संतुलित विदेश नीति
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने रविवार को खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में एक रैली में भारतीय विदेश नीति को जमकर सराहा।
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उन्होंने यह बात ऐसे समय कही है जब उनकी सरकार पच्चीस मार्च को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने जा रही है। उन्होंने स्वीकार किया कि भारतीय विदेश नीति स्वतंत्र है और लोगों के हित में है। इमरान खान ने अपनी बात के समर्थन में कहा कि भारत की अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी है और नई दिल्ली क्वाड का सदस्य भी है। बावजूद इसके वह रूस से तेल खरीद रहा है, जबकि अमेरिका ने रूस के तेल और प्राकृतिक गैस पर प्रतिबंध लगाया है।
इमरान खान शायद अपने देश के नागरिकों को बताना चाह रहे हों कि पाकिस्तान की विदेश नीति का संचालन सेना के हाथों में रहा है और इसलिए हमारा मुल्क असफल राज्य की ओर अग्रसर है। यहां समझना आवश्यक है कि वास्तव में विदेश नीति है क्या? हालांकि इस सवाल का उत्तर कठिन है और यह एक जटिल प्रक्रिया है। विदेश नीति को सरल शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है कि यह राज्यों द्वारा विदेशी और अंतरराष्ट्रीय परिवेश में अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वश्रेष्ठ बनाने का प्रयास है। भारत जब आजाद हुआ तब सोवियत संघ और अमेरिका के बीच शीतयुद्ध का दौर चल रहा था।
दो ध्रुवीय विश्व व्यवस्था थी। ऐसे समय में स्वतंत्र भारत की जरूरतों को पूरा करने के लिए गुटनिरपेक्षता की नीति सबसे श्रेष्ठ थी। यूक्रेन संकट जारी है और रूस तथा अमेरिका आमने-सामने हैं। भारत को दोनों के साथ मित्रता रखनी है। जाहिर है कि यूक्रेन संकट भारतीय विदेश नीति की अग्निपरीक्षा थी, लेकिन भारत बिना झुलसे इससे बाहर निकल आया। यूक्रेन संकट के पूर्व राष्ट्रपति बाइडेन की विदेश नीति यूरोप की बजाय एशिया पर केंद्रित थी।
इसका दूरगामी उद्देश्य चीन को दुनिया की नंबर एक ताकत बनने से रोकना था। क्वाड की स्थापना के पीछे यही अघोषित लक्ष्य था। अमेरिका क्वाड को सैनिक गठबंधन का स्वरूप देना चाहता था, जिसके लिए भारत तैयार नहीं हुआ। यह भारतीय विदेश नीति की सफलता कही जाएगी कि संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद में भारतीय प्रतिनिधि ने भाग न लेकर रूस के प्रति मौन समर्थन व्यक्त किया और प्रधानमंत्री मोदी ने क्वाड शिखर वार्ता में भाग भी लिया। विदेश नीति के विशेषज्ञ भारत की नीति को दो नावों की सवारी कह सकते हैं, लेकिन राजनीतिक यथार्थ यह है कि बहुध्रुवीय व्यवस्था में संतुलन पर आधारित ऐसी ही विदेश नीति की आवश्यकता है।
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