अमेरिका में दंगा

Last Updated 03 Jun 2020 03:10:13 AM IST

अमेरिका में जारी विरोध प्रदर्शन, हिंसा कितनी भयावह स्थिति में पहुंची होगी इसका अनुमान इसी बात से लगा सकते हैं कि 131 वर्ष बाद व्हाइट हाउस की बत्ती बुझाई गई और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को अपने परिवार के साथ एक घंटा बंकर में बिताना पड़ा।


अमेरिका में दंगा

अफ्रीकी मूल के अमेरिकी नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिस द्वारा जिस बेरहमी से हत्या की गई, उससे पूरे देश में उबाल स्वाभाविक है। हत्या का यह मामला एक अश्वेत का है किंतु इसके खिलाफ पूरा अमेरिका उठ खड़ा हुआ है। लोगों के गले यह बात नहीं उतर रही कि आखिर कानून के तहत बंधा कोई पुलिसकर्मी इस तरह किसी व्यक्ति को अपने पैरों से गला दबाकर कैसे मार सकता है। हालांकि प्रदर्शन के हिंसक होने से इसकी बदनामी भी हो रही है और इसे नियंत्रित करने के लिए पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा है। हिंसा का 140 शहरों में फैलना अगर इसकी व्यापकता को प्रमाणित करता है तो 40 शहरों में कर्फ्यू इसकी भयावहता को।

कई दशकों के बाद अमेरिका में इस तरह की नागरिक अशांति दिख रही है, जिसको नियंत्रित करना कठिन हो गया है। इसके बावजूद कि राज्यों की मांग पर कम से कम 20 राज्यों में नेशनल गार्ड के सैनिकों की तैनाती कर दी गई है। ट्रंप प्रशासन के लिए इस समय सबसे बड़ी चुनौती यही है कि आखिर इस विरोध प्रदर्शनों की विकरालता को कैसे खत्म किया जाए।  इस हत्या के समय तक अमेरिका की सबसे बड़ी चिंता कोरोना से निपटना था। एक लाख से ज्यादा लोगों की मौत ने अमेरिका को हिला दिया था।

अब इस एक घटना ने कुछ समय के लिए कोरोना के कहर को नेपथ्य में डाल दिया है। हालांकि भय यह है कि जिस तरह लोग प्रदर्शनों में मास्क से लेकर शारीरिक दूरी का पालन नहीं कर रहे, उसके चलते कोरोना ज्यादा फैल सकता है लेकिन अमेरिकी सामाज की पारंपरिक जटिलताओं ने कोरोना के भय को पीछे कर दिया है। एक लोकतांत्रिक समाज होते हुए भी अमेरिका में रंगभेद का जहर सदियों से रहा है।

इसको खत्म करने के लिए आंतरिक संघर्ष, सामाजिक पुनर्जागरण एवं संवैधानिक बदलावों की एक लंबी श्रृंखला है, पर अभी भी ऐसे तत्व हैं, जिनके अंदर अश्वेतों के विरुद्ध अतिवाद की सीमा तक नफरत भरी हुई है। वे समाज के हर क्षेत्र में हैं। इसका अर्थ यही है कि रंगभेद की मानसिकता से मुक्ति के लिए अमेरिका को अभी लंबा संघर्ष करना होगा।
 



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