असमानता के बीच
हालिया समय में देश में धनवान लोगों (सुपर रिच) की संख्या में जोरदार इजाफा दर्ज किया गया है।
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यकीनन यह विरोधाभासपूर्ण स्थिति है कि जहां देश में आमजन बेहद परेशानी और असुविधापूर्ण हालात से दोचार है, वहीं पिछले साल तीन करोड़ अमेरिकी डॉलर (करीब 226 करोड़ रुपये) या इससे अधिक संपत्ति वाले अत्यधिक धनी लागों की संख्या में 11 फीसद की वृद्धि हुई।
संपत्ति सलाहकार फर्म नाइट फ्रेंक ने ‘द र्वल्ड रिपोर्ट-2022’ के अपने ताजा संस्करण में बताया है कि वैश्विक स्तर पर अत्यधिक धनी लोगों की संख्या 2021 में 9.3 फीसद बढ़कर 6,10.569 हो गई जो इससे पूर्व वर्ष में 5,58,828 थी। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में अधिक नेटवर्थ वाले अमीरों की संख्या 2021 में 13,637 थी जो इससे पूर्व वर्ष में 12,287 थी। धन कुबेरों की संख्या में इजाफे के कारणों में जाएं तो पता लगता है कि शेयर बाजारों में तेजी और डिटिजल क्रांति ने आर्थिक परिदृश्य का यह कायाकल्प किया है। कोरोनाकाल में खास तौर पर अर्थव्यवस्था का डिजिटलीकरण हुआ। शेयर बाजारों में तेजी और बढ़ते डिटिजलीकरण के चलते भारत में अरबपतियों की संख्या 145 हो गई। इस मामले में भारत तीसरे स्थान पर है, उससे आगे अमेरिका (748 अरबपति) और चीन (554 अरबपति) हैं।
बेशक, धनपतियों की बढ़ती संख्या अर्थव्यवस्था में कारोबार-उन्मुख स्थितियों की द्योतक है, लेकिन इसी के साथ हम देखते हैं कि ऐसी स्थितियां कम हैं, जिनसे हमारे लोगों के बीच आर्थिक असमानता कम होती हो। फलस्वरूप असंतोष के हालात बनते हैं, और लोगों के आर्थिक हालात बेहतर करने के लिए सरकारी प्रयास नाकाफी मालूम पड़ने लगते हैं। आर्थिक रूप से संपन्न लोगों के खर्च करने की प्रवृत्ति भी अर्थव्यवस्था को कोई ज्यादा मदद नहीं करती।
अति संपन्न लोग अपनी निवेश करने योग्य संपत्ति का लगभग 30 प्रतिशत पहला या दूसरा घर खरीदने में इस्तेमाल करते हैं। वाणिज्यिक संपत्ति खरीदने में बनिस्बत कम (22 फीसद) खर्च करते हैं, जिससे आर्थिक गतिविधियों का चक्र चलाएमान रखने में मदद नहीं मिल पाती। क्रिप्टो करंसी में भी धनी भारतीयों का निवेश बढ़ा है। बीते साल 18 फीसद अति संपन्न भारतीयों ने क्रिप्टो परिसंपत्तियों में निवेश किया था। बेशक, इससे उनका प्रतिफल कई गुना बढ़ा लेकिन सीधे-सीधे अर्थव्यवस्था को फायदा मिला कि नहीं, प्रश्न प्रत्यक्ष है।
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