं में 77 फीसदी के करीब निम्न व मध्य आय वर्ग वाले देशों में होना, इस अध्ययन की पुष्टि करने के लिए काफी है। मुकरा नहीं जा सकता कि खुद को मारने में अतिसमृद्ध व संपन्न लोग भी शामिल होते हैं। मगर उसके पीछे के कारणों में बहुत अंतर होता है।

आर्थिक हालात के चलते पारिवारिक स्थितियां कमजोर पड़ जाती हैं। सेहत संबंधी दिक्कतें, उचित इलाज का अभाव, शिक्षा में व्यवधानों से लेकर खाने, रहने, जीवन यापन संबंधी अड़चनें प्रति दिन मुंह बाये खड़ी होती हैं। ऐसे में दैहिक रुग्णता के साथ मानसिक समस्याएं भी जकड़ती चली जाती हैं। अभावों से जूझने और भविष्य के प्रति बढ़ते नैराश्य में उलझ कर कोई भी अपनी जीवन लीला समाप्त करने को अंतिम समाधान मान बैठता है।

बेहद चिंतनीय होने के बावजूद इसका समाधान ढूंढने के प्रति निरंतर लापरवाही हो रही है, जो किसी भी समाज के लिए कभी भी खतरे की घंटी साबित हो सकती है।



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