अनाथों को सहारा
अपने यहां बच्चों को गोद लिये जाने की परंपरा पुरानी है। खासकर निसंतान दंपतियों द्वारा हमेशा से परिवार के भीतर ही बच्चे गोद लिये जाते रहे हैं।
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अमूमन नन्हें बच्चे का पालक बनने में ये सुविधा महसूसते हैं। महिला व बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा, ऐसे बड़े बच्चों के मामलों की समीक्षा करें, जिन्हें गोद दिया जा सके। बाल संरक्षण, सुरक्षा और शिशु कल्याण विषय पर हुई परिचर्चा में उन्होंने बताया दो राज्यों की समीक्षा में बच्चों के नौ हजार मामलों पर गौर किया गया, जिनमें केवल 164 बच्चों की पहचान हुई, जिन्हें गोद दिया जा सकता है। अपने यहां छह साल से कम उम्र वाले तीन करोड़ बच्चे अनाथ बताये जा रहे हैं। जिन्हें पालक परिवारों की सख्त जरूरत है।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, देश भर के बाल देखभाल गृहों में इस वक्त लगभग 66 हजार बच्चे हैं, जिनमें से तीन हजार से भी कम को कानूनी रूप से गोद दिया सकता है। देश में विभिन्न कारणों से बच्चे ना जन पाने वाले दंपतियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। विशेषज्ञों के अनुसार 10 से 12 करोड़ दंपति संतानोत्पत्ति करने में अक्षम हैं। उधर वि स्वास्थ संगठन मान रहा है कि विकासशील देशों में तकरीबन हर चार में से एक दंपति को बांझपन की समस्या है। ऐसे में बेसहारा बच्चों को अपनाना बेहतर तरीका हो सकता है।
पुरानी सोच वाले अपने ही वंश के बच्चों को अपनाते थे। मगर धीरे-धीरे अनाथ बच्चों के प्रति ममता उमड़ने लगी और वे बड़े चाव से उनके पालक बनने को उत्सुक नजर आने लगे। हालांकि अपने यहां आपराधिक प्रवृत्ति वालों के कुत्सित मंशा के चलते बच्चों को गोद देने की प्रक्रिया काफी जटिल बना दी गई है। दूसरे, बच्चों के चुनाव में दंपतियों की सोच में उधेड़बुन बनी रहती है। कई मामलों में वे बच्चे से इस सचाई को छिपाना चाहते हैं।
कइयों का मानना होता है कि नासमझ बच्चे में समझ आने के साथ अपनापन और भावनात्मक लगाव उमड़ आता है। बड़े बच्चों को बेहतर काउंसलिंग द्वारा पालकों के सुपुर्द किया जा सकता है। खासकर बेसहारा बच्चों की बेहतर परवरिश करने तथा उच्च शिक्षा द्वारा उनका मुस्तकबिल संवारने की सद्इच्छा वाले लोगों के आगे बढ़ने का रास्ता खुल सकेगा। फॉसटर यानी धाय पालित संतान की सुविधा देकर भी सरकार इन बड़े हो रहे बच्चों को बेहतर पालकों के सुपुर्द कर सकती है।
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