सीबीएसई का करेक्शन
सीबीएसई जिस पर पूरे देश के विद्यार्थियों को सही शिक्षा देने की जिम्मेदारी है, वह भी कभी-कभी ऐसे काम कर बैठती है जिस पर बाद में पछताना पड़ता है, और जगहंसाई होती है सो अलग।
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दसवीं कक्षा की अंग्रेजी परीक्षा से एक ‘कॉम्प्रिहेंशन पैसेज’ और उससे जुड़े प्रश्नों को हटाना इसी का उदाहरण है। परिणामस्वरूप विद्यार्थियों को इसके लिए पूरे अंक देने का फैसला किया गया है। इस पैसेज के चयन के बाद सीबीएसई लैंगिक रूढ़िवादिता को बढ़ावा देने और प्रतिगामी धारणाओं का समर्थन करने वाले प्रश्नों को लेकर विवाद में घिर गई थी। इस मामले को विषय विशेषज्ञों के पास भेजा गया था, जिनकी राय के बाद पैसेज और प्रश्नों को हटाने का फैसला किया गया।
दसवीं की परीक्षा के प्रश्न पत्र में ‘महिलाओं की मुक्ति ने बच्चों पर माता-पिता के अधिकार को समाप्त कर दिया’ और ‘अपने पति के तौर-तरीके को स्वीकार करके ही एक मां अपने से छोटों से सम्मान पा सकती है’ जैसे वाक्यों के इस्तेमाल को लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ था। प्रश्न पत्र के अंश सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद ट्विटर पर लोगों ने सीबीएसई पर जबर्दस्त निशाना साधा और ‘सीबीएसई इनसल्ट्स वीमेन’ जैसे हैशटैग के माध्यम से आम लोगों की बेहद तल्ख प्रतिक्रियाएं सामने आने लगीं। मामले को विशेषज्ञों के पास भेजा गया।
उनकी राय मिलने के बाद पैसेज और उससे जुड़े प्रश्नों को छोड़ने का निर्णय लिया गया है। मामला यहीं तक सीमित रहता तो गनीमत थी ,सीबीएसई को सोशल मीडिया पर की गई एक शरारत पर भी स्थिति स्पष्ट करनी पड़ी है। सीबीएसई ने सोशल मीडिया पर चल रहे एक फर्जी ऑडियो के खिलाफ विद्यार्थियों को आगाह किया है। आडियो में दावा किया गया था कि 12वीं कक्षा की अकाउंटेंसी की परीक्षा में त्रुटि के कारण छात्रों को ग्रेस अंक दिए जाएंगे।
बोर्ड ने बयान में कहा कि किसी भी रिपोर्टर ने इस संबंध में परीक्षा नियंत्रक, सीबीएसई से बात नहीं की और बोर्ड ने ऐसा कोई फैसला नहीं लिया है। लोग किसी के बहकावे में न आएं। बोर्ड को चाहिए कि पाठय़क्रम और प्रश्न पत्र तैयार करने की प्रक्रिया की पूरी समीक्षा करे, उसे मजबूत करने के लिए ठोस उपाय करे, जिससे आगे किसी विवाद या गड़बड़ी की कोई गुंजाइश न रहे। पाठय़क्रम का भी परिमार्जन होना चाहिए। लैंगिक रूढ़िवादिता समाज को पीछे ले जाती है।
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