अब फैसले की बारी

Last Updated 18 Oct 2019 04:18:53 AM IST

सर्वोच्च न्यायालय में अयोध्या मामले पर सुनवाई पूरी होने का मामला निश्चित रूप से देश के लिए राहत का विषय है।


अब फैसले की बारी

लंबे समय से सांप्रदायिक तनाव का कारण बना यह विवाद जितनी जल्दी हल हो देश के लिए उतना ही बेहतर होगा। दोनों पक्षों ने कह दिया है कि सर्वोच्च न्यायालय जो भी फैसला देगा हमें मान्य होगा।

इसे सकारात्मक दृष्टि से लिया जाना चाहिए। कुल 40 दिनों की सुनवाई में सर्वोच्च न्यायालय ने जो रुख अपनाया उससे यह साबित होता है कि न्यायपालिका अगर तय कर ले तो किसी भी मामले को निश्चित समय के अंदर उसकी तार्किक परिणति तक पहुंचा सकता है। अगर 40 दिन में सुनवाई पूरी नहीं होती तो भारत के लोग यह विश्वास करने को तैयार नहीं होते कि अयोध्या जैसे विवादास्पद मामले की सुनवाई इतने कम समय में पूरी हो सकती है।

इस तरह के विवादास्पद मामलों में, जिसमें देश का सांप्रदायिक-सामाजिक सद्भाव जोखिम पर हो, सर्वोच्च न्यायालय उसको तार्किक परिणति तक पहुंचाने के लिए आगे आ सकता है। हालांकि अगर अब भी विवाद आपसी बातचीत और सहमति से हल हो जाए तो उससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता।  मध्यस्थता समिति ने अपनी ओर से सर्वोच्च न्यायालय में आपसी सहमति का एक पहलू पेश किया है। सुन्नी वक्फ बोर्ड मुसलमानों की ओर से मुकदमे का मुख्य पक्ष रहा है। अगर वह मुकदमा वापस लेने के लिए तैयार है तो अभी भी उस पर विचार करने में कोई हर्ज नहीं है।

उम्मीद करनी चाहिए सर्वोच्च न्यायालय उनके दस्तावेज को देखकर यथासंभव निर्णय लेगा। आगे इस पर राजनीति नहीं हो इसके लिए जरूरी है कि समाधान ऐसा किया जाए, जिसमें विवाद की कोई गुंजाइश न रहे। अगर सुन्नी वक्फ बोर्ड कुछ शतरे के आधार पर मुकदमा वापस करके हिन्दुओं को जमीन सौंपने के लिए तैयार है तो उस पर विचार किया जाना चाहिए। उनमें जो मानने योग्य शत्रे हैं उन्हें मान लिया जाए।

हालांकि हिन्दू पक्ष में केवल निर्मोही अखाड़ा को ही उस पर अधिकार दे दिया जाए यह भी उचित नहीं होगा। हमारा मानना यह है कि अगर सर्वोच्च न्यायालय को मध्यस्थता समिति द्वारा पेश किए गए दस्तावेज में संभावना दिखती है तो मुकदमे से जुड़े सभी पक्षों को अपने साथ बिठाकर बातें करे। अगर समाधान का रास्ता निकालता है तो उस दिशा में दो-तीन दिन प्रयास करने में कोई हर्ज नहीं है। फैसला उसके साथ लिखा जा सकता है।



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