नई सुबह की आहट
जम्मू-कश्मीर में बहुप्रतीक्षित जिला विकास परिषद के पहले चरण का मतदान संपन्न हो गया।
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यह चुनाव 19 दिसंबर तक आठ चरणों में होगा। चुनाव में भाजपा और कांग्रेस ही नहीं, नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी जैसी स्थानीय पार्टियां गठबंधन बनाकर इसमें शिरकत कर रही हैं। खास बात यह है कि यह चुनाव जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करने वाले अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद हो रहा है।
यही नहीं, पहली बार यहां जिला विकास परिषद का चुनाव हो रहा है, क्योंकि पिछले अक्टूबर में ही इस बाबत जम्मू-कश्मीर पंचायत राज अधिनियम में संशोधन किया गया था। सबकी नजर इस बात पर लगी थी कि मतदान में लोगों की किस सीमा तक भागीदारी होती है, क्योंकि यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया की सफलता की एक कसौटी होगी। इस लिहाज से मतदान में जिस प्रकार एक अशांत क्षेत्र में जनता की भागीदारी रही, उसे उत्साहजनक ही कहा जाएगा। करीब 52 प्रतिशत मत पड़े। एक तरफ सुरक्षा बल आतंकियों के सफाए में लगे हैं, तो जनता ने भी मतदान में भाग लेकर इस प्रक्रिया को मजबूती ही प्रदान की है।
आतंकवादी स्थानीय नेतृत्व के विकास में बाधक रहे हैं, जबकि स्थानीय स्वशासी संस्थाएं नेतृत्व विकास के लिए उर्वर भूमि हैं। सच्चे अथरे में स्थापित लोकतांत्रिक व्यवस्था कभी भी आतंकवादियों के मंसूबों को फलीभूत नहीं होने देना चाहेगी। स्थानीय स्वशासी संस्थाओं के विकास में न केवल आतंकी बाधा थे, बल्कि स्थानीय राजनीतिक दल भी इन्हें पसंद नहीं करते थे। शायद यही कारण था कि जम्मू-कश्मीर में इन संस्थाओं को मजबूती प्रदान करने की अपेक्षित कोशिश नहीं की गई। अगर इनका विकास होता, तो आम आदमी के पास विकास की योजनाएं पहुंचतीं।
पर वहां केंद्रीय योजनाओं के क्रियान्वयन में अनुच्छेद 370 एक बाधा बनकर सामने आ रहा था। अब जब अनुच्छेद 370 के समापन के बाद जिला विकास परिषद के चुनाव हो रहे हैं, तो जम्मू-कश्मीर की जनता की उम्मीदों को जमीन पर उतारने में मदद मिलेगी। ध्यान रहे इस चुनाव में पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को पहली बार मतदान का मौका मिला है। लेकिन यह चुनाव दलगत आधार पर हो रहा है, इसलिए यह देखना होगा कि किस दल को कहां बहुमत मिलता है। जिला परिषद की दलीय स्थिति से भी यहां की दशा-दिशा प्रभावित होगी।
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