ED निदेशक का विस्तार ही अवैध

Last Updated 13 Jul 2023 01:21:50 PM IST

सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने मौजूदा प्रवर्त्तन निदेशक (ED) संजय कुमार मिश्रा (Sanjay Kumar Mishra) के तीसरे कार्य-विस्तार को अवैध करार दिया है। उन्हें अपने विस्तारित कार्यकाल के पहले ही 31 जुलाई 2023 तक कार्यमुक्त करने का आदेश दिया है।


ED निदेशक का विस्तार ही अवैध

अदालत ने माना कि उनका तीसरा विस्तार 2021 में कॉमन कॉज मामले में दिए उसके ही फैसले का उल्लंघन है। हालांकि अदालत ने सेट्रल विजिलेंस एक्ट, दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम और बुनियादी नियमों में सरकार के 2021 के संशोधन को बरकरार रखा। इसके तहत पांच साल तक सेवा-विस्तार दिया जा सकता है।

अदालत की राय है कि ईडी जैसे पद पर सेवा-विस्तार का निर्णय सेट्रल विजिलेंस कमेटी से अनुमोदित होना चाहिए। इसलिए याचिकाकर्ता, जिनमें कांग्रेस-तृमूकां के नेता-सांसद भी शामिल हैं, अदालत के इस फरमान को केंद्र सरकार के लिए एक बड़े सेटबैक के रूप में देख रहे हैं। यह आकलन उनके इन आरोपों पर टिका है कि ईडी संजय कुमार मिश्रा अपनी एजेंसी का इस्तेमाल केवल उन्हीं लोगों के विरुद्ध करते हैं, जो सरकार से असहमति जताते हैं या विपक्ष में होकर उसके मंसूबों को धराशायी करते हैं। वे सरकार के दबाव में कार्रवाई करते हैं।

दुर्भाग्य से यह अवधारणा लगभग पूरे देश की हो गई है। सरकार कहती है कि अगर अफसर भ्रष्टचारियों, जिनमें कुछ परिवारवादी पार्टियां भी शामिल हैं, के विरुद्ध कार्रवाई करते हैं तो वे एकजुट होकर उनकी छवि का हनन करने लग जाती हैं। ईडी के छापे का संबंध दरअसल भ्रष्टाचार पर नरेन्द्र मोदी सरकार की शून्य सहनशीलता से है। यह जारी रहेगी। जैसा कि गृहमंत्री अमित शाह ने भी ट्विट कर कहा कि पद पर कौन बैठा है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

गृहमंत्री नीति और उसे लागू करने की सरकार की अच्छी नीयत की बात कर रहे हैं। भ्रष्टाचार देश को खोखला कर रहा है। उस पर कानून के दायरे में पूरी आक्रामकता से हमला हमारे हित में है। पर सवाल तब उठता है, जब जांच एजेंसियों की कार्रवाइयां सबूतों के बावजूद कई बार उन भ्रष्ट तत्वों की अनदेखी करती लगती हैं, जो सत्ता के आसपास होते हैं।

यहां एक दूसरा सवाल है कि नौकरशाहों की इतनी बड़ी फौज के बीच क्या कोई अन्य अफसर किसी पसंदीदा से अधिक कार्यक्षम, ईमानदार और सरकार की वैध इच्छाओं का सम्मान करने वाला नहीं मिलता? इसलिए कि एक ही अधिकारी पर बार-बार दांव लगाना खामख्वाह शक पैदा करता है। फिर इतने बड़े देश में इन प्रजातियों के नायक का न मिलना हमारे सिस्टम की भी विफलता हो जाती है।



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