सामुदायिक संक्रमण का डर!
भारत में कोविड-19 से संक्रमित लोगों की संख्या करीब दो लाख हो गई है और अब तक 5 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई है।
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यह स्थिति तब है जब देशव्यापी कठोर लॉकडाउन लागू किया गया था। संक्रमितों की संख्या के आधार पर भारत फ्रांस और जर्मनी को पीछे छोड़ते हुए वैश्विक रूप से कोरोना वायरस महामारी से सातवां सबसे अधिक प्रभावित देश हो गया है। जब महामारी के संक्रमण का ग्राफ एक लाख के आंकड़े को छू रहा था, उसी समय लोगों के मन में यह आशंका पैदा होने लगी थी कि कोरोना महामारी अपने तीसरे चरण में पहुंच गई है। सामुदायिक स्तर पर इसका प्रसार हो चुका है। यानी जो संक्रमित हो रहे हैं उनका विदेश यात्रा का कोई इतिहास नहीं है।
अब स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने भी कोरोना संक्रमण के सामुदायिक प्रसार की पुष्टि कर दी है जो सर्वाधिक चिंता की बात है। इस स्वास्थ्य विशेषज्ञों के समूह में एम्स नई दिल्ली और आईसीएमआर शोध समूह सहित स्वास्थ्य विशेषज्ञों का एक समूह भी शामिल है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा कोरोना से संबंधित रिपोर्ट प्रधानमंत्री को पेश की गई है। रिपोर्ट में यह कहा गया है कि देश की घनी और मध्यम आबादी वाले क्षेत्रों में कोरोना संक्रमण का प्रसार हो चुका है।
हालांकि सरकार इस रिपोर्ट को खारिज कर रही है और मान रही है कि कोरोना का सामुदायिक स्तर पर फैलाव नहीं हुआ है। सरकार यह नहीं बता रही है कि वह कौन से वैज्ञानिक आधार हैं जो स्वास्थ्य विशेषज्ञों की इस रिपोर्ट को निराधार बता रहे हैं। अगर सचमुच सरकार के पास इस बात का प्रमाण है कि कोरोना का सामुदायिक स्तर पर फैलाव नहीं हुआ है तो उसे फौरन सार्वजनिक करना चाहिए। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि नीति-निर्माताओं ने ऐसे प्रशासनिक नौकरशाहों पर ज्यादा भरोसा किया जिन्हें स्वास्थ्य और चिकित्सा संबंधी कोई अनुभव नहीं है।
रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख है कि कोरोना से संबंधित मामलों में विशेषज्ञों से परामर्श नहीं लिया गया। कहा जा सकता है कि यह रिपोर्ट कोरोना से संबंधित नीतियां बनाने वाले नौकरशाहों को कठघरे में खड़ा करती है। जाहिर है स्वास्थ्य विशेषज्ञों की संकलित रिपोर्ट में जो बातें कही गई हैं, अगर सच है तो यह बहुत ही गंभीर मसला है। सरकार को चाहिए कि अगर यह रिपोर्ट गलत तथ्यों पर आधारित है तो उसका खंडन करे या यदि प्रशासनिक नौकरशाहों से कोई चूक हुई है तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करे।
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