गलतफहमी न फैले
बांग्लादेश की सीमा की पहरेदारी करने वाली बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश (बीजीबी) की कायराना हरकत से हर भारतवासी स्तब्ध और आक्रोशित है।
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सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की टीम पर जिस तरह पीछे से वार किया गया, वह न तो सेना की मर्यादा और न दोनों देशों के बरसों पुराने ऐतिहासिक संबंधों के लिहाज से उचित हैं। एक जवान का शहीद होना और एक का घायल होना निश्चित तौर पर देशों के रिश्तों में खटास पैदा कर सकता है। भारतीय मछुआरों को नियम विरुद्ध उनके जलक्षेत्र में गिरफ्त में लेना, फिर उनकी बोट, मछली पकड़ने के उपकरण और मछलियों को जब्त करना किसी भी तरीके से सही नहीं ठहराया जा सकता है।
गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में पद्मा नदी में मछली पकड़ने गए तीन मछुआरों को बीजीबी जवानों ने इस आरोप में पकड़ लिया कि उन्होंने जलक्षेत्र का नियम तोड़ा है और बांग्लादेश की सीमा में अनधिकृत रूप से प्रवेश कर गए हैं। मसला सुलझाने के लिए जब बीएसएफ की टीम घटनास्थल पर पहुंची तो बीजीबी जवानों से विवाद बढ़ गया। यह कहां का नियम-कायदा है कि जब कोई बातचीत के लिए जाए तो उससे नियमसम्मत तरीके से बात न की जाए बल्कि पीठ पीछे गोलीबारी कर दी जाए। हालांकि बात ज्यादा बढ़ने के बाद अपनी सफाई में बांग्लादेश की सरकार भले इसे ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ कह रही हो, मगर इतने भर से शहीद परिवार और देशवासियों को न्याय नहीं मिलेगा। पद्मा नदी भारत और बांग्लादेश दोनों देशों में बहती है।
अक्टूबर माह में हिल्सा मछली ज्यादा तादाद में इस नदी क्षेत्र में आती है। लिहाजा मछुआरे हजारों रुपये खर्च कर मछली पकड़ने के उपकरण खरीदते हैं। किंतु इस वारदात के बाद उन हजारों मछुआरों के माथे पर चिंता पसर गई है। सरकार को उन हजारों परिवारों के बारे में भी सोचना होगा जिनकी जीविका मछली पालन के भरोसे है। इसके साथ ही यह नियम भी बने कि अगर दोनों देशों की बॉर्डर फोर्स फ्लैग मीटिंग के लिए मिले तो बिना हथियारों के बैठक हो। इससे वार्ता के समय तनाव या विवाद हिंसा के स्तर तक नहीं पहुंचेगा। भारत के संबंध बांग्लादेश से बेहतर रहे हैं। इसलिए जल्द-से-जल्द विवादों का निपटारा शीर्ष स्तर पर हो जाना चाहिए। बांग्लादेश को साफ संकेत दिया जाना चाहिए कि, यह पहली व अंतिम घटना है।
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