चालान पर रार
मोटर वाहन अधिनियम (संशोधित) 2019 के 1 सितम्बर से लागू होने के बाद से भारी जुर्माना राशि को लेकर देशभर में रार मची है।
चालान पर रार |
जुर्माना राशि कई गुना बढ़ाने के निर्णय से कई राज्यों में अनिर्णय की स्थिति देखी जा रही है। पश्चिम बंगाल ने तो सीधे तौर पर सरकार को चुनौती देते हुए इस नियम को लागू करने से मना कर दिया है तो कई राज्यों में इसे फिलहाल अमल में नहीं लाया गया है। इस अधिनियम को लेकर कई प्रदेशों के अपने तर्क हैं। ज्यादातर का मानना है कि चालान की भारी-भरकम रकम से जनता में गुस्सा है, जो आने वाले वक्त में उनके लिए लिए मुसीबत बन सकती है।
हालांकि जब इस विधेयक को अंतिम रूप दिया जा रहा था तो सड़क मंत्रालय के अलावा सभी राज्यों के मंत्री भी बैठक में मौजूद थे। सभी राज्यों के प्रतिनिधि मंत्रियों ने उस वक्त अधिनियम के नियमों को समझा था और इसे लागू करने की हामी भी भरी थी। मगर अब उनका रवैया बिल्कुल उल्टा हो गया है। सरकार के स्तर पर देखें तो अब मीन-मेख निकालकर काूनन को कमजोर करना कतई सही नहीं ठहराया जा सकता। सरकार का एक इकबाल होता है। उसके बनाए नियमों का पालन करना सभी के लिए जरूरी होता है। अगर केंद्र के नियमों को लेकर इस तरह का अड़ियल रवैया राज्यों की तरफ से होंगे तो केंद्र और राज्यों के बीच अनावश्यक टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है। स्वाभाविक तौर पर सभी राज्यों को इस बात की गहरी समझ होनी चाहिए कि सड़क हादसों के चलते देश को किस कदर नुकसान झेलना पड़ता है।
हर साल डेढ़ लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं की भेंट चढ़ जाते हैं। उनमें से ज्यादातर 18 से 35 साल के उत्पादक आयुवर्ग के होते हैं। सकल घरेलू उत्पाद का 2 फीसद नुकसान इन दुर्घटनाओं की वजह से होता है। इस लिहाज से इस सख्त किंतु प्रासंगिक कानून का पालन यथेष्ट था। उन राज्यों को इस बारे में फिर से विचार-विमर्श करना चाहिए, जो भारी जुर्माने की आड़ में अपना ऊल्लू-सीधा करने में हैं।
इस बात से इनकार नहीं कि जुर्माने की रकम ज्यादा है किंतु सही दस्तावेजों को रखने में हर किसी का फायदा है। विरोध करने वाले राज्यों को चुनावी नफा-नुकसान से ऊपर उठकर इसे शिद्दत से लागू कराना चाहिए। कुछ दिनों तक इसकी निगरानी भी करनी चाहिए और उसके मुताबिक इस पर फैसला लेना चाहिए। वाहन चलाने वालों को भी ‘गलती करो, पैसे भरो’ की मानसिकता का जल्द-से-जल्द त्याग करना चाहिए।
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