आक्रामक कूटनीति
भारत ने जम्मू-कश्मीर में एक ही दिन में दो मोर्चे पर सधी और आक्रामक कूटनीति से दुनिया को अपनी दृढ़ता का साफ संकेत दिया।
आक्रामक कूटनीति |
पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) इस मंशा से गया था कि भारत के खिलाफ किसी तरह का प्रस्ताव पारित कराने में सफल होगा तो उसे जबरदस्त मुंह की खानी पड़ी है। जिस तरह सुरक्षा परिषद में उसके साथ चीन को छोड़कर कोई नहीं आया लगभग वही हाल उसका मानवाधिकार परिषद में भी हुआ।
भारत को पता था कि चीन झूठ का अपना पुराना राग आलापेगा। उसने एक बड़ा डोजियर परिषद को सौंपा भी, पर भारत की तैयारी भी पूरी थी। विदेश मंत्रालय में सचिव (पूर्व) विजय ठाकुर सिंह द्वारा परिषद की 42वीं बैठक के अपने संबोधन में पाकिस्तान का नाम लिये बिना उसे झूठ की फैक्टरी और वैश्विक आतंकवाद का मुख्य केंद्र बता देना यकीनन हर भारतीय को गदगद करने वाला था।
पाकिस्तान के पास इस उलट प्रहार का जवाब नहीं था कि समय आ गया है जब जीने के अधिकार जैसे आधारभूत मानवाधिकार के लिए खतरा बने आतंकी समूहों और उन्हें शह देने वाले देश के खिलाफ वि समुदाय सर्वसम्मति से निर्णायक फैसला ले। दुनिया से अपील थी कि सब चुप रहे तो यह आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने जैसा होगा। परिषद के अध्यक्ष के एक दिन के बयान से उत्साहित पाकिस्तान को वहां से हाथ मलते लौटना पड़ा। किसी देश ने भारत द्वारा अनुच्छेद 370 हटाने को आंतरिक मामला बताने का विरोध नहीं किया।
दूसरी ओर, चीनी विदेश मंत्री वांग यी की इस्लामाबाद यात्रा के बाद जारी पाकिस्तान-चीन के संयुक्त बयान में कश्मीर पर भारत की कार्रवाई को एकतरफा बताने का जितना आक्रामक प्रतिकार भारत ने किया उसकी उम्मीद चीन को भी नहीं रही होगी। भारत ने पहले भी पाक अधिकृत कश्मीर में चीन पाक आर्थिक गलियारे और चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का विरोध किया है किंतु इतनी मुखर लताड़ कभी नहीं लगाई थी जो आवश्यक हो गया था। विदेश मंत्रालय का सीधे कहना कि भारत के अभिन्न हिस्से में पाक और चीन अपनी परियोजना बंद करें, सामान्य बयान नहीं है। चीन, पाक अधिकृत कश्मीर में अपने स्वार्थ को देखते हुए जिस तरह की कुटिल नीति अपनाए हुए है, उसमें भारत के पास करारा हमले के अलावा कोई विकल्प नहीं है। भारत को पाकिस्तान व चीन, दोनों के प्रति अपनी दूरगामी रणनीति तय करके इसी तरह की आक्रामकता दिखानी होगी।
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