राहुल का हिंदू

Last Updated 14 Dec 2021 12:15:06 AM IST

पता नहीं राहुल गांधी के सलाहकार और भाषण लिखने वाले कौन हैं, जो उन्हें ऐसे-ऐसे प्रवचन और परिभाषाएं थमा देते हैं कि वह हास्यास्पद हो जाते हैं।


राहुल का हिंदू

इधर वह हिंदू और हिंदुत्व की गहन दार्शनिक व्याख्या कर रहे हैं, जिसमें वह खुद को हिंदू बताते हैं और भाजपाइयों को हिंदुत्ववादी। वह कहते हैं कि हिंदू सच को ढूंढता है और उनका रास्ता सत्याग्रह का है और हिंदुत्ववादी पूरी जिंदगी सत्ता को खोजने में लगा रहता है। वे गांधी को हिंदू मानते हैं और गोडसे को हिंदुत्ववादी। इस समूचे वक्तव्य में वह यह नहीं बताते कि हिंदुत्ववादियों के विरोध में उनको किस दबाव के अंतर्गत हिंदू हो जाना पड़ा है।

और उनका अपने हिंदू होने से तात्पर्य क्या है? वह जिस धर्म से जोड़कर स्वयं को हिंदू बताते हैं वह धर्म क्या है, उसका इतिहास क्या है, उसकी धार्मिंक आस्थाएं क्या हैं और उसकी संस्कृति तथा जीवन पद्धति क्या है? वे जिन हिंदुत्ववादियों को गरियाते जाते हैं उनके पास जय-पराजय से भरा हुआ पूरा इतिहास है। वैदिक धर्म से लेकर वेदांत तक वैचारिक दर्शन है, लेकिन पता नहीं लगता है कि राहुल गांधी के हिंदू के पास क्या है? वह गांधी को हिंदू बताते हैं तो उन्हें ध्यान में रखना चाहिए कि गांधी कर्मकांडी हिंदू नहीं, सुधारवादी और समन्वयवादी हिंदू थे। वह हिंदू धर्म को उदार और समन्वयवादी धर्म के रूप में स्थापित करना चाहते थे, लेकिन इतिहास ने गांधी के हिंदुत्व को बुरी तरह पराजित कर दिया।

गांधी अपने हिंदू के सहारे मुसलमानों को साथ नहीं ला सके और देश का भयावह बंटवारा हुआ। गोडसे का कृत्य एक हिंदू की हत्या का नहीं था बल्कि एक विशाल मन उदारपंथी और वैश्विक दृष्टि वाले हिंदू की हत्या का था। हैरानी की बात है कि गांधी की भौतिक हत्या के बाद गांधी की आत्मिक चेतना की सर्वाधिक हत्या तो उन लोगों ने की जिन्होंने गांधी के उपरांत देश की सत्ता संभाली। उन्होंने गांधी की दृष्टि के अनुसार न तो विभिन्न धर्मो के बीच समन्वय की संस्कृति खड़ी की और न उन्होंने देश के बंटवारे की धार्मिंक पहलू का कोई उत्तर खोज पाए और ना हिंदू धर्म के जाति जैसे आंतरिक विग्रहों को खत्म कर उसे अग्रगामी धर्म बनाने की चेष्टा की।

राहुल गांधी की बौखलाहट राजनीतिक शक्ति वाले इसी हिंदुत्व को लेकर है, जिसके विरोध की कोई दार्शनिक और वैचारिक काट उनके पास नहीं है। सिवाय इसके कि वह स्वयं को हिंदू बताएं, ऐसा हिंदू जिसके पास ना सर है और ना पैर। राहुल गांधी के सलाहकारों को चाहिए कि अगर वे हिंदुत्ववादियों के विरोध में हिंदू शब्द को खड़ा करना चाहते हैं तो वे उसमें ऐसा गढ़ें कि लोगों को उसमें सार तत्व नजर आए, भौंडा हास्य नहीं।



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