संयुक्त प्रवेश परीक्षा
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के एक फैसले से बारहवीं में पढ़ रहे विद्यार्थी, उनके माता-पिता, अभिभावक और स्कूलों के प्रधानाचार्य हैरत में हैं।
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यूजीसी ने फैसला लिया है कि अगले सत्र से अंडरग्रेजुएट कोसरे में दाखिले के लिए विद्यार्थियों को एक केंद्रीय परीक्षा देनी पड़ेगी। इसमें सबसे रोचक बात यह है कि अब से दाखिलों के समय 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं में मिले अंकों की कोई भूमिका नहीं रह जाएगी। आयोग ने फैसला लिया है कि देश के सभी 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों और उनसे संबद्ध कालेजों में अंडरग्रेजुएट कोसरे में दाखिले संयुक्त प्रवेश परीक्षा (सीयूईटी) में प्राप्त अंकों के आधार पर होंगे। अभी तक अंडरग्रेजुएट कोर्सों में दाखिले का मूल आधार 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में मिले अंक हुआ करते थे। हर साल इन अंकों के आधार पर कॉलेज अपनी-अपनी कट ऑफ निर्धारित किया करते थे।
अब नई प्रक्रिया के तहत 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं के प्रदर्शन की अहमियत को खत्म कर दिया गया है। निश्चित रूप से यह बड़ा बदलाव है। यह कोविड-19 महामारी की वजह से शिक्षा में आई रु कावटों से जूझ रहे छात्रों के लिए एक दूरगामी महत्त्व वाला कदम है। 12वीं में मिले अंकों को अंडरग्रेजुएट कोसरे में दाखिले का आधार बनाने को खत्म करना देश की उच्च शिक्षा में एक बड़ा बदलाव है।
12वीं के अंकों को आधार बनाने की वजह से कॉलेजों को दाखिलों के लिए 99 और 100 प्रतिशत जैसे बहुत ही ऊंचे और अवास्तविक कट ऑफ निकालने पड़ते थे। इससे बहुत से विद्यार्थी मनचाहे कोसरे मे दाखिले से वंचित रह जाते थे और उन्हें मजबूरी में लो कटऑफ वाले कोसरे में दाखिला लेना पड़ता था। ऊंची कटऑफ की वजह से बहुत से विद्यार्थी तो कालेजों का मुंह देखने से भी वंचित रह जाते थे और उन्हें विभिन्न डिप्लोमा कोर्सों से ही काम चलाना पड़ता था।
सीयूईटी की मदद से अवास्तविक कटऑफ के युग का अंत हो जाएगा। देश के दूरदराज क्षेत्रों के विद्यार्थियों को भी बराबरी के मौके मिल सकेंगे और एक कॉमन प्रवेश परीक्षा के जरिए शिक्षण संस्थान छात्रों का बेहतर मूल्यांकन कर सकेंगे। चिंता सिर्फ इस बात की है कि इस कदम से कहीं 12वीं की पढ़ाई की अहमियत ही खत्म न हो जाए।
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