अस्थिरता की स्क्रिप्ट
देश के दूसरे सबसे बड़े राज्य में पिछले विधानसभा चुनाव के साथ शुरू हुआ राजनीतिक अस्थिरता का सिलसिला, थमने का नाम ही नहीं ले रहा है।
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हालांकि, औपचारिक रूप से शिंदे के मुख्यमंत्री पद पर बने रहने से कहा जा सकता है कि मौजूदा विधानसभा में महाराष्ट्र में, तीसरी सरकार ही बनी हुई है। लेकिन, एनसीपी से टूटकर आए विधायकों में से कुल नौ नये मंत्रियों के जुड़ने और इस ग्रुप के नेता अजित पवार के उप-मुख्यमंत्री बनने के बाद, वास्तव में महाराष्ट्र सरकार को, मौजूदा विधानसभा में चौथी सरकार ही मानना चाहिए।
आखिर, अजित पवार पांचवीं बार उपमुख्यमंत्री बनने का रिकार्ड बनाने के लिए ही, शरद पवार से बगावत कर के भाजपा के साथ नहीं आये हैं! खैर! एकनाथ शिंदे भले ही फिलहाल मुख्यमंत्री पद पर बने रहें, सत्ताधारी गठजोड़ के पाले में विधायकों की संख्या और बढ़ जाने से भी, सरकार तथा प्रशासन में शायद ही स्थिरता आएगी। इस संख्या का बढ़ना तो सिर्फ बाहरी खतरों के सामने, सत्ता पक्ष को स्थिरता दे सकता है।
इसमें, शिव सेना के फूट से निकले कानूनी मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट के रुख को देखते हुए, शिव सेना छोड़ने वाले कई विधायकों के सिर पर लटकती डिसक्वालिफिकेशन की तलवार का खतरा भी शामिल है। बहरहाल, खुद सत्ताधारी खेमे में समीकरणों के इस तरह के भारी उलट-फेर से, उसकी अंदरूनी अस्थिरता और बढ़ ही जाने वाली है। बेशक, इस अस्थिरता का सीधा संबंध इस बात से है कि भाजपा विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद, सत्ता पर परोक्ष नियंतण्रपर ही संतोष करने पर मजबूर है।
इसकी भरपाई देवेंद्र फडनवीस उप-मुख्यमंत्री की सीट से, बैकसीट ड्राइविंग के जरिए करते रहे हैं। इन्हीं हालात में, मुख्यमंत्री के समर्थकों द्वारा उनके सबसे लोकप्रिय होने के दावे किए जाने से लेकर, उनकी ही तस्वीर वाले पोस्टर निकाले जाने तक, छोटी-छोटी चीजें भी गठजोड़ में खटास पैदा करती रही हैं। अब इन समीकरणों में तीसरा कोण जुड़ने से, सत्ताधारी गठजोड़ की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं।
इसके ऊपर से, इतना तो तय है कि शरद पवार, भतीजे के अपनी पार्टी ले उड़ने पर, चुप नहीं बैठने वाले हैं। शिव सेना के बागी गुट की ही तरह, एनसीपी के बागी गुट को भी महाराष्ट्र की जनता ने अगर नापसंद किया तो, इस महत्वपूर्ण राज्य में राजनीतिक समीकरणों को, क्षेत्रीय पार्टियों में तोड़-फोड़ के जरिए, अपने पक्ष में बदलने की भाजपा की सारी मेहनत, अकारथ भी हो सकती है। फिर भी एनसीपी में इस फूट से भाजपा को तत्काल, विपक्षी एकता के प्रयासों को कमजोर दिखाने में मदद तो मिल ही जाएगी।
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