एक किसान की आत्महत्या
यह न तो पहली घटना है और न ही अंतिम होगी। कृषि कर्ज चुका न पाने के कारण पंजाब के बरनाला जिले के 22 वर्षीय लवप्रीत सिंह ने आत्महत्या कर ली।
एक किसान की आत्महत्या |
उसके परिवार में अब केवल उसकी मां और बहन बची हैं। 15 साल पहले लवप्रीत सिंह के दादा ने कर्ज लिया था। कर्ज अदा तो नहीं हो सका, उल्टे जमीन बिकती चली गई। लवप्रीत को बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी। इस बीच पहले दादा और बाद में उसके पिता ने भी अपनी जीवनलीला खत्म कर ली। लवप्रीत की मां हरपाल कौर का कहना है कि तीनों ने कर्ज के कारण आत्महत्या की। त्रासदी यह भी है कि स्थानीय प्रशासन को हरपाल के बयान पर विश्वास नहीं है।
वह इस बात की पुष्टि में लगा हुआ है कि क्या सभी आत्महत्याएं कर्ज के कारण हुई हैं? ऐसी स्थिति में इन तीनों आत्महत्याओं की वजह के बारे में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। इंतजार करना होगा कि प्रशासन अपनी क्या राय देता है। लेकिन सरकारों की प्रवृत्ति, चाहे किसी भी पार्टी की हो, कहीं-न-कहीं ऐसी मौतों के कारण को नकारने की भी होती है, ताकि उनके किसान प्रेम पर कोई बट्टा न लगे। यही कारण है कि उनके द्वारा प्रस्तुत किसानों की आत्महत्याओं के आंकड़ों पर विश्वास करना कठिन होता है। इसके बावजूद इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि उदारीकरण के दौर में कर्ज में डूबे किसान आत्महत्या कर रहे हैं। यह उस संपूर्ण विकास मॉडल पर सवाल खड़ा करता है, जिसे पिछले तीन दशकों से भारत में विभिन्न पार्टयिों की सरकारों द्वारा आगे बढ़ाया गया है।
समय के साथ यह सवाल और घनीभूत होते जा रहा है कि विकास के इस मॉडल से अगर समृद्धि बढ़ी है, तो क्या उसका लाभ सबको मिल रहा है? यानी कहीं आर्थिक असमानता तो नहीं बढ़ रही है? पंजाब की यह घटना चिंतित करने वाली है, क्योंकि पंजाब भारत के विकसित प्रांतों में आता है। उसके बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि वहां प्रति हेक्टेयर उत्पादन या उत्पादकता अपेक्षा के अनुरूप नहीं है। लेकिन किसानों की खुशहाली फसल उत्पादन या उत्पादकता से ही तय नहीं होती, वह उनकी उपज के लाभकारी मूल्य से भी तय होती है। कृषि का विकास अनिवार्यत: किसानों की खुशहाली का प्रतीक नहीं हो सकता। यह घटना कृषि कर्ज माफी की राह पर चल रही कांग्रेस शासित पंजाब की अमरिंदर सरकार की नीतियों पर भी प्रतिकूल टिप्पणी है। उन्हें संजीदगी से इस पर विचार करना होगा।
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